
प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स: सोशल मीडिया)
Nashik Politics: नासिक-मनमाड में विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना ठाकरे गुट छोड़कर भाजपा में शामिल हुए नेताओं को जो राजनीतिक झटका लगा है, उसने अब नासिक समेत पूरे जिले में दल-बदल कर भाजपा में आए नेताओं की बेचैनी बढ़ा दी है। टिकट के भरोसे पार्टी बदलने का फैसला करने वाले नेताओं के सामने अब सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। कहीं मनमाड जैसा हश्र नासिक में भी न हो जाए?
मनमाड में भाजपा में शामिल हुए 6 पूर्व नगरसेवकों को पार्टी ने आगामी चुनाव में मौका देने का भरोसा दिलाया था। लेकिन ऐन चुनाव के वक्त टिकट न मिलने से इन नेताओं को मजबूरी में अलग-अलग रास्ते अपनाने पड़े। किसी ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार गुट) का दामन थामा तो किसी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरना उचित समझा। नतीजा यह रहा कि सभी को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस पूरे घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया कि केवल पार्टी बदलना जीत की गारंटी नहीं होता।
मनमाड में ठाकरे गुट की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ चुके पूर्व नगराध्यक्ष गणेश धात्रक, पूर्व नगरसेवक प्रमोद पाचोरकर, विजय मिश्रा, लियाकत शेख, एडवोकेट सुधाकर मोरे और पप्पू परब ने बाद में भाजपा में प्रवेश किया था। इनमें से एडवोकेट सुधाकर मोरे के प्रभाग में ठाकरे गुट के उम्मीदवार का निधन हो जाने के कारण वहां चुनाव नहीं हो सका। बावजूद इसके भाजपा से टिकट न मिलने पर उन्होंने राष्ट्रवादी (अजित पवार गुट) से उम्मीदवार बनकर नामांकर भरा था।
वहीं गणेश धात्रक ने अपनी पत्नी को मैदान में उतारते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ा। प्रमोद पाचोरकर और लियाकत शेख ने भी निर्दलीय रहना ही बेहतर समझा, जबकि विजय मिश्रा और पप्पू परब ने राष्ट्रवादी के टिकट पर किस्मत आजमाई। लेकिन सभी को हार का सामना करना पड़ा।
इस पृष्ठभूमि में अब नासिक शहर की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। नासिक महानगरपालिका के 122 नगरसेवक पदों के लिए 15 जनवरी को चुनाव होने जा रहे हैं। इसके लिए मंगलवार से नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। हालांकि, महायुति को लेकर अब भी तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं है। भाजपा, शिवसेना शिंदे गुट और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच सीट बंटवारे को लेकर असमंजस बना हुआ है, जिसके कारण अब तक टिकट वितरण नहीं हो पाया है।
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यदि भाजपा अपने दम पर चुनाव लड़ती है तो पार्टी के कई पुराने और नए कार्यकर्ताओं को मौका मिलने की संभावना है। लेकिन यदि महायुति के तहत चुनाव लड़ा गया, तो सीटों की संख्या सीमित हो जाएगी। ऐसी स्थिति में न केवल पार्टी के पुराने इच्छुक कार्यकर्ताओं, बल्कि हाल ही में भाजपा में शामिल हुए नेताओं के भी टिकट कटने की पूरी आशंका है। यही वजह है कि दल-बदल कर भाजपा में आए नेताओं के बीच बेचैनी बढ़ती जा रही है।
राजनीतिक गलियारों में अब यह चर्चा तेज है कि मनमाड का अनुभव नासिक के लिए एक चेतावनी साबित हो सकता है। टिकट के भरोसे पार्टी बदलने का जोखिम कहीं भारी न पड़ जाए। इसी चिंता में कई नए भाजपाई नेता अंदरखाने मंथन करते नजर आ रहे हैं। आने वाले कुछ दिन यह तय करेंगे कि भाजपा का यह भरोसा किसके लिए अवसर बनेगा और किसके लिए राजनीतिक संकट।






