(डिजाइन फोटो)
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार देश की वर्तमान जनसंख्या 1,45,31,5,173 है, जो वर्ष बीतते बीतते डेढ़ अरब के करीब पहुंच जायेगी। इस आंकड़े को किसी काम का बनाना है तो देशव्यापी जनगणना जरूरी है। अपना देश नियमित जनगणना कराने वाले 233 देशों में से है। कोविड के दौरान जनगणना असंभव थी, लेकिन उस दौरान और उसके बाद आजतक देश में बहुत से चुनाव हो चुके हैं। सियासी गतिविधियां जारी हैं, तब फिर जनगणना को टालना कहां तक ठीक है?
कहा जा रहा है कि 4 साल बाद ही सही पर इसी महीने जनगणना शुरू हो जाएगी और 2026 के आखिर तक इसके आंकड़े सार्वजनिक कर दिये जाएंगे। लेकिन बहुतों को ऐसा लगता है कि यह इस साल भी टलेगी। अगले साल इस पर कवायद शुरू होगी और चूंकि इसके आंकड़े जारी करने के लिये कोई समय निर्धारित नहीं है सो अगले आम चुनावों के वर्ष भर पहले इसके आंकड़े जारी किए जायेंगे ताकि उन्हें चुनावानुकूल बनाए जा सके।
गृह मंत्री अमित शाह ने पखवाड़े भर पहले यह संकेत तो दिया कि नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर, एनपीआर और जनगणना करायी जायेगी, लेकिन इस बात का शोर होने के बावजूद कि यह सितंबर में आरंभ होगी उन्होंने कोई साफ संकेत नहीं दिए हैं। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय भी 2026 तक इसके नतीजे जारी करने की घोषणा को लेकर खामोश है।
सबसे बड़ा तर्क यह दिया जा रहा है कि जनगणना के लिए 2024-25 के बजट में महज 1,309,46 करोड़ रुपये ही आवंटित किए गए हैं। साफ है कि जनगणना और एनपीआर प्रक्रिया पर 12,000 करोड़ रुपये से कहीं अधिक खर्च होना लाजिमी है तो इतनी सी रकम में क्या होगा? फिलहाल इतने कम आवंटन से इस बात का इशारा तो मिलता है कि जनगणना प्राथमिकता में नहीं है।
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गृह मंत्रालय और रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय का दावा है कि उसने जनगणना के लिये पहचान, चयन और प्रशिक्षण, हाउस लिस्टिंग और वास्तविक डेटा संग्रह की योजना तैयार कर ली है। पर यह कागजी ही कही जायेगी। हाउस लिस्टिंग की प्रक्रिया से पहले प्रशासनिक सीमाओं को स्थिर करना पहली शर्त है। यह जनगणना का पहला कदम माना जा सकता है। हाउस लिस्टिंग के तहत स्थायी, अस्थायी मकानों उनके प्रकार, मूल्य और सुविधाओं वगैरह का विवरण दर्ज किया जाता है। लेकिन मजबूत एड्रेस सिस्टम न होने के चलते एक चुनौती है।
देश की इस पहली डिजिटल जनगणना के लिए 33 लाख लोग काम पर लगेंगे। वे टेबलेट या स्मार्टफोन के साथ हर घर जाएंगे और सीधे पोर्टल में जानकारी तथा आंकड़े दर्ज करेंगे। इसको जनगणना प्रबंधन और निगरानी के सेंट्रल पोर्टल पर फीड किया जाएगा, जनगणना करने वाले और पर्यवेक्षकों को कई भाषाओं में सहायता मिलेगी। इससे संबद्ध लोगों को प्रशिक्षण देना शुरू कर देना चाहिए। स्व-गणना का प्रावधान होगा जहां एक व्यक्ति खुद जनगणना फार्म भरकर जमा कर सकता है।
पहले जनगणना के आंकड़े जुटाने में एक वर्ष लगता था, इस जनगणना में लोगों से पहले की अपेक्षा ज्यादा जानकारियां जुटानी है, 31 सवाल पूछने हैं, जहां पिछली बार तक केवल पुरुष और महिला लिंग को मान्यता दी गई थी, इस बार जनगणना फॉर्म में ट्रांसजेंडर लोगों को भी दर्ज किया जाएगा तो जाहिर है प्रक्रिया जटिल और लंबी हो सकती है और यदि इसमें जाति जनगणना, कौशल जनगणना भी जोड़ दी जाए तो यह जटिल होगा। इस बार जनगणना डिजिटल होनी है।
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जनगणना होगी तो पता चलेगा कि देश में कितने गरीब, अमीर हैं, कितने पक्के और अस्थाई घरों में रहते हैं और कितने बेघर! घरेलू सुविधाओं, पानी, बिजली। इंटरनेट तक कितनों की पहुंच किस स्तर तक है, साक्षरता दर और शिक्षा, शहरीकरण, प्रवासन, वैवाहिक स्थिति, सामाजिक सांस्कृतिक स्तर प्रजनन क्षमता, मृत्यु दर, भाषा, धर्म और विकलांगता और बीसियों प्रकार के आंकड़े, जानकारियां सामने आयेंगी। यह देश के लोगों के विभिन्न आंकड़ों का विशालकाय भंडार और गांव, कस्बे और वार्ड स्तरों पर प्राथमिक आंकड़ों का स्रोत भी है। भारत जैसे आर्थिक और सांस्कृतिक विविधता वाले देश में तो इसकी आवश्यकता और भी अधिक है।
लेख- संजय श्रीवास्तव