
किसान आखिर कितने, समय तक धैर्य रखें (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: कर्ज के बोझ और फसलों के नुकसान की वजह से हताश होकर वर्धा जिले के 14 किसानों ने 10 से 15 अक्टूबर के बीच आत्महत्या कर ली। ऐसी घटनाएं मन को सुन्न कर देती हैं। सरकार ने राहत पैकेज की घोषणा की थी लेकिन दिवाली बीत जाने पर भी यह सहायता किसानों तक नहीं पहुंच पाई। किसानों को शीघ्र मदद दी जाए और कर्ज माफी जैसे उपाय किए जाएं तो वह तनाव मुक्त होकर फिर से नई शुरूआत कर सकते हैं। हाल ही उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के भाषण के दौरान कुछ किसानों ने मांग की कि वह कर्ज माफी के बारे में बोलें। इस पर उन्होंने बताया कि 8 लाख करोड़ रुपए के बजट में से वेतन, पेंशन सहित विविध योजनाओं पर कितनी रकम खर्च होती है तथा किसानों से कर्ज माफी के मुद्दे पर धैर्य रखने की सलाह दी।
बजट में सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन पर 4 लाख करोड़ खर्च होते हैं। लाडकी बहीण को 45000 करोड़ रुपए देने पड़ते हैं। दिव्यांग, श्रवणबाल जैसी योजनाओं पर कुछ हजार करोड़ रुपए देते हैं। एआर अंतुले के मुख्यमंत्री रहते समय जिस योजना में 60 रुपए दिए जाते थे उसमें अब 1500 रुपए दिए जाते हैं। इस तरह अप्रत्यक्ष रूप से अजीत पवार ने बता दिया कि किसानों के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है। चुनाव के पहले किसान कर्ज माफी का वादा करनेवाले उससे मुकर रहे हैं। सरकार ने इस वर्ष सोयाबीन के लिए प्रति क्विंटल 5,328 रुपए गारंटी मूल्य घोषित किया है जबकि प्रति एकड़ उत्पादन पर लगभग 4500 रुपए प्रति एकड़ खर्च आता है। फसल की कटाई, सफाई और व्यवस्थापन पर लगभग 10,000 रुपए खर्च आता है।
इस तरह किसानों को 2,000 से 3,000 रुपए तक नुकसान उठाना पड़ता है। सरकार शासकीय खरीदी केंद्र शुरू नहीं कर रही है। 2025-26 के लिए तुअर की आधारभूत कीमत 8,000 रु। प्रति क्विंटल तय की गई। पिछले वर्ष की तुलना में यह 450 रुपए अधिक है लेकिन कृषि लागत भी तो बढ़ी है। तुअर उत्पादन पर 12 से 15 हजार रुपए प्रति एकड़ खर्च आता है। इसलिए उन्हें भी नुकसान है। मध्यम धागे के कपास का भाव 7710 रुपए तथा लंबे धागे के कपास का भाव 8,110 रुपए तय किया गया है। कपास की पैदावार पर प्रति क्विंटल 10,000 रुपए तक खर्च आता है। इसलिए कपास उत्पादक किसान भी घाटे में है। सरकार को यह भावांतर देना चाहिए ताकि क्षतिपूर्ति हो सके।
ये भी पढ़े: बांग्लादेश में आतंक की पाठशाला! भारत का भगोड़ा जाकिर नाइक बनेगा चीफ गेस्ट, यूनुस स्वागत को बेकरार
यह बात सही है कि कर्ज माफी से समस्या पूरी तरह हल नहीं हो सकती। 2008 में शरद पवार ने पहली बार कर्ज माफी दी थी। 2017 में देवेंद्र फडणवीस तथा 2019 में उद्धव ठाकरे ने कर्ज माफी दी लेकिन फिर भी किसान आत्महत्या नहीं रुकी। उद्योगपतियों के प्रति सरकार की स्थायी स्वरूप की योजनाएं हैं। उन्हें आसान दरों पर कर्ज दिया जाता है। उद्योग को घाटा हुआ तो पुराना कर्ज राइट ऑफ कर नया कर्ज दिया जाता है। सरकारी कर्मचारियों के लिए हर 10 वर्ष में नए वेतन आयोग का प्रावधान है। महंगाई बढ़ने के साथ उनका महंगाई भत्ता भी बढ़ा दिया जाता है लेकिन किसानों के लिए कोई अनुकूल नीति नहीं है। उन्हें धीरज रखने को कहा जाता है। ऐसा कब तक चलेगा?
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






