
बिहार चुनाव में खैराती वादों की भरमार... (सौजन्यः सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: चुनाव को लोकतंत्र का पर्व माना जाता है जिसमें नागरिक उत्साहपूर्वक अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं लेकिन विगत कुछ दशकों से चुनाव वोटों की खरीद-फरोख्त के रूप में बदल गए हैं जिनमें लुभावनी योजनाओं व घोषणाओं के माध्यम से सरकारी खजाने का धन दांव पर लगा दिया जाता है।बिहार में राजनीतिक पार्टियों ने लगभग 8 लाख करोड़ रुपए वार्षिक से भी अधिक रकम किसी न किसी रूप में जनता को देने के वादे किए हैं।यह राशि बिहार के सालाना बजट से 3 गुना अधिक है।सत्तारूढ़ एनडीए तथा विपक्षी महागठबंधन ने नकद रकम से लेकर सरकारी नौकरियां देने तक के वादे किए हैं।अर्थशात्रिरयों को आश्चर्य है कि ये दल अपना वादा पूरा करने के लिए धन लाएंगे कहां से? मुफ्त की रेविड़यां बांटने का वादा सरकारी कोष खाली करने से ही पूरा हो पाएगा।
बिहार पर कुल 2.85 लाख करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है।प्रति व्यक्ति कर्ज की राशि 21,773 रुपए है।कर्ज का ब्याज अदा करने के लिए ही हर साल 23,000 करोड़ रुपए का खर्च सरकार को उठाना पड़ता है।राज्य का वित्तीय घाटा 29,000 करोड़ रुपए है।बिहार की 7 प्रतिशत आबादी प्रवासी मजदूरों के रूप में अन्य राज्यों में जाकर काम करती है।इनमें से अधिकांश रोजंदारी श्रमिक हैं।वह भी चुनाव पर असर डाल सकते हैं।बिहार की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को नवजीवन देने का वादा एनडीए और महागठबंधन दोनों ने किया है लेकिन इसके लिए कोई रोडमैप पेश नहीं किया।जो भी सरकार सत्ता में आए उस पर आधारभूत ढांचा तैयार करने, शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक विकास तथा कानून का शासन प्रदान करने की जिम्मेदारी रहती है।
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नेतागण अपने वादों से जनता की उम्मीदें बहुत बढ़ा देते हैं लेकिन पूरी नहीं कर पाते।जैसे ही नई सरकार बनती है, लोग चाहते हैं कि वह अपने चुनावी वादे जल्दी से जल्दी पूरा करे।मुफ्त रेवड़ी बांटने की संस्कृति हर राज्य में पनपने लगी है लेकिन इससे न तो विकास होता है, न समस्याएं हल होती हैं बल्कि अर्थव्यवस्था खोखली होती चली जाती है।बिहार की समस्याएं कम नहीं हैं।वहां, गरीबी, अपराध, कमजोर शिक्षा व्यवस्था, पिछड़ापन जैसी चुनौतियां हैं।शहरीकरण व औद्योगिकरण बेहद कम है।बिहार का आम व्यक्ति पॉवर की चाहत रखता है।वहां या तो युवा राजनीति में रुचि लेते हैं या फिर दिल्ली जाकर प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा की तैयारी करते हैं।अधिकांश आईएएस, आईपीएस अफसर बिहार से आते हैं।जो गरीब तबके के लोग हैं वह फिरौती और वसूली वाले अपराधी गिरोहों से जुड़ जाते हैं।प्रति वर्ष राज्य का बड़ा क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित हो जाता है।इन सारी समस्याओं का समाधान उचित नीतियों व नियोजन से संभव है।खैरात बांटने से स्थिति नहीं सुधरनेवाली !
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






