साल दर साल मानसून इतना मारक क्यों है ? (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: अतिवृष्टि प्रत्येक कुछ वर्षों में दोहराई जाने वाली, वह दर्दनाक दास्तान है, जिसके दुष्परिणाम साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं। मानसून बीते 3 महीनों में सामान्य से 5 फीसदी से ज्यादा बरस चुका है। सितंबर माह में पूरे देश में वर्षा का औसत आंकड़ा लगभग 168 मिलीमीटर रहता है पर इस बार यह 109 फीसदी बढ़ने का अनुमान है। मानसून में यह अचानक बढ़त भयाक्रांत करने वाली है। भूस्खलन, फ्लैश फ्लड, जलजनित बीमारियां, सर्पदंश, मनुष्यों और मवेशियों की मौतें, दुर्घटनाएं एवं आर्थिक नुकसान ये सब अतिवृष्टि की परिणतियां हैं। हिमाचल, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में बारिश से हालात बिगड़े हुए हैं। दिल्ली, राजस्थान और बिहार के कई हिस्से बुरी तरह प्रभावित हैं।
मुंबई, गुजरात और अन्य राज्यों में भीषण वर्षा ने लोगों को हलाकान कर दिया है, तो झारखंड, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना तथा पूर्वोत्तर के अधिकांश इलाके इससे त्रस्त हैं। विश्व बैंक का अध्ययन बताता है कि 2040 तक बाढ़ से प्रभावित आबादी पहले की तुलना में छह गुना बढ़कर ढाई करोड़ से अधिक हो जाएगी। ऐसे में इस महीने भीषण वर्षा का पूर्वानुमान चिंता बढ़ाने वाला है। केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में भारी वर्षा, बाढ़, बादल फटने और भूस्खलन से हुए नुकसान का आकलन करने के लिए अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय दल गठित किए हैं। प्रभावित राज्यों को तुरंत राहत सहायता देने हेतु 24 राज्यों को राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष से 10,000 करोड़ रुपये से अधिक और 12 राज्यों को लगभग 2,000 करोड़ रुपये जारी किए गए।
प्रधानमंत्री ने भी गहरी चिंता जताते हुए कहा है कि इस मानसून सीजन ने देश की कठिन परीक्षा ली है, पर भारत एकजुट होकर इसका सामना करेगा। प्रश्न यह है कि कैसे? भारत में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाला आर्थिक नुकसान लगातार बढ़ रहा है। 2013 से 2022 के बीच हर साल औसतन 66,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। अधिक बारिश और बाढ़ में ‘विकास’ भी बह जाता है। सड़कें, पुल, बिजली और जल आपूर्ति जैसी सार्वजनिक उपयोगिताएं तबाह हो जाती हैं और जीवित बचे लोगों का जीवन भी दूभर हो जाता है। हर साल हम औसतन 5,629 करोड़ रुपये की आर्थिक हानि और 1,700 से अधिक मौतों का सामना करते हैं। सवाल यही है कि इस आर्थिक, सामाजिक और मानवीय त्रासदी का स्थाई हल क्या है?
बचाव के उपाय कब लागू होंगे? सभी नगर निगमों को ‘स्टॉर्म वॉटर मैनेजमेंट मास्टर प्लान’ बनाना था कब बनेगा ? हर मकान और अपार्टमेंट में रूफ टॉप रेनवॉटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य करना था, यह कब तक पूरी तरह लागू होगा? स्मार्ट सिटी परियोजना में ड्रेन मैपिंग और उनका डिजिटलीकरण होना था। भूमिगत नालों और जल निकासी प्रणाली को जीआईएस तकनीक पर मैप करना था ताकि उनका अतिक्रमण रोका जा सके और समय रहते उनकी मरम्मत हो सके। इस पर प्रगति कहां पहुंची? नई कॉलोनियों में भूमिगत जलाशय बनाकर वर्षा जल को संचित करने और जलजमाव रोकने की योजना बढ़िया थी पर उसका क्या हुआ? शहरीकरण और सड़को के संजाल से सीमेंटेड सतह बढ़ गई है, जिससे वर्षा जल जमीन में नहीं समा पाता।
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भूस्खलन रोकने के लिए जियो-टेक्निकल इंजीनियरिंग अपनानी थी। रिटेनिंग वॉल, ड्रेनेज चैनल और बायो-इंजीनियरिंग तकनीक। कंप्यूटर मॉडलिंग से बाढ़ और जलजमाव की संभावनाओं का पूर्वानुमान लगाना था। इसके लिए डॉप्लर रडार, उपयुक्त सेंसर, डिजिटल हाइड्रोलॉजी तकनीक, सैटेलाइट और रिमोट सेंसिंग का प्रयोग करना था, जो नदियों का बहाव और भूस्खलन क्षेत्रों की वास्तविक समय की निगरानी कर सके।
लेख- संजय श्रीवास्तव के द्वारा