अराजकता पर उतारू नक्सली (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: जबसे विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार आई है तभी से अराजक व हिंसक नक्सलियों के खिलाफ निश्चयात्मक अभियान छेड़ दिया गया. इसके अनुकूल नतीजे आए हैं. सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में लगभग 280 नक्सलियों को मार गिराया. 1,000 माओवादियों को गिरफ्तार किया गया और 925 ने आत्मसमर्पण कर दिया. गत रविवार को सुरक्षा बलों ने बीजापुर जिले के इंद्रावती नेशनल पार्क में नक्सलियों के गढ़ पर धावा बोला जिसमें 31 नक्सली मौत के घाट उतारे गए. यह साहसिक अभियान केंद्र और राज्य सरकार के सम्मिलित प्रयासों का नतीजा था।
इसमें बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी के जवानों ने हिस्सा लिया. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह घोषणा कर चुके हैं कि शीघ्र ही नक्सलवाद का देश से उन्मूलन कर दिया जाएगा. नक्सलियों का निशाना सरकारी कर्मचारी, पुलिस तथा वन विभाग के कर्मचारी रहते हैं. ये अपने प्रभाव क्षेत्र के इलाकों को पिछड़ा और दुर्गम रखना चाहते हैं और विकास कार्य में बाधक हैं. इन क्षेत्रों में स्कूल, अस्पताल, सड़क या पुल बनाना टेढ़ी खीर है. समानांतर सत्ता चलाने का दम भरनेवाले नक्सली उद्योगों से प्रोटेक्शन मनी भी वसूल करते हैं. वे जबरन ग्रामीण युवा-युवतियों को अपने कैडर में शामिल करते हैं. एक समय पशुपति से तिरुपति (नेपाल से आंध्रप्रदेश) तक नक्सली प्रभाव कायम करने का उनका लक्ष्य था।
राज्यों में सहयोग नहीं होने से नक्सली एक राज्य में हिंसा करने के बाद जंगल के रास्ते दूसरे राज्य में भाग जाते थे. आईईडी और सुरंग बिछाकर उन्होंने कितने ही पुलिस कर्मियों की जान ली. ये नक्सली कंगारू कोर्ट चलाकर किसी को भी पुलिस का मुखबिर करार देकर गांववालों के सामने सजा देने के नाम पर उसकी निर्ममता से हत्या कर देते थे. 2000 में देश के 220 जिले नक्सलग्रस्त थे. अब भी 20 जिलों में उनका प्रभाव है. छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, झारखंड, ओडिशा में इनका आतंक था।
छत्तीसगढ़ में सुपरकॉप कहलाने वाले केपीएस गिल भी नक्सली उन्मूलन में सफल नहीं हो पाए थे. 2013 में विद्याचरण शुक्ल सहित अनेक कांग्रेस नेताओं की नक्सलियों ने जीरम घाटी में घात लगाकर हत्या कर दी थी. शहरी क्षेत्रों में भी नक्सली अपने समर्थकों के जरिए प्रभाव बढ़ाने में लगे रहे. उन्हें भारत विरोधी विदेशी ताकतों से भी मदद मिलती रही. सीमा पर आतंकवादी और देश के भीतर माओवादी भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा हैं. नक्सल विरोधी अभियान अधूरा नहीं छोड़ा जाए लेकिन इसे चलाते समय ध्यान रखना होगा कि किसी सामान्य नागरिक को नुकसान न पहुंचे. जिन नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, उनके पुनर्वास का सरकार प्रयास कर रही है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा