क्या पाक IMF कर्ज से विकास करेगा (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पाकिस्तान को विकास में दिलचस्पी होती, तो उसकी पाक अर्थव्यवस्था खोखली नहीं होती। वह जगजाहिर कंगाल है। वहां सिर्फ सेना और सरकार के अधिकारी, राजनेता और जमींदार मालामाल हैं। क्योंकि जमींदारी प्रथा वहां खत्म नहीं की गई। गरीबी और अभाव से जूझती जनता को कश्मीर प्रश्न के उन्माद और आतंकवाद की खुराक देकर पाकिस्तान पाल रहा है। शिक्षा, रोजगार, उद्योग उसकी प्राथमिकता में कभी नहीं रहे। अमेरिका, इस्लामी मुल्कों, विश्व बैंक या आईएमएफ से मिलने वाली मदद वह अपनी फौजी तैयारियां मजबूत करने और आतंक को बढ़ावा देने में खर्च करता आ रहा है।
यद्यपि अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने 1 अरब डालर का कर्ज देते हुए पाकिस्तान के सामने बेहद कड़ी शर्तें रखी हैं, लेकिन इस बात की कौन मानिटरिंग करेगा कि वह पूरी तरह शर्तों का पालन कर रहा है या नहीं! पाक से कहा गया है कि वह 17,600 अरब रुपए का बजट पारित कर उसका अधिकांश इस्तेमाल विकास कार्यों के लिए करे। कर्ज लौटाने के लिए बिजली बिलों में वृद्धि कर रकम जुटाए, टैरिफ निर्धारण व वितरण में सुधार करे। कृषि आय पर टैक्स लगाने के लिए नया कानून बनाए। आईएमएफ ने 11 नई शर्तें इसलिए लगाई हैं, ताकि उसका कर्ज डूब न जाए। पाकिस्तान किसी का कर्ज नहीं लौटाता, तो आईएमएफ को भी रकम वापस पाने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बाइडन ने कहा था कि हमने पाकिस्तान को अरबों डालर दिए थे, लेकिन उसने हमें बेवकूफ बनाया। यदि पहले ही भारी तंगी से जूझ रही जनता पर बिजली बिल बढ़ाने और कृषि आय पर टैक्स लगाने जैसे कदम उठाए गए, तो वहां भारी असंतोष धधक उठेगा। इससे पाकिस्तान सरकार का सिरदर्द बढ़ जाएगा। आईएमएफ ने 1958 से लेकर अब तक पाकिस्तान को 54 बार आर्थिक सहायता दी, किंतु उसने उसका दुरुपयोग भारत से युद्ध करने और आतंकवाद भड़काने में किया। महंगाई और दिवालिएपन में पाक की इकोनॉमी रसातल में जा पहुंची है। कुछ दिनों पहले युद्धोन्मादी पाकिस्तान ने 2,414 अरब रुपए का सैन्य बजट रखा, जो भारत से तनाव के कारण अब 2,500 अरब रुपए तक पहुंच गया है। उसे अपने ध्वस्त हो चुके एयरफील्ड तथा आतंकी प्रशिक्षण अड्डे फिर से तैयार करने की फिक्र होगी।
दहशतगर्दी पाकिस्तान की नस-नस में है। गरीबी और बेहाली से जनता का ध्यान भटकाने के लिए वह कश्मीर मुद्दे को भड़काने और भारत पर 1,000 वार करने जैसी बातों में लगा रहता है। क्या आईएमएफ सतर्कतापूर्वक इस बात की निगरानी रखेगा कि उसके कर्ज की रकम को पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों के लिए खर्च तो नहीं कर रहा है और क्या वह आईएमएफ की कर्ज से जुड़ी शर्तों का पूरी तरह पालन कर रहा है ? इतिहास गवाह है कि जब भी पाकिस्तान को पश्चिमी देशों से आर्थिक या सैनिक मदद मिली, उसने उसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ युद्ध छेड़कर किया।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा