
योगी आदित्यनाथ (सोर्स- सोशल मीडिया)
CM Yogi Adityanath: उत्तर प्रदेश विधानसभा में सोमवार को एक बार फिर सीएम योगी आदित्यनाथ की वही गर्जना सुनाई दी, जैसी फरवरी 2023 में सुनाई दी थी। सीएम योगी की इस गर्जना के बाद सवाल उठ खड़ा हुआ है कि इस बार यूपी में क्या कुछ होने वाला है और वह किस मुद्दे पर उनका पारा चढ़ चुका है?
दरअसल, सीएम योगी ने सोमवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा में कोडीन सिरप मामले और राष्ट्रीय गौरव के मुद्दों को लेकर विपक्ष पर प्रहार किया। उन्होंने फोटो और दस्तावेजों को दिखाते हुए दावा किया कि कोडीन सिरप के इलीगल डायवर्जन में शामिल अमित यादव जैसे आरोपी सपा के पदाधिकारी हैं।
सीएम योगी ने बताया कि यूपी पुलिस और एसटीएफ ने एक हजार से अधिक नमूने लेकर कड़ी कार्रवाई की है और इन आरोपियों को सपा सरकार के समय ही लाइसेंस मिले थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि जो भी अपराधी होगा, बचने नहीं पाएगा। ऐसी कार्रवाई करेंगे कि आपको फातिहा पढ़ने के लायक भी नहीं छोड़ेंगे।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में अमित यादव की फोटो दिखाते हुए पूछा कि क्या वह वाराणसी कैंट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार नहीं थे? उन्होंने आरोप लगाया कि अमित यादव ने मुख्य आरोपी शुभम जायसवाल से मिले पैसों से 2024 में दुबई की यात्रा की थी। उन्होंने मनोज यादव, राजीव यादव और मुकेश यादव जैसे नामों का जिक्र करते हुए कहा कि वे सभी फर्जी फर्म बनाकर अवैध धंधों में शामिल थे।
मुख्यमंत्री ने व्यंग्य करते हुए कहा कि “आलोक सिपाई पक्का सपाई है,” जिसे सरकार ने नौकरी से निकाल दिया था और जिसकी अखिलेश यादव के साथ तस्वीरें मौजूद हैं। सपा पर तीखा हमला बोलते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा कि विपक्ष को जनता को गुमराह करना बंद कर देना चाहिए। उन्होंने साफ किया कि विभोर राणा जैसे लोगों को 2016 में सपा सरकार ने लाइसेंस दिए थे, जबकि मौजूदा सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई कर रही है।
सीएम योगी आदित्यनाथ का इसी तरह का तेवर फरवरी 2023 में भी देखने को मिला था। उस वक्त उमेश पाल हत्याकांड को लेकर विपक्ष सरकार को घेर रहा था। तब सीएम योगी ने विधानसभा में ही कहा था कि उस माफिया को मिट्टी में मिला देंगे। इसके कुछ ही दिन बाद पुलिस हिरासत मेडिकल के लिए जाते हुए अतीक और अशरफ की हत्या हो जाती है। जबकि अतीक का बेटा एनकाउंटर में मारा जाता है
विधानसभा में मुख्यमंत्री ने इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि 1937 में लखनऊ से ही मोहम्मद अली जिन्ना ने ‘वंदे मातरम’ के खिलाफ नारा लगाया था। उन्होंने कहा कि पंडित नेहरू ने सुभाष चंद्र बोस को एक पत्र लिखकर मुस्लिम समुदाय की परेशानी का जिक्र किया था और 26 अक्टूबर 1937 को कांग्रेस ने गाने के कुछ हिस्सों को हटाने का फैसला किया था।
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मुख्यमंत्री के अनुसार, जिसे सद्भाव कहा जा रहा था, वह असल में तुष्टीकरण की शुरुआत थी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रगीत सिर्फ भारतीयों के लिए एक गाना नहीं है, बल्कि एक पवित्र परंपरा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि इतिहास सिर्फ तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि एक चेतावनी है और नई पीढ़ी को सच जानने का अधिकार है। उन्होंने मांग की कि जो लोग अभी भी वंदे मातरम का बहिष्कार कर रहे हैं, उन्हें देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए।






