लगातार उछलता जा रहा सोना (सौ. सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, जिन लोगों ने सोने में इन्वेस्टमेंट किया था, उन्हें बहुत अच्छा और उम्मीद से ज्यादा मुनाफा हो रहा है।5 वर्षों में गोल्ड में 200 प्रतिशत रिटर्न मिला है।अभी दशहरा और फिर धनतेरस-दिवाली तक यह और ऊंची छलांग लगाएगा.’ हमने कहा, ‘सोना घरेलू बचत या बैंकिंग का पुराना माध्यम रहा है।महिलाओं को स्वर्णाभूषण बहुत लुभाते हैं।यह समृद्धि का प्रतीक है।इतिहास में गुप्त काल को स्वर्णयुग या गोल्डन एज कहा गया है।प्राचीनकाल में स्वर्ण मुद्राएं चला करती थीं जिन्हें अशर्फी कहा जाता था।भारत को सोने की चिड़िया कहते थे क्योंकि तब मथुरा और रोम के बीच व्यापार संबंध था।
तब भारत से रेशम भेजा जाता था जिसके बदले रोम के शासक सोने में भुगतान करते थे।हमारे सभी राजा-महाराजा सोने का मुकुट पहनते थे।विक्रमादित्य सोने के सिंहासन पर बैठते थे।तख्त-ए-ताऊस भी स्वर्ण निर्मित था।आज भी औसत रूप से हर भारतीय परिवार के पास 5 तोला सोना तो जरूर होगा.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, एशिया महाद्वीप में कभी सोना ही सोना था।रावण की सोने की लंका हनुमान ने जला दी थी।द्वारका में रहनेवाले सत्राजित ने अपनी तपस्या से सूर्य को प्रसन्न कर वरदान में स्यामंतक मणि पाई थी जो रोज ढेर सारा सोना उगलती थी।कहते हैं कि पारस पत्थर के स्पर्श से लोहा भी सेाना बन जाता था।
ग्रीक राजा मिडास ने देवता से वरदान मांगा था कि वह जिस चीज को हाथ लगाए वह सोने की बन जाए।तब उसका भोजन और पानी सोने में परिवर्तित हो गया और छूते ही उसकी बेटी सोने की पुतली बन गई तो वह पछताया और उसकी प्रार्थना पर भगवान ने वरदान वापस ले लिया।अब वैज्ञानिकों ने लैब में पारे से सोना बनाया है।इसकी प्रक्रिया काफी जटिल है और लागत भी ज्यादा आती है।पहले भी सोना बनाने का साइंस रहा होगा तभी तो ऐसा करनेवाले को अंग्रेजी में अलकेमिस्ट और उर्दू में कीमियागर कहा जाता है।
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यह शब्द यूं ही नहीं बने.’ हमने कहा, ‘लगभग 50 वर्ष पहले जब सोना सस्ता था तब स्वर्णसुंदरी नामक फिल्म आई थी जबकि अब परमसुंदरी नाम की फिल्म बनी है.’ हमने कहा, ‘सोने को लेकर पंकज उधास ने गाया था- सोने जैसा रंग है तेरा, चांदी जैसे बाल! एक फिल्मी हीरोइन ने भी गाया था- सोना ले जा रे, चांदी ले जा रे, दिल कैसे दूंगी परदेसी कि बड़ी बदनामी होगी!’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा