गूगल के भरोसे रहे तो खा जाएंगे धोखा (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: गूगल मैप्स या नेवीगेशन एप से छोटे और सीधे रास्ते ढूंढने के चलते लोग किसी बंद गली, कीचड़, गड्ढे यहां तक कि नहर या नदी में जा गिरते हैं। ऐसी दर्जनों दुर्घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें लोगों को गूगल द्वारा भटकाए गए रास्ते के कारण अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा है। आखिर हम इतने असहाय क्यों हो गए हैं कि जिन रास्तों और जगहों से हम सदियों से वाकिफ रहे हैं, अब उन्हीं रास्तों को गूगल के जरिए न सिर्फ खोज रहे हैं बल्कि आंख मूंदकर भरोसा कर रहे हैं। सोशल मीडिया के साथ-साथ अब एआई भी तहलका मचाने को तैयार खड़ा है- क्या हुकुम है मेरे आका? चैट जीपीटी हमें जानकारी देने को बेताब है, तो हम सहयोगी टूल गूगल के कारण अपनी जान तक गंवा रहे हैं। मोबाइल, लैपटॉप या कार के डैशबोर्ड पर लगी स्क्रीन पर अपनी डेस्टिनेशन डाली और चल पड़े।
कभी गूगल हमें नदी में ले जाता है, कभी किसी बंद गली में लाकर छोड़ देता है, तो कभी हम किसी गांव से दूर जंगल में इस कदर भटक जाते हैं कि रास्ता किधर है, कुछ पता नहीं चलता? हद तो यह है कि यही गूगल कभी पुलिस को दूसरे राज्य में ले जाकर उसे जनता से पिटवा देता है। गूगल जब भटकाता है तब हमें याद आता है कि हम फंस गए हैं और हम मदद के लिए किसी को तलाशते हैं। गूगल से रास्ता पूछना और उस रास्ते को बिना जाने-परखे शब्दशः फॉलो करना ठीक वैसा ही है जैसे किसी नंबर पर फोन लगाकर सीधे बात करना, यह जाने बिना कि सामने कौन है? देश का हर नागरिक, यहां तक कि बच्चे भी लोकेशन या गूगल मैप पर निर्भर हो गए हैं। पता पूछने और तथ्यात्मक जानकारी रखने की परंपरा गूगल की भेंट चढ़ चुकी है। गूगल के मैप और लोकेशन का सहारा आज हर कोई ले रहा है।
शादी-विवाह हो तो कार्ड पर विवाहस्थल की लोकेशन, अंतिम संस्कार के लिए श्मशान में पहुंचना हो तो शोकसंदेश के साथ श्मशान की लोकेशन, बाजार में किसी दुकान पर जाना हो तो उसकी लोकेशन, गूगल मैप के साथ हाजिर है। यहां तक कि प्रेमी प्रेमिका भी अब लोकेशन से प्रेम को पनपा रहे हैं। इतना होने के बाद भी हम लोकेशन या गूगल मैप के कारण धोखा खाते हैं और भारी नुकसान उठाते हैं। जो कि कई बार यह हमारी जान पर भी बन आता है। यह समस्या अब साइबर विशेषज्ञों को भी परेशान कर रही है। इसके लिए पहले यह देखना होगा कि गूगल काम कैसे करता है और हमारी मदद कैसे करता है? गूगल पर जब हम कुछ सर्च करते हैं या फिर उससे कहते हैं कि हमें दिल्ली के कनाट प्लेस ले चलो अथवा नैनीताल की सब्जी मंडी में ले चलो, तो हमें जो जानकारी मिलती है, वह पूरी तरह से तकनीक पर आधारित होती है।
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जिस जीपीएस के माध्यम से हम यहां पहुंचते हैं वह नक्शा एल्गोरिद्म पर आधारित होता है। यह पूर्व में सुरक्षित किए गए डेटा के आधार पर हमें बताता है कि यह रास्ता है। वह शॉर्टकट और बेहतर रास्ता तो बताता है, पर इन रास्तों में हुआ कोई नया डेवलपमेंट नहीं बताता। गूगल मैप हमें पूर्व में सुरक्षित नक्शे से रास्ता बताता है। जबकि कई बार यह कि जिस रास्ते पर हम जा रहे हैं, उस रास्ते पर कोई दुर्घटना या बाधा मौजूद होती है तो इन समस्याओं को गूगल मैप हमें नहीं दिखाता। नतीजा होता है-दुर्घटना।
ऐसा नहीं है कि गूगल का जीपीएस सिस्टम हमेशा गलत हो, वह 100 में 20 प्रतिशत छोड़कर हमेशा से सही रास्ते और उस पर क्या है, हमें बताता है। हां, जहां पर जीपीएस सिस्टम या तो कमजोर हो या फिर यहां पर डेटा अपडेट नहीं किया गया हो, वहां तथ्यों के गलत होने की आशंका होती है। यह वह जगह होती है, जो गांव का बहुत अंदरुनी हिस्सा हो, पहाड़ का नो नेटवर्क इलाका हो, तालाब-नदी का वह हिस्सा जो गूगल मैप अपडेट नहीं हुआ हो।
लेख-मनोज वार्ष्णेय के द्वारा