भुलेश्वर मार्केट, मुंबई
चीन के सामान नदारद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग का असर अब बाजारों में भी दिखने लगा है। सोशल मीडिया पर चीनी वस्तुओं के लगातार बहिष्कार की अपील के बाद त्योहारों पर जनमानस अपनी परंपरागत वस्तुओं को प्राथमिकता देने लगा है। दीपावली पर्व के आते ही दुकानें झिलमिलाते चीनी झालरों से सज जाते थे लेकिन इस बार बाजार में चीनी झालर बहुत कम दिखाई दे रहे है।
महंगे हैं भारतीय उत्पाद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग का असर अब बाजारों में भी दिखने लगा है। सोशल मीडिया पर चीनी वस्तुओं के लगातार बहिष्कार की अपील के बाद त्योहारों पर जनमानस अपनी परंपरागत वस्तुओं को प्राथमिकता देने लगा है। दीपावली पर्व के आते ही दुकानें झिलमिलाते चीनी झालरों से सज जाते थे लेकिन इस बार बाजार में चीनी झालर बहुत कम दिखाई दे रहे है। चीन से लगातार तकरार के बाद अब ग्राहक इंडियन वस्तुओं को खरीदने को प्राथमिकता दे रहा है। दीपावली के बिजली बाजार में 2019 तक चीन का 90 फीसदी कब्जा था लेकिन अब कोलकाता, दिल्ली और जयपुर की झालरों से बाजार गुलजार हो रहा है। चीनी झालरों की अपेक्षा स्वदेशी झालर काफी महंगे हैं।
सस्ते दर की वजह से होती है चीनी उत्पाद की खरीद
द इलेक्ट्रिक मर्चेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष समीर मेहता ने बताया कि चीन से बड़े पैमाने पर उत्पादों की डंपिंग की जा रही है। भारतीय बाजार में आज भी 50 फीसद चीनी उत्पादों का कब्जा है। इंडियन मेन्युफेक्स्चरर दीपावली उत्सव के लिए डेकोरेटिव आइटम बनाने पर ध्यान नहीं दे रहा है, जिसके कारण बाजार में अब भी चीनी उत्पाद बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि दीपावली पर देसी लड़ियां की बात अब केवल कहने को रह गया है देसी लड़ियां इतनी महंगी होती हैं कि उसका दाम सुनते ही लोग चीनी लड़ियों की ओर मुड़ जाते हैं। कारोबारी तो सामान बेचने के लिए बैठा है, उसे जो सामान का उचित दाम मिलेगा, वो वही बेचेगा।
भारतीय उत्पाद की भारी मांग पर नहीं हो रहा निर्माण
कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स मुंबई महानगर के अध्यक्ष दिलीप माहेश्वरी ने कहा कि चीन की सामानों को आयात करने वाले व्यापारियों का संगठन विरोध करता है। उन्होंने कहा कि चीन की लड़ियां मशीनों से बनती है जबकि देसी लड़ियों को मशीन और हाथों से बनाया जाता है। उन्होंने कहा कि बाजार में देसी लड़ियों की खूब मांग है लेकिन उसके अनुरूप पूर्ति नहीं हो पा रही है। देसी लड़ियों को बनाने के कारोबार में लोग जाना नहीं चाहते उन्हें डर है कि चीन के सस्ते लड़ियों के सामने उनका माल कैसे बिकेगा। देसी लड़ियां बनाने का ज्यादा कारोबार दिल्ली में होता है। कोरोना महामारी के बाद पलायन किये मजदूरों की वापसी अभी तक नहीं हुई है जिससे मजदूरों की कमी के कारण देसी लड़ियां तैयार नहीं हो पा रही है।
कड़वा सच
द इलेक्ट्रिक मर्चेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष समीर मेहता ने कहा, सोशल मीडिया पर हम सब चीनी उत्पादों का चाहे जितना बहिष्कार कर लें ,लेकिन असलियत यही है कि आम उपभोक्ताओं को सस्ते सामान चाहिए। लघु उद्योगों और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए आम उपभोक्ताओं को देश में निर्मित वस्तुओं को खरीदी की पहल करनी होगी।