(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कमल चुनाव चिन्ह वाली पार्टी बीजेपी का चम्पा के प्रति प्रेम उमड़ पड़ा है। यही वजह है कि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन 30 अगस्त को बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं।’’
हमने कहा, ‘‘चम्पा, चमेली, जूही, मोगरा, गेंदा, गुलाब जैसे कितने ही फूल प्रकृति की शोभा बढ़ाते हैं। विदेशी फूलों में ट्यूलिप, आर्किड, झरबेरिया आदि के नाम से लोग परिचित हैं। चम्पा का फूल लाल या सफेद होता है। चम्पा की वजह से चंपई नाम रखा गया होगा। माता-पिता चाहते तो उनका नाम चंपालाल भी रख सकते थे। छत्तीसगढ़ के मशहूर कवि पवन दीवान संन्यासी थे और दिसंबर माह की ठंड में भी उघाड़े बदन खड़े होकर कवि सम्मेलन के मंच से शृंगार रस की कविता सुनाते थे- एक थी लड़की मेरे गांव में, चम्पा जिसका नाम था।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, मुद्दा यह है कि चंपई सोरेन बीजेपी की बारात का दूल्हा बनने का अरमान रखते हैं। वे चाहते हैं कि जिस तरह महाराष्ट्र में बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया वैसे ही उन्हें भी बीजेपी झारखंड का सीएम बना दे। चंपई ने अपनी इस चाह को अमित शाह के सामने व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यदि उन्हें झारखंड का सीएम बनाया गया तो वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के कई नेताओं को अपने साथ ला सकते हैं।’’
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हमने कहा, ‘‘बीजेपी ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं। पार्टी का कहना है कि महाराष्ट्र में स्थिति अलग थी। वहां एकनाथ शिंदे अपने साथ शिवसेना के विधायकों को तोड़ कर लाए थे। अगर चंपई अपने साथ बहुमत के लिए जरूरी विधायक लाने में सफल होते हैं तो उसके बाद ही मुख्यमंत्री पद पर कोई चर्चा हो सकती है। इस समय बीजेपी यही आश्वासन दे सकती है कि उन्हें चुनावी जीत मिलने पर मुख्यमंत्री के समान ओहदा दिया जाएगा। वह बीजेपी में विधिवत रुप से शामिल हो जाएं जिससे उनकी और बीजेपी की एकीकृत ताकत से विधानसभा चुनाव लड़ा जाए।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, चंपई के पास दूसरा कोई रास्ता भी नहीं है। हेमंत सोरेन ने जेल से बाहर आते ही फिर से मुख्यमंत्री पद संभाल लिया। ऐसे में चंपई न घर के रहे, न घाट के! डूबते को तिनके का सहारा कहावत के मुताबिक चंपई को बीजेपी का ही आसरा है। बीजेपी चाहे तो चंपई को चैंपियन बना दे या फिर उनकी चंपी मालिश कर दे! जब नेता दूसरों पर निर्भर रहकर निराश होता है तो उसके दिल से आवाज निकलती है- हम थे जिनके सहारे, वो हुए ना हमारे, डूबी जब दिल की नैया, सामने थे किनारे!’’
लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा