महिलाओं को रोजगार के नाम पर 10,000 रुपए (सौजन्यः सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: मध्यप्रदेश की लाडली बहन और महाराष्ट्र की लाडकी बहीण योजना से प्रेरित होकर बिहार की नीतीश कुमार व बीजेपी की एनडीए सरकार ने विधानसभा चुनाव के निकट रहते राज्य की 75 लाख महिलाओं के खाते में 10,000 रुपए डालने का निर्णय लिया। महाराष्ट्र में महिलाओं को प्रतिमाह 2,100 रुपए देना भी भारी पड़ गया। महाराष्ट्र में यह बात भी सामने आई कि अनेक अपात्रों ने इस योजना का लाभ उठाया। चुनाव के समय किए गए वादों को पूरा करने में कर्नाटक सरकार की हालत पतली हो गई। इन बातों को देखते हुए पिछड़े हुए बिहार में 10,000 रुपए देने की घोषणा राज्य की आर्थिक स्थिति को खोखला कर सकती है। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी पहले ऐसी योजनाओं को लेकर विपक्ष की आलोचना करते हुए इसे रेवड़ी बांटना कहा करते थे। बिहार की इस योजना के प्रथम चरण में सरकारी खजाने के 7500 करोड़ रुपए खर्च होंगे।
बिहार में इसे मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना का नाम दिया गया है। इस रकम से पता नहीं कितनी महिलाएं स्वरोजगार शुरू करेंगी या इसे मुफ्त की रकम मानकर यूं ही खर्च कर डालेंगी? हाल ही में कैग ने बिहार की आर्थिक स्थिति की रिपोर्ट पेश की है जिसमें कर्ज लेने वाले टॉप टेन राज्यों में बिहार का नाम है। बिहार पर ढाई लाख करोड़ रुपए का कर्ज लदा है। वहां वेतन, पेंशन और कर्ज भुगतान में 70,000 करोड़ रुपए खर्च हो जाते हैं। इस नई योजना में रकम देने पर विकास कार्य के लिए धन कहां से लाया जाएगा? दूसरी ओर राजद व कांग्रेस ने भी ऐसी योजनाओं के आश्वासन दिए हैं। महाराष्ट्र की लाडकी बहीण योजना में 45,000 करोड़ रुपए देते हुए सरकार को पसीना आ गया।
कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार की भी 5 गैरंटी योजना में रकम देते हुए हालत खस्ता हो गई, बीजेपी को लगता है कि बिहार में महिला रोजगार योजना में 10,000 रुपए प्रति महिला को देना गेमचेंजर साबित होगा तथा कांग्रेस के वोट चोरी आरोप को इससे मात दी जा सकेगी। बिहार की महिला रोजगार योजना में यह कहा गया है कि जिन महिलाओं की स्वरोजगार पहल अनुकूल दिखाई देगी उन्हें बाद में और रकम दी जाएगी। क्या बिना प्रशिक्षण या मार्गदर्शन के राज्य की लाखों महिलाओं के लिए स्वरोजगार कर पाना संभव होगा? चुनाव के समय दी जाने वाली ऐसी रकम को जनता उपहार के रूप में लेती है। सरकार खुद रोजगार न देकर स्वरोजगार के नाम पर रकम बॉटंगी। पता नहीं कितनी महिलाएं इससे स्वावलंबी बन पाएंगी ? खास बात यह है कि चुनाव आयोग भी इसे मतदाताओं को दी गई रिश्वत नहीं मानता।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा