मानसून का असर (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: उत्तरकाशी में बारकोट-यमुनोत्री हाईवे के सिलाई बैंड पर एक रिसोर्ट व सड़क का निर्माण करने हेतु 29 मजदूर मौजूद थे। तेज बारिश पड़ रही थी व रात का समय था, इसलिए मजदूर टिन व प्लाईवुड से बने शेल्टर में शरण लिए हुए थे। अचानक बादल फटा, भयंकर बाढ़ आ गई और जबरदस्त भूस्खलन हो गया। 20 मजदूर अपनी जान बचाने में सफल रहे, लेकिन शेष 9 बाद में बह गए। खराब रोशनी व खतरनाक भू-खंड के कारण राहत कार्य को कई बार रोकना पड़ा। इस साल मानसून के पहले माह जून में उत्तराखंड में 65 मौतें हो चुकी हैं, जो कि पिछले साल इसी अवधि में हुई 32 मौतों से दोगुनी से भी अधिक हैं, जबकि 18 व्यक्ति लापता हैं।
सड़क दुर्घटनाओं व प्राकृतिक आपदाओं में मौतों में 100 प्रतिशत वृद्धि से चितित दून-स्थित थिंक टैंक एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल का कहना है, ‘राज्य सरकार को हर आपदा को अकेले में देखना बंद करना चाहिए। चूंकि मानसून जुलाई व अगस्त में अधिक तीव्र हो जाएगा, इसलिए जरूरत एक्शन की है, न कि केवल दुःख व्यक्त करने व घोषणाएं करने की।’
मानसून का कहर केवल उत्तराखंड में ही नहीं है। हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के कारण भूस्खलन व फ्लैश फ्लड्स से 100 से अधिक सड़कें ब्लॉक हो गई हैं। हिमाचल प्रदेश में बारिश से संबंधित घटनाओं में अब तक 20 लोगों की मौत हो चुकी हैं और भारी बारिश के कारण चार जिलों में स्कूलों को बंद करना पड़ा है। देश के अन्य राज्यों से भी बाढ़, बादल फटने आदि की रिपोर्ट्स मिल रही हैं। जब 204।5 मिमी से अधिक भारी बारिश होने का अंदेशा होता है, तो रेड अलर्ट जारी किया जाता है।
मौसम विभाग येलो अलर्ट (64.5-115.5 मिमी बारिश) और ऑरेंज अलर्ट (115.6-204.4 मिमी बारिश) भी जारी करता है। मात्र 37 दिनों में मानसून ने पूरे भारत को कवर कर लिया है, जबकि ऐसा करने के लिए वह औसतन 38 दिन (1) जून से 8 जुलाई) लेता है। 2013 में मानसून ने पूरे देश को मात्र 16 दिन में कवर कर लिया था।
केरल में मानसून आमतौर से 1 जून को आता है, लेकिन इस बार 8 दिन पहले 24 मई को ही आ गया। दिल्ली में अनुमान से 2 दिन पहले 29 जून को ही मानसून आ गया। अनेक राज्यों, पहाड़ों, तटीय व मैदानी क्षेत्रों में भारी बारिश हो रही है, जगह-जगह पानी भर रहा है। ओडिशा में बुढ़ाबलंग, सुबर्णरेखा, जलाका व सोनो जैसी नदियां खतरे के निशान से ऊपर केरल में मुल्लापेरियार बांध के 13 शटर्स को बह रही हैं। आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ जैसी स्थिति है। बढ़ते जलस्तर के कारण खोलने पड़े हैं।
मानसून ने राजधानी दिल्ली व उत्तर-पश्चिम भारत के शेष भागों को एक समान दिन (29 जून) कवर किया है। पिछली बार 11 जुलाई 2021 को ऐसा हुआ था। इससे पहले 16 जून 2013 को ऐसा हुआ था और उस दिन केदारनाथ, उत्तराखंड में बादल फटने व फ्लैश फ्लड्स के कारण भयंकर आपदा आई थी, जिसमें हजारों लोग अपनी जान गंवा बैठे थे। आईएमडी डाटा से मालूम होता है कि 29 जून 2025 तक संचित मानसून वर्षा सामान्य से 8 प्रतिशत अधिक हुई और इस अवधि में उत्तर-पश्चिम व केंद्रीय भारत में क्रमशः 37 प्रतिशत व 24 प्रतिशत बारिश अधिक हुई, जिससे खरीफ फसल बुआई को पिछले साल जून की तुलना में अधिक प्रोत्साहन मिला।
हालांकि 29 जून 2025 तक उत्तरपूर्व भारत व दक्षिण प्रायद्वीप में क्रमशः 16.7 प्रतिशत व 1.7 प्रतिशत कम बारिश रिपोर्ट की गई, लेकिन उसने देश में खरीफ फसल के कुल क्षेत्रफल को प्रभावित नहीं किया। इस बीच आईएमडी ने भविष्यवाणी की है कि उत्तर-पश्चिम, केंद्रीय, पूर्व व उत्तरपूर्व भारत में अगले सात दिनों में ‘भारी से अति भारी बारिश’ होगी और झारखंड, उत्तर ओडिशा व पश्चिम बंगाल के गांगेय क्षेत्र के कुछ अलग-अलग हिस्सों में अगले दो दिन में बहुत ही भयंकर बारिश होगी। क्योंकि उत्तर-पश्चिम बंगाल की खाड़ी पर चक्रवाती परिसंचरण का लो-प्रेशर एरिया बन गया है। इस चक्रवात के पश्चिम-उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ने की आशंका है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मानसून की तेज मूसलाधार बारिश देश के अनेक क्षेत्रों में कहर बरपा रही है।
लेख- नौशाबा परवीन के द्वारा