(डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: मास्को में 1980 में हॉकी के रोमांचक फाइनल में भारत ने स्पेन को 4-3 से हराकर इस स्पर्धा में अपना आठवां ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता था। यह दोनों देश पेरिस ओलंपिक में एक बार फिर आमने-सामने थे। हालांकि इस बार पदक का रंग बदलकर कांस्य हो गया था, लेकिन बड़े मुकाबले में नतीजा वही रहा- भारत ने स्पेन को पहले क्वार्टर में 0-1 से पिछड़ने के बावजूद 2-1 से पराजित किया और टोक्यो 2020 की तरह फिर से कांस्य पदक अपने नाम किया।
पेरिस में पिछले कई दिनों के दौरान अनेक एथलीट्स चौथे स्थान पर इस तरह रहे कि बहुत मामूली अंतर से पदक से चूक गए थे। वेटलिफ्टिंग में मीराबाई चानू सिर्फ 1 किलो कम वजन उठाने के कारण कांस्य पदक न पा सकीं। फिर पहलवान विनेश फोगट के त्रासदीपूर्ण डिसक्वालिफिकेशन को भी नहीं भुलाया जा सकता, जिससे पूरे देश का दिल टूट गया था। लेकिन हॉकी में सफलता के चंद घंटे बाद भारत के ‘गोल्डन ब्वॉय’ नीरज चोपड़ा ने जेवलिन थ्रो में 89.45 मीटर फेंककर रजत पदक जीतकर भारतीय खेल प्रेमियों के होठों पर दोहरी मुस्कान ला दी। भारत के खेल इतिहास में टोक्यो 2020 में नीरज चोपड़ा ने भारत के लिए टैक एंड फील्ड में ओलंपिक का पहला गौरवपूर्ण स्वर्ण पदक जीता था।
इससे पहले बीजिंग 2008 में अभिनव बिंद्रा ने शूटिंग (10 मीटर एयर राइफल) में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक हासिल किया था। पाकिस्तान के अरशद ओलंपिक नदीम ने रिकॉर्ड कायम करते हुए जेवलिन 92.97 मीटर फेंककर स्वर्ण पदक पर कब्जा कर लिया। नीरज चोपड़ा की 6 में से 5 थ्रो फाउल हुई, लेकिन एक लीगल थ्रो ने ही उन्हें रजत दिला दिया, जबकि नदीम ने एक फाउल थो के साथ दो बार भाला 90 मीटर के पार फेंका। नीरज चोपड़ा की मां सरोज देवी ने खेल भावना से प्रेरित अपने बयान से भारत व पाकिस्तान के खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया है। सरोज देवी ने कहा, “हम रजत से खुश हैं। जिसने स्वर्ण जीता है, वह भी मेरा ही बेटा है।” नीरज और नदीम की गजब की दोस्ती है।
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ओलंपिक में हॉकी (पुरुष) का लगातार दूसरा कांस्य पदक भारतीय टीम अपने टीमवर्क के कारण से ही जीत सकी। हर मैच में हमारे हर खिलाड़ी ने अपनी जी तोड़ मेहनत की, बल्कि यह कहना अधिक सही होगा कि अपना दिल चीरकर रख दिया ताकि तिरंगे को लहराता देख सकें, ग्रेट ब्रिटेन को उस स्थिति में भी हराया जब अधिकतर समय भारत के सिर्फ 10 खिलाड़ी ही मैदान में थे। इससे खिलाड़यों के हौसले व समर्पण का अंदाजा लगाया जा सकता है। 1972 में म्युनिख ओलंपिक के बाद भारत ने ऑस्ट्रेलिया को ओलंपिक में पहली बार हराया। अगर भारत अवसरों को भुना लेता व अधिक आत्मविश्वास प्रदर्शित करता तो वह सेमीफाइनल में जर्मनी को भी पराजित कर सकता था।
टीम को सिर्फ क्वालिटी फिनिशर की जरूरत थी, जो फील्ड गोल करने के अनेक अवसरों को भुना लेता। टीम के 2 खिलाड़ी विशेष प्रशंसा के हकदार हैं- कप्तान हरमनप्रीत और श्रीजेश। टीम के 15 गोल में से 10 हरमनप्रीत ने किए। हरमनप्रीत न केवल पेनाल्टी कार्नर के प्रभावी मारक व ठोस डिफेंडर थे, बल्कि एक कप्तान के तौर पर उन्होंने टीम का कुशल नेतृत्व किया। भारत के लिए अपनी अंतिम प्रतियोगिता खेल रहे गोलकीपर श्रीजेश ने सभी मैचों, विशेषकर शूट आउट्स में अविश्वसनीय साहस व कौशल का परिचय दिया।
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विनेश फोगट ने स्वर्णरहित, पदकरहित होने के बावजूद पूरे देश को अपना हमदर्द बना लिया है। उनकी तीव्रता तब आई जब वह ओलंपिक के कुश्ती फाइनल में पहुंचीं और यह कारनामा करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। फिर अचानक खबर आई कि 100 ग्राम वजन अधिक होने के कारण उन्हें डिसक्वालीफाई कर दिया गया है। लेकिन इससे भी उनकी कहानी फीकी नहीं पड़ी। शायद विनेश को अपने हिस्से से अधिक चोटें लगीं। लेकिन उनकी कोहनी व घुटने की चोटें तो उनकी आत्मकथा का केवल एक हिस्सा हैं। वह प्रक्रिया अंधकार में है जिसके तहत विनेश को 53 किलो वर्ग से 50 किलो वर्ग में किया गया। फिर संसद में खेलमंत्री द्वारा विनेश पर खर्च का ब्यौरा देना जैसी बेतुकी बातें भी हैं।