मतदाता सूची से नाम कटने का किसे मिलेगा लाभ (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: बिहार में विपक्षी पार्टियां आशंकित हैं कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की कड़ी शर्तों की वजह से उनके वोटर कम हो जाएंगे जिससे उन्हें चुनावी नुकसान उठाना पड़ेगा।राजद, कांग्रेस, टीएमसी इस खतरे को महसूस कर रही हैं।टीएमसी सांसद साकेत गोखले ने दावा किया कि एसआईआर अभियान के तहत 2024 की लोकसभा मतदाता सूची से 1.26 करोड़ वोटरों के नाम हटा दिए गए हैं यह एक बड़ी तादाद है।मतदाता सूची से हटाए गए मतदाताओं की संख्या उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की संयुक्त आबादी के बराबर है।
राज्य के 7.90 करोड़ मतदाताओं में से केवल 7.24 करोड़ से ही फार्म लिए गए।बिहार में कितने विदेशी नागरिक पाए गए, उनकी संख्या जाहिर नहीं की गई।टीएमसी प्रमुख व बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आरोप है कि एसआईआर अभियान वास्तव में पिछले दरवाजे से लाया गया एनआरसी है।माना जा रहा है कि एसआईआर के जरिए बीजेपी के नेतृत्ववाले एनडीए ने बिहार विधानसभा चुनाव जीतने की योजना बनाई है।चुनाव आयोग के कदमों से बीजेपी की राह आसान हो रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 10 जुलाई के आदेश को दोहराते हुए चुनाव आयोग से फिर कहा है कि वह मतदाता सूची पुनरीक्षण करते समय नाम दर्ज करने के लिए आधार और वोटर कार्ड पर भी विचार करे।चुनाव आयोग के वकील ने दलील दी कि 1 अगस्त को ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी होगी जिस पर लोग अपनी आपत्ति दर्ज करवा सकते हैं।एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) के वकील शंकर नारायणन ने कहा कि चुनाव आयोग ने आधार व मतदाता फोटो पहचान पत्र के संबंध में अदालत के आदेश का उल्लेघन किया है।ड्राफ्ट प्रकाशित होने पर 4.5 करोड़ लोगों को जाकर मतदाता सूची देखने और कानूनी प्रक्रिया के जरिए आपत्ति जताने की असुविधा उठानी पड़ेगी।
चुनाव आयोग की 2022 की रिपोर्ट में कहा गया था कि देश के लगभग 30 करोड़ पात्र मतदाताओं ने मतदान नहीं किया था।इसके पिछले विविध कारण थे लेकिन प्रमुख वजह श्रमिकों का स्थलांतर था।रोजी-रोटी के लिए वह अन्य राज्यों में चले जाते हैं।मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने या मतदान करने के लिए अपने गांव या शहर आ नहीं पाते।बिहार के लगभग 1 करोड़ स्थलांतरित श्रमिक देश के अन्य राज्यों में रह रहे हैं।
चुनाव आयोग ने उन्हें ऑनलाइन प्रक्रिया के जरिए अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज कराने की सुविधा दी है।क्या नाम दर्ज होने पर उन्हें ऑनलाइन मतदान करने की सुविधा नहीं दी जा सकती? यदि प्रवासी मजदूर वोट डालने अपने गांव या शहर लौटते हैं तो उन्हें आने-जाने का खर्च उठाना पड़ेगा, वेतन कटौती हो सकती है।रोजगार छिन जाने की भी आशंका रहती है।राजनीतिक नेता भी स्थलांतरित मजदूरों या नौकरीपेशा लोगों के प्रति जिम्मेदारी की भावना नहीं रखते।यदि वोटिंग पोर्टेबिलिटी की सुविधा प्रदान की जाए तो ये लोग अपने कार्य करने के स्थान से भी मतदान कर सकते हैं।
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बिहार ही नहीं अन्य उत्तरी राज्यों में भी लोग जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र हासिल करने और उन्हें संभालकर रखने के बारे में उदासीन रहते हैं।नागरिकता सिद्ध करने के लिए पूर्वजों का जन्म प्रमाणपत्र पेश करना या अपने निवास का दस्तावेजी प्रमाण देना उनके लिए असंभव है।निरक्षरता तथा सजगता की कमी इसके लिए जिम्मेदार है।चुनाव आयोग को राशन कार्ड पर भरोसा नहीं है क्योंकि बिहार में बड़ी संख्या में फर्जी राशन कार्ड पाए गए हैं।यदि आधार व मतदाता पहचान कार्ड को मतदान के लिए पर्याप्त नहीं माना जाता तो वोटरों की तादाद में गिरावट आएगी।जब तमाम सुविधाओं और केवायसी के लिए आधार चलता है तो मतदान के लिए क्यों नहीं?
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा