उम्मीदों और चुनौतियों के बीच नया वर्ष शुरू होने (New Year Challenges For India) जा रहा है. खास तौर पर यह देखना होगा कि क्या इसमें उन समस्याओं का समाधान निकलता है जिनसे विश्व जूझ रहा है. यदि भारत की स्थिति पर ध्यान केंद्रित कर विचार करें तो अप्रैल में होनेवाले लोकसभा चुनाव पर बहुत कुछ निर्भर रहेगा. क्या प्रधानमंत्री मोदी को जवाहरलाल नेहरू के समान तीसरा कार्यकाल मिलेगा? मोदी और बीजेपी को इसे लेकर पूर्ण आत्मविश्वास है. पार्टी तो अभी से अपने उम्मीदवार भी तय करने लगी है. इसके विपरीत विपक्षी पार्टियों का ‘इंडिया’ गठबंधन अभी तक सर्वसम्मति से अपना पीएम का चेहरा और समान न्यूनतम कार्यक्रम भी तय नहीं कर पाया.
यह बात अलग है कि ममता बनर्जी ने खड़गे का नाम आगे बढ़ाया और केजरीवाल ने उसका समर्थन कर दिया. बाकी घटक दलों की राय सामने नहीं आई है. अटकलें लगा दी है कि नीतीशकुमार एनडीए में लौट सकते हैं और तेजस्वी यादव बिहार के सीएम बन जाएंगे. जैसा नजारा राज्य विधानसभाओं के चुनाव में देखा गया वही स्थिति आम चुनाव में भी रहेगी अर्थात मोदी के चेहरे और उनकी गारंटी पर चुनाव होंगे. महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का जटिल मुद्दा तथा विधायकों की अपात्रता का प्रश्न किस नतीजे पर पहुंचेगा? बीजेपी ने अपनी कूटनीति से शिवसेना और एनसीपी को तोड़कर खुद की राह आसान कर ली है.
यदि मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते हैं तो लोकतंत्र में विपक्ष की स्थिति पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा. संसद के शीत सत्र में रिकार्ड संख्या में विपक्षी सांसद निलंबित किए गए. अपनी मेजारिटी के चलते मोदी सरकार ध्वनिमत से कोई भी विधेयक तुरंत पारित कर लेती है. ऐसी हालत में संसदीय बहस इतिहास बनकर रह जाएगी. केंद्र सरकार का ताकतवर होना विदेश में भारत की साख मजबूत करता है. नए वर्ष में बांग्लादेश में चुनाव हैं और पाकिस्तात में भी नई सरकार आ सकती है.
चीन का आक्रामक और घेराबंदी करनेवाला रवैया आगे भी चुनौती बना रहेगा. चीन ने पाकिस्तान, श्रीलंका और मालदीव में पैठ जमा रखी है. अमेरिका और कनाडा से संबंधी भी कसौटी पर होंगे. रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा इजराइल हमास युद्ध में भी भारत से कूटनीतिक हस्तक्षेप की उम्मीद पश्चिमी ताकते कर सकती हैं लेकिन भारत को इसमें उलझने की बजाय घरेलू मोर्चे पर ध्यान देना बेहतर रहेगा.
नए वर्ष के नवंबर के प्रथम सप्ताह में अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव होगा. मोदी का ट्रंप के साथ समीकरण बन गया था जबकि बाइडन के साथ उतना गहरा तालमेल नहीं हो पाया. खालिस्तानी मुद्दे पर अमेरिका और कनाडा के रवैये पर सतर्क रहना होगा. सबसे बड़ी चीज है अर्थव्यवस्था जिसकी प्रगति के लिए भारत आशान्वित है. कोर सेक्टर में अच्छे प्रदर्शन के बावजूद महंगाई की समस्या चुनौती बनी हुई है.