देश में सिर चढ़कर बोल रहा भ्रष्टाचार (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: आगरा जिले के गांव नागला कादियान की 35 वर्षीय कृष्णा कुमारी ने फतेहाबाद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) पर 2017 में अपने बच्चे को जन्म दिया था. लेकिन उन्हें मालूम न था कि वह इसी केंद्र पर 2021 व 2023 के बीच 30 महीनों के भीतर ’25 अन्य बच्चों को जन्म देंगीं और इस दौरान उनकी 5 बार ‘नसबंदी’ भी हो जाएगी. हाल के वित्तीय ऑडिट में यह असंभव डाटा प्रकाश में आया है।
जाहिर है यह ‘कागजी खानापूर्ति’ केंद्र में तैनात सरकारी कर्मचारियों ने नेशनल हेल्थ मिशन (एनएचएम) द्वारा संचालित योजनाओं में घोटाला करके पैसा ऐंठने के लिए की. बेचारी कृष्णा कुमारी को तो यह भी नहीं मालूम कि फर्जी कागजात के जरिए उसके नाम से बैंक खाता खोला गया, जिसमें सरकारी योजना के तहत 45,000 रुपये आए, जिन्हें घोटालेबाजों ने निकाल लिया. इस सिलसिले में पांच व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, जिनमें से चार स्वास्थ्य विभाग के ही कर्मचारी हैं और पांचवां कृष्णा कुमारी के गांव का व्यक्ति है, जिसने उनके नाम का बैंक खाता खोला और सरकारी पैसा निकाला।
आगरा जिले में ही तीन अन्य महिलाओं का मामला प्रकाश में आया है, जिन्होंने 2021 व 2023 के बीच ’53 बच्चों को जन्म दिया और 9 बार उनकी नसबंदी हुई’. सुनीता सिंह (55), मछला देवी (45) व राजकुमारी (44) को भी नहीं मालूम कि उन्होंने यह ‘चमत्कार’ किया है और इसके लिए उन्हें 90,000 रूपये से अधिक सरकार ने जननी सुरक्षा योजना व महिला नसबंदी पहल योजनाओं के तहत दिए हैं. इन योजनाओं में आमतौर से ग्रामीण डिलीवरी के लिए 1,400 रूपये, 1,000 रूपये शहरी डिलीवरी के लिए और 2,000 रूपये नसबंदी के लिए आर्थिक सहयोग दिया जाता है।
अनुमान है कि देश के अन्य अनेक केंद्रों पर भी इस किस्म के घोटाले हो रहे होंगे, क्योंकि इस कोशिश में बहुत लोग लगे रहते हैं कि सरकारी योजनाओं का लाभ हकदारों तक पहुंचने की बजाय उनकी जेब में चला जाए।यह सब सरकारी कर्मचारियों व दलालों की सांठगांठ से होता है। अब लगभग सभी चुनाव कैश ट्रांसफर के वायदों पर लड़े जा रहे हैं, जिन्हें मुफ्त की रेवड़यां भी कहा जाता है. सोचने की बात भी है कि क्या गरीबों की पहचान का दुरुपयोग करके भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी केवल स्वास्थ्य योजनाओं में ही घोटाला कर रहे होंगे या अन्य कल्याणकारी योजनाओं का भी यही हाल है? हम बिहार का चारा घोटाला, अनेक राज्यों में मिड-डे मील घोटाले देख चुके हैं।
गांवों में महिलाओं का बैंक खाता इस वायदे से खुलवाता है कि उन्हें सरकारी लाभ मिलेगा। इन खातों को संबंधित महिलाएं कभी ऑपरेट नहीं करती हैं। फिर सरकारी कागजों में चढ़ा दिया जाता है कि इन महिलाओं ने बच्चे को ‘जन्म’ दिया है या इनकी ‘नसबंदी’ हुई है। फलस्वरूप इनके खाते में सरकारी योजनाओं का पैसा ट्रांसफर हो जाता है, जिसे निकालकर घोटालेबाज आपस में बांट लेते हैं।
भारत की सामाजिक कल्याण योजनाओं में डिजिटल परिवर्तन लाने का उद्देश्य बीच में से दलालों को निकालना था, ताकि सीधे लाभार्थी तक कैश पहुंच सके. लेकिन जिन लोगों तक इस लाभ को पहुंचाना था, उनमें टेक साक्षरता की स्थिति दयनीय है, जिसका अर्थ है कि डाटा एंट्री की टेक दुकानें नई दलाल बन गई हैं। डिजिटलीकरण ने कल्याण प्रक्रिया को व्यक्ति से ऑनलाइन एप्लीकेशन में बदल दिया, जिससे सरकार और लाभार्थी के बीच का सीधा संपर्क हट गया. नतीजतन घोटालेबाजों के लिए शिकार करना आसान हो गया। दूसरी समस्या योजनाओं की भरमार है। केंद्र सरकार 2024 से मातृत्व स्वास्थ्य के लिए 12 योजनाएं चला रही हैं।
नवभारत विशेष से जुड़े सभी रोचक आर्टिकल्स पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
जननी स्वास्थ्य योजना तो 2005 से चल रही है, जिसका फायदा भी हुआ है कि मातृत्व मृत्यु दर (मातृत्व मृत्यु प्रति लाख जीवित जन्म) 384 (2000) से घटकर 97 (2020) रह गई है, लेकिन उत्तर प्रदेश में भारत के मातृत्व मृत्यु दर का बोझ 35 प्रतिशत है. इससे जाहिर है कि लीकेज को रोका नहीं जा सका है. इतनी सारी योजनाओं के बावजूद हाल के दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान गर्भवती महिलाओं के लिए अतिरिक्त कैश ट्रांसफर का वायदा किया गया था। बीजेपी ने गर्भवती महिला को 21,000 रुपये देने का वायदा किया है. हर महिला के लिए प्रतिमाह 2500 रूपये का भी वायदा है और लड़की की शादी करते समय 1,00,000 रूपये का वायदा है।
लेख- डॉ अनिता राठौर के द्वारा