(डिजाइन फोटो)
कितने ही राज्यों का तथाकथित त्वरित बुलडोजर न्याय संवैधानिक अधिकारों के लिए चुनौती बन गया था। लेकिन हमारे हाईकोर्ट खामोश बैठे हुए थे, जैसे कोई खास बात हुई ही न हो। सरकारों के असंवैधानिक बल प्रयोग के समक्ष यह आलस्य की स्थिति थी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, असम, त्रिपुरा व दिल्ली के नागरिक प्राधिकरण जैसे-जैसे बुलडोजर क्लब में शामिल होते गये, वैसे-वैसे ही गिराये गये घरों की संख्या में वृद्धि होती गयी और बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन भी व्यापक होता रहा। न्याय के पहिये बुलडोजर के पहियों की तुलना में धीमे घूमते हैं।
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा और 2 सितम्बर को एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश बीआर गवई व न्यायाधीश केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा कि एक अपराधी द्वारा किया गया अपराध उसके घर पर बुलडोजर चलाने का आधार नहीं बन सकता। अब सुप्रीम कोर्ट अपराधों के विरुद्ध निवारक के रूप में ‘बुलडोजर न्याय’ अपनाने को रोकने के लिए दिशा-निर्देश गठित करेगा जोकि पूरे देश के लिए होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने जहां यह स्पष्ट किया कि एक व्यक्ति द्वारा किये गये अपराध उसकी आवासीय इकाई को ढहाने का आधार नहीं हो सकता। उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार की तरफ से अदालत में अपनी बात रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक तरह से सुप्रीम कोर्ट के दृष्टिकोण का ही समर्थन किया। उन्होंने यह दोहराते हुए कि उत्तर प्रदेश सरकार आपराधिक गतिविधि के विरुद्ध शून्य सहिष्णुता की नीति अपनायेगी और अपराधों को सख्ती से क़ानून व संविधान के अनुसार नियंत्रित करेगी, अपराधी के उस घर को गिराये जाने का विरोध किया जिसका निर्माण नगरपालिका नियमों के अनुसार किया गया हो।
यह भी पढ़ें:- महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की संभावना, विधानसभा चुनाव में PM नरेंद्र मोदी पर दारोमदार
तुषार मेहता ने कहा, व्यक्ति पर अपराध करने का आरोप उसकी अचल सम्पत्ति को तोड़ने का आधार नहीं हो सकता। अचल सम्पत्ति तभी तोड़ी जा सकती है। जब वह संबंधित नगरपालिका या उस क्षेत्र के विकास प्राधिकरण के नियमों व कानूनों का अनुरूप निर्मित न करायी गई हो। दूसरे शब्दों में किसी भी अचल सम्पत्ति को केवल इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता कि उसका मालिक या किरायेदार आपराधिक गतिविधियों में लिप्त है।
तोड़फोड़ चाहे पूर्ण हो या आंशिक इसी आधार पर की जा सकती है कि नगरपालिका के वैध निर्माण नियमों का उल्लंघन किया गया है। खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के द्दष्टिकोण की सराहना की और इस मुद्दे पर अखिल भारतीय दिशा-निर्देश गठित करने के लिए केस की पार्टियों व उनके वकीलों से सुझाव देने को कहा। खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि वह चूंकि दिशा-निर्देश गठित करते जा रहा है, जिनका राज्यों को सख्ती से पालन करना पड़ेगा।
जनहित याचिका दायर करने वाले संगठन जमात-ए-उलमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का स्वागत किया है कि सभी राज्यों के लिए दिशा- निर्देश गठित किये जायेंगे और आशा व्यक्त की है कि जब अंतिम निर्णय आयेगा तो सभी प्रभावितों को न्याय मिलेगा। तथाकथित ‘बुलडोजर न्याय पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक देर से अवश्य लगायी है, लेकिन एकदम सही लगायी है। घर व दुकान गिरा देने से पूरा परिवार प्रभावित होता है। अगर किसी परिवार का कोई सदस्य अपराध में शामिल भी था या मकान/दुकान अवैध थी तो भी कानूनी प्रक्रिया (जैसे नोटिस आदि) का पालन करना आवश्यक है; क्योंकि व्यक्ति जब तक अदालत द्वारा दोषी साबित न हो तब तक वह निर्दोष होता है। मकान/दुकान गिराने से पूरा परिवार प्रभावित हो जाता है, जबकि उसका अपराध या अवैध निर्माण से कोई लेना देना नहीं होता है।
यह भी पढ़ें:- महाराष्ट्र में डरावना है, गायब होती महिलाओं का रहस्य…!!
इसके बावजूद पिछले कुछ वर्षों के दौरान राज्यों के अधिकारियों द्वारा बुलडोजर चलाने के दिए गये आदेश कानून के शासन के लिए गंभीर सवाल बन गये थे। राजस्थान में तो एक ऐसे मकान पर बुलडोजर चलाया गया जिसमें आरोपी का परिवार किराये पर रहता था। राजस्थान के ही एक कलेक्टर को वायरल वीडियो में यह कहते हुए सुना जा सकता है कि वह केवल एक विशेष समुदाय के मकानों पर ही बुलडोजर चलायेंगे। अगर बुलडोजर तथाकथित अपराधियों को ‘सबक’ सिखाने के लिए चलाये जा रहे थे, तो क्या जांच व साक्ष्यों के आधार पर यह अदालत के फैसले थे? इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि अनेक राज्यों में जो यह बुलडोजर चलाने का चलन चल रहा था, उसे किसी भी सूरत में कानूनन उचित नहीं ठहराया जा सकता था।
लेख नरेंद्र शर्मा द्वारा