(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कहते हैं कि 64 कलाओं में से एक कला चोरी करना भी है। कुछ चोर नौसिखिए होते हैं तो कुछ शातिर! कोई धन चुराते हैं तो कोई दिल! बच्चे चोर-पुलिस का खेल खेलते हैं। आईएस जौहर की पुरानी फिल्म का नाम था- हम सब चोर हैं! एक अन्य फिल्म का नाम था- रूप की रानी, चोरों का राजा! अलीबाबा 40 चोर की कहानी हर किसी ने पढ़ी या सुनी है। अंग्रेजी की उल्लेखनीय फिल्मों में से एक थी- विट्टोरियो डी सीका की ‘बाइसिकल थीफ’! भगवान कृष्ण को भक्तजन प्रेम से माखन चोर कहते हैं।’’
हमने कहा, ‘‘आज आपके मन में चोरों के प्रति इतना प्रेम क्यों उमड़ आया? शास्त्रों में लिखा है कि चोरी करना पाप है। जो चीज अपनी नहीं है, उसे उठाने या चुराने की बात सोचनी भी नहीं चाहिए। संस्कृत में कहा गया है- इदं न मम अर्थात यह मेरा नहीं है। जब अन्याय चरम पर होता है तो चोर को छोड़कर संन्यासी को फांसी दी जाती है। चोरी की मूल वजह लालच है। किसी की परिश्रम से कमाई संपत्ति को चुराना कानूनी और नैतिक दृष्टि से गलत है।’’
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पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, खबर है कि रोम में एक ऐसा चोर पकड़ा गया जो एक बुजुर्ग के बेडरूम में चोरी करने के इरादे से घुसा लेकिन उसे वहां बुकशेल्फ में ‘गॉड्स ऐट सिक्स ओ क्लाक’ नामक पुस्तक नजर आई जो ग्रीक महाकाव्य ‘इलियड’ पर आधारित थी। उसे पुस्तक इतनी अच्छी लगी कि चोरी करना भूलकर वहीं बैठ गया और उस किताब को बड़ी तल्लीनता से पढ़ने लगा।’’
हमने कहा, ‘‘चोर अपने मकसद या उद्देश्य से भटक गया। जब चोरी करने आया था तो वही काम ढंग से करता। उसे किताब पढ़ने की क्या जरूरत थी? जो लोग अपना लक्ष्य भूल जाते हैं उनके लिए कहा गया है- आए थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास!’’
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पड़ोसी ने कहा, ‘‘मकान मालिक ने उस पुस्तक प्रेमी चोर को पुलिस के हवाले कर दिया। जब यह खबर जाहिर हुई तो पुस्तक के लेखक गियोवानी नुस्सी को बड़ी खुशी हुई कि चोर भी उसकी किताब को पूरे मनोयोग से पढ़ते हैं। उसने उस चोर से जेल में मिलने की इच्छा व्यक्त की और अपनी किताब की कॉपी चोर के पास भिजवाई ताकि वह उसे जेल में पूरी तरह पढ़ सके।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, चोरी कहां नहीं है। कुछ लोग साहित्यिक चोरी करते हैं। किसी अन्य लेखक की कहानी, कविता या शायरी अपने नाम से छपवा लेते हैं। रद्दी पेपर का धंधा करनेवालों के लिए अमूल्य पुस्तकें भी रद्दी कागज ही रहती हैं क्योंकि बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद!’’
लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा