
प्रतीकात्मक फोटो, सोर्स- सोशल मीडिया
NHM Report on Newborn Deaths Chhatarpur: मध्य प्रदेश के छतरपुर जिला अस्पताल में पिछले 8 महीनों में 409 बच्चों की मौत से हड़कंप मच गया है। नेशनल हेल्थ मिशन (NHM) ने रिपोर्ट तलब की है, जबकि प्रशासन इसे ‘तकनीकी खामी’ बताने में जुटा है।
मध्य प्रदेश के छतरपुर से एक ऐसी विचलित कर देने वाली खबर सामने आई है, जिसने सरकारी स्वास्थ्य दावों की पोल खोल दी है। सरकारी फाइलों के सफेद पन्नों पर 409 मासूमों की मौत का काला सच दर्ज है। महज 8 महीनों के भीतर एक ही अस्पताल में मची इस चीख-पुकार ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। आखिर इन मौतों के पीछे की असली कहानी क्या है?
आंकड़ों का खौफनाक सच यह कोई सामान्य आंकड़ा नहीं है, यह 409 परिवारों के बुझे हुए चिरागों की कहानी है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस साल अप्रैल महीने से लेकर अब तक छतरपुर जिला अस्पताल में 409 बच्चों की जान जा चुकी है। जब यह खबर राजधानी तक पहुँची, तो नेशनल हेल्थ मिशन (NHM) विभाग ने तुरंत एक्शन लेते हुए स्थानीय स्वास्थ्य प्रबंधन से विस्तृत रिपोर्ट की मांग की है। अस्पताल के गलियारों में पसरा सन्नाटा अब इन मासूमों की मौत के कारणों पर जवाब मांग रहा है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. आरपी गुप्ता ने इस स्थिति की पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि वरिष्ठ अधिकारियों से मिले नोटिस के बाद एक विशेष जांच टीम का गठन किया गया है। सस्पेंस इस बात को लेकर है कि आखिर इतने बड़े पैमाने पर मौतें होती रहीं और प्रशासन अब जाकर जागा है। CMHO का दावा है कि जांच लगभग पूरी हो चुकी है, लेकिन सवाल वही है- क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी?
घटना का सबसे चौंकाने वाला पहलू ‘लापरवाही’ है। जांच के दौरान SNCU (Special Newborn Care Unit) और लेबर रूम के स्टाफ को शक के घेरे में लिया गया है। उनसे कड़ी पूछताछ की जा रही है। सूत्रों के अनुसार, सिविल सर्जन ने हाल ही में लापरवाही बरतने के आरोप में कुछ कर्मचारियों को पद से हटा दिया है। यह कार्रवाई साफ संकेत देती है कि अस्पताल के भीतर सब कुछ ठीक नहीं था और मासूमों की जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा था।
मौतों की गहराई तक जाने के लिए स्वास्थ्य विभाग अब ‘वर्बल ऑटोप्सी‘ (Verbal Autopsy) का सहारा ले रहा है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मृत बच्चों के परिजनों से बात कर यह समझने की कोशिश की जाती है कि आखिर किस स्तर पर चूक हुई। क्या मौत अस्पताल के भीतर हुई, या रास्ते में, या फिर इलाज की देरी के कारण? यह जांच टीम अब हर उस मां की चीख को रिकॉर्ड कर रही है जिसने अपना बच्चा खोया है, ताकि मौतों के सही पैटर्न का पता लगाया जा सके।
प्रशासन ने इन मौतों के पीछे कई तकनीकी और सामाजिक तर्क दिए हैं। अधिकारियों का कहना है कि ग्रामीण इलाकों से गर्भवती महिलाओं को अस्पताल लाने में देरी होती है। साथ ही, बाहरी स्वास्थ्य केंद्रों (पेरी-फेरी) से समय पर मरीजों को रेफर न करना और एंबुलेंस की कमी भी एक बड़ी वजह बनकर उभरी है। इसके अलावा, कुछ बच्चों में जन्मजात समस्याएं और अस्पताल पहुंचने के बाद प्रसव प्रक्रिया में होने वाला विलंब भी इन मासूमों की जान पर भारी पड़ा है।
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हड़कंप मचने के बाद अब स्वास्थ्य अधिकारी दावा कर रहे हैं कि मॉनिटरिंग बढ़ा दी गई है। उनका कहना है कि अब मृत्यु दर का प्रतिशत घटकर 6% से नीचे आ गया है। लेकिन 409 बच्चों की मौत के बाद आया यह सुधार क्या उन पिताओं और माताओं का दुख कम कर पाएगा? छतरपुर की यह घटना चीख-चीख कर कह रही है कि अगर समय रहते व्यवस्थाएं दुरुस्त की जातीं, तो शायद इन मासूमों के जनाजे नहीं उठते।






