आज का निशानेबाज (सौ.सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, देशवासियों ने 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया लेकिन कितने ही रूढि़वादी परिवारों में आज भी महिलाएं चौके-चूल्हे और बच्चों की देखभाल से बाहर नहीं निकलने दी जाती हैं. महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य को छोड़ दें तो हिंदी भाषी राज्यों में पिछड़ापन कुछ ज्यादा ही है. छत्तीसगढ़ में 6 महिलाएं पंचायत के लिए चुनी गईं लेकिन उनकी बजाय उनके पतियों ने पंच पद की शपथ ली।
यह कैसा विरोधाभास है!’’ हमने कहा, ‘पंचायती राज प्रणाली में 50 प्रतिशत महिला आरक्षण होने पर भी इस तरह की धांधली चल रही है. महाभारत में द्रौपदी के 5 पति थे लेकिन अब पंचायत राज में पंचपति अपनी मर्जी चला रहे हैं. महिला आरक्षण का कानून होने से लोग अपनी पत्नी के नाम से फार्म भरकर उसे चुनाव जिता देते हैं फिर जीत का प्रमाणपत्र खुद लेकर खुशियां मनाते हैं. पंचायत आफिस में जाकर खुद शपथ लेते हैं।
एक पंच ने दलील दी कि उसकी पत्नी अनपढ़ है और वह खुद एसएससी पास है इसलिए वह प्रस्तावों के बारे में पत्नी को समझाकर उसकी सहमति ले लिया करेगा. कुछ पंचपतियों ने पत्नि के बीमार होने या किसी रिश्तेदार की मौत पर पत्नी के वहां चले जाने का बहाना बनाया.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, जब तक शिक्षा का प्रसार नहीं होगा और पुरुषवादी मानसिकता का वर्चस्व बना रहेगा तब तक महिला आरक्षण का इसी तरह मखौल बनता रहेगा. पंचपति ही प्रस्ताव रखेंगे, फैसला करेंगे और ठप्पा लगाएंगे।
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ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि महिलाएं अंगूठा छाप न रहें. उन्हें उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में समझाया जाना चाहिए.’ हमने कहा, ‘यह तो बाद में होता रहेगा. सबसे पहले पंचायत के लिए चुनी गई महिलाओं को बुलाकर उन्हें शपथ दिलाई जाए. उनके पतियों को हस्तक्षेप न करने की हिदायत दी जाए और पंचायत के सीईओ नियम पालन को लेकर सख्ती दिखाएं. काम करते-करते महिला पंच खुद ही कुशल बन जाएंगी।