
स्पेस स्टेशन (डिजाइन फोटो)
Global Space Station Competition: दुनियाभर में अंतरिक्ष स्टेशनों के निर्माण की होड़ तेज हो रही है, अमेरिका, चीन, यूरोप, जापान, कनाडा जैसी शक्तियों के साथ-साथ निजी कंपनियां धरती की निचली कक्षा और चंद्रमा के चारों ओर स्टेशन बनाने की होड़ में हैं। एक दशक बाद जब भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन कार्यरत होगा, तब अंतरिक्ष स्टेशनों की तादाद 7 तक पहुंच चुकी होगी और अगले आधे दशक में संभवतः ये दर्जनभर हों। नासा निर्मित इंटरनेशनल अंतरिक्ष स्टेशन 2031 में प्रशांत महासागर में गिराकर नष्ट कर दिया जाएगा तय है, इसके नष्ट होने के बाद उसकी जगह लेने के लिए इतने सारे स्टेशनों की आवश्यकता क्यों?
बोइंग, सिएरा स्पेस के साथ ब्लू ओरिजिन ‘ऑर्बिटल रीफ’, एक्सिओम स्पेस तथा वास्ट ‘हेवन-1’ अंतरिक्ष स्टेशन विकसित करने में लगे हैं। विभिन्न देशों के साथ-साथ निजी कंपनियों का इस क्षेत्र में कूदना बताता है कि जरूर इसका जबर्दस्त आर्थिक पहलू भी होगा। अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण भारी लागत वाला है। क्या यह संबंधित देश और कंपनियों की लागत के अनुरूप लाभ दे सकेगा या यह कारगुजारी दूसरे देश से अंतरिक्ष के क्षेत्र में बाजी मार ले जाने की सनक के लिए ही है?
तकरीबन तय है कि 2035 में अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित हो चुका होगा। अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना केवल राष्ट्रीय गौरव, अपनी वैज्ञानिक प्रगति का दिखावा, अंतरिक्ष यात्रियों को वहां भेजने भर का माध्यम नहीं हैं। ये भू-राजनीतिक वर्चस्व, चंद्रमा मंगल अभियानों के लिए आधारभूत ढांचा तैयार करने और भविष्य की आर्थिक संभावनाओं, व्यावसायिक लाभ हेतु भी है, अंतरिक्ष स्टेशन किसी भी देश की वैज्ञानिक क्षमता, इंजीनियरिंग दक्षता और कक्षीय संचालन योग्यता को प्रमाणित करते हैं।
इससे अंतरिक्ष में लगातार बने रहना संभव होता है, जो भविष्य में अंतरिक्ष खनन, चंद्र संसाधनों के दोहन, गहन अंतरिक्ष अनुसंधान और भविष्य के मानव मिशनों के लिए अनिवार्य है। भारत सहित कई देश मून मिशन में लगे हुए हैं। चंद्रमा पर बेस बनाने या बस्ती बसाने से पहले ये स्टेशन ही प्रशिक्षण के काम आएंगे, अंतरिक्षीय पर्यटन का बाजार बढ़त पर है, 2030 के बाद यह सैकड़ों अरब डॉलर का उद्योग होगा।
निजी कंपनियों की निगाह इस पर है और उसके लिए अंतरिक्ष स्टेशन अनिवार्य हैं। पहले यात्री यहां आएंगे और फिर आगे का सफर तय करेंगे, अंतरिक्षीय युद्ध के हौव्वे के बीच कई देशों के लिए ये रक्षा संबंधी आवश्यकता पूर्ति करने वाले हैं, क्योंकि इन्हें अंतरिक्ष युद्ध के संभावित मोर्चे के रूप में भी देखा जा रहा है। अंतरिक्ष स्टेशन आगे की वैज्ञानिक क्रांति का मुख्य मंच बनेंगे नई दवाएं, उन्नत सामग्री, थ्रीडी प्रिंटिंग, माइक्रोग्रैविटी अनुसंधान, आपदा प्रबंधन तकनीक और अंतरिक्ष पर्यटन सब अंतरिक्ष स्टेशन से ही जुड़ते हैं।
माइक्रोग्रैविटी के अलावा अभी ऐसे कई प्रयोग हैं, जो धरती पर संभव ही नहीं। इसलिए भविष्य में अंतरिक्ष स्टेशन अनुसंधान, खनन, रक्षा, उद्योग और स्पेस टूरिज्म का संयुक्त केंद्र होंगे। 2035 तक अंतरिक्ष स्टेशन मानव जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित करेंगे। दवा, उद्योग, रक्षा, मौसम, शिक्षा और पर्यटन तक। आम जनता को इसका लाभ उन्नत दवाओं, तेज संचार, मौसम चेतावनी, आपदा प्रबंधन और सस्ते उपग्रह सेवाओं के रूप में मिलेगा।
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ऐसे में अंतरिक्ष स्टेशनों की स्थापना में लगी आपाधापी को आसानी से समझा जा सकता है और कहा जा सकता है कि यह होड़ अनुचित नहीं है। हर देश अपने-अपने अलग उद्देश्य से अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की कोशिश में हैं, किसी के लिए रक्षा प्रमुख मुद्दा है, कहीं उद्योग, कहीं वैज्ञानिक अनुसंधान और कहीं चंद्र अभियान!
यूरोप, जापान और कनाडा के साथ मिलकर अमेरिका जो नया लूनर गेटवे नामक स्टेशन बना रहा है, इसका उद्देश्य चंद्र कक्षा में एक मिनी-अंतरिक्ष स्टेशन बनाना है, जो आर्टेमिस मिशन का केंद्र बनेगा। यूरोप, जापान और कनाडा अपने खास वैज्ञानिक प्रयोगों के मद्देनजर ऐसा कर रहे हैं। अमेरिका के नए स्टेशन मॉड्यूलर होंगे, जो निजी कंपनियों के प्रयोग के अनुकूल रहेंगे अर्थात व्यावसायिक लाभ भी इसके उद्देश्यों में है।
लेख-संजय श्रीवास्तव के द्वारा






