(डिजाइन फोटो)
अमेरिका की शोध व निवेश कंपनी हिडनबर्ग ने शनिवार को अपनी नई रिपोर्ट जारी कर दी। यह रिपोर्ट एक तरह से हिंडनबर्ग की पहली रिपोर्ट का ही दूसरा भाग है। पहले भाग में जहां सीधे-सीधे अडानी ग्रुप को निशाना बनाया गया था, वहीं इस बार निशाने पर सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच हैं। इस रिपोर्ट के बाद सोमवार सुबह शेयर बाजार लाल निशान में खुला और देखते-देखते निवेशकों को कई हजार करोड़ का झटका लग गया। अदानी ग्रुप के तो सभी शेयर धड़ाम हो गए। बुच व अदानी दोनों ही इस रिपोर्ट को गलत बता चुके हैं।
सेबी प्रमुख ने तो इस पर लंबा-चौड़ा खंडन भी जारी किया है, जिस पर हिडनबर्ग ने प्रतिक्रिया देते हुए उसे अपने आरोपों की पुष्टि करने वाला करार दिया है। विपक्ष सरकार पर हमलावर है और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने तो बुच के अभी तक पद पर बने रहने और निवेशकों के नुकसान की जिम्मादरी को लेकर सवाल उठाया है। कांग्रेस के ही एक अन्य नेता जयराम रमेश ने तो सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही अदानी को बचाने का आरोप मढ़ा है. इसमें चौंकाने वाली बात यह है कि अभी तक सरकार की ओर से इस मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। जबकि होना तो यह चाहिए था कि रिपोर्ट आने के तत्काल बाद सरकार को मामले की विस्तृत जांच की घोषणा कर देनी चाहिए थी, ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता।
अब भी देर नहीं हुई है, सरकार जेपीसी या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता में मामले की जांच कराकर इस विवाद पर पूर्ण विराम लगा सकती है। आखिर निवेशकों का नुकसान क्यों होना चाहिए? हिडनबर्ग की पहली रिपोर्ट पर भी सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद ही सेबी ने जांच की थी। क्या इस बार फिर सुप्रीम कोर्ट को ही जांच की घोषणा करनी होगी? जब सेबी अध्यक्ष कह रही हैं कि सारे आरोप गलत हैं तो वह खुद पहल करते हुए इस पूरे मामले की जांच पूरी होने तक पद क्यों नहीं छोड़ देती?
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अमेरिका की शॉर्ट सेलर फंड कंपनी, हिंडनवर्ग ने अपनी नई रिपोर्ट में शेयर बाजार की नियामक संस्था सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच पर आरोप लगाया है कि वह और उनके पति धवल बुच ने उन ऑफशोर कंपनियों में भारी निवेश किया है, जो अदानी समूह की हैं और जो वित्तीय अनियमितताओं के कारण सवालों के घेरे में रही हैं। जाहिर है इसका मतलब यह निकलता है कि जब शेयर बाजार को नियंत्रित करने वाली ऑथरिटी सेबी की अध्यक्ष और उनके पति ने भी संदिग्ध कंपनियों में निवेश कर रखा है, तो भला उनकी जांच ईमानदारी से कैसे संभव होगी?
अदानी ग्रुप ने इसे महाबकवास बताया और इसे जानबूझकर भारत के मजबूत हो रहे कॉरपोरेट जगत को अस्थिर करने की साजिश कहा। सेबी की अध्यक्ष माधवी पुरी बुच ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि वह किसी भी तरह की जांच के लिए व्यक्तिगत रूप से तैयार हैं और हर वह दस्तावेज उपलब्ध करने की जिम्मेदारी लेती हैं, जो जांच के लिए जरूरी हो। कांग्रेस पार्टी ने इस सनसनीखेज रिपोर्ट के आते ही ज्वाइंट पार्लियामेंट कमेटी (जेपीसी) की मांग दोहरायी है। यह रिपोर्ट कितनी सही है, कितनी गलत है, इसका निर्णय तो एक विस्तृत और निष्पक्ष जांच ही कर सकती है।
आशंका के मुताबिक सोमवार को शेयर बाजार धड़ाम बोल गया, बाद में बाजार कुछ उबरा पर लाल निशान पर ही बंद हुआ। अदानी ग्रुप की कंपनियों में अच्छी गिरावट रही। वित्तीय बाजार का स्वभाव जानने वाले हर को पता है कि यह गिरावट किसी भी कीमत पर सिर्फ किसी समूह विशेष तक सीमित नहीं रहेगी। आखिरकार शेयर बाजार किसी एक समूह की साझेदारी से नहीं बनता, शेयर बाजार बेहद सेंसटिव बाजार है. इसकी संवेदनशीलता हमेशा समूचे बाजार को प्रभावित करती है।
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चिंताजनक बात यह है कि अगर एक बार निवेशकों को, विशेषकर मध्यवर्गीय निवेशकों के दिल में यह बात बैठ गई कि शेयर बाजार में सब कुछ घोटाला और सिर्फ घोटाला है तो इन पांच करोड़ निवेशकों का भरोसा बाजार में भला कितनी देर तक टिकेगा? इसलिए जितना जल्दी हो हिंडनबर्ग की इस सनसनीखेज दूसरी किस्त के खुलासे पर जांच होनी ही चाहिए और यह जांच बेहद ईमानदार और खुलेपन के साथ होनी चाहिए, तभी भारत दुनिया की अर्थव्यवस्था में अपनी मजबूत साख बनाये रख सकेगा। पिछले कई सालों से लगातार भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे ज्यादा या चीन के बाद दूसरे नंबर पर वैश्विक निवेश आकर्षित कर रही है।
आखिर दुनियाभर के निवेशक भारत इसी भरोसे पर ही तो आ रहे हैं कि यहां एक पारदर्शी लोकतांत्रिक व्यवस्था अगर उन्हें अपने इस भरोसे पर कुछ शक हुआ तो हमें वैश्विक निवेशकों का पलायन देखना पड़ सकता है। यह विश्वसनीयता तभी कायम होगी, जब विपक्ष द्वारा ज्यादा हंगामा किए बिना ही सरकार हिंडनबर्ग की इस दूसरी रिपोर्ट पर किसी स्वतंत्र व विश्वसनीय जांच की घोषणा करे। देखा जाए तो पहली रिपोर्ट से हिंडनबर्ग की यह दूसरी रिपोर्ट कहीं ज्यादा खतरनाक है।
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क्योंकि पहली रिपोर्ट में सिर्फ एक कारोबारी समूह के भ्रष्टाचार और उसकी कॉरपोरेट तिकड़मों की ही बात थी, लेकिन इस बार तो सेबी जैसी संस्था की ही घेरे में हैं और इससे यह संदेश जा रहा है भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें न सिर्फ बेहद गहरी हैं बल्कि ये संस्थाबद्ध भी हैं। हिंडनबर्ग ने अपनी पहली रिपोर्ट में अदानी समूह के शेयरों में हेरफेर और ऑडिटिंग आरोप लगाया था, लेकिन इस बार इन आरोपों की जांच करने और अदानी को क्लीन चिट देने वाली संस्था की अध्यक्ष कठघरे में हैं।
अदानी समूह को क्लीन चिट से बाजार में न सिर्फ आम निवेशकों का भरोसा बढ़ा था, बल्कि यह माना गया था कि भारतीय पूंजी बाजार मजबूत और पारदर्शी है।अब यह भरोसा डगमगा सकता है, इसलिए बिना देरी गहराई से जांच होनी चाहिए, क्योंकि, यह किसी घोटाले की खुलासा नहीं है बल्कि समूची व्यवस्था को बेनकाब करने जैसा है।
लेख हिमांशु घिल्डियाल द्वारा