
शेयर मार्केट, (डिजाइन फोटो/ नवभारत लाइव डॉट कॉम)
Share Market In 2025: यह साल भारतीय शेयर बाजार के लिए किसी ‘रोलर कोस्टर’ राइड से कम नहीं रहा। जहां एक ओर बाजार ने नई ऊंचाइयों को छुआ और निवेशकों को ‘तूफानी तेजी’ के साथ मालामाल होने का मौका दिया, वहीं दूसरी ओर वैश्विक तनाव, विदेशी निवेशकों (FPIs) की भारी बिकवाली और मुद्रा बाजार में गिरावट ने कई मौकों पर दलाल स्ट्रीट को ‘लाल ही लाल’ कर दिया। इस ‘ईयर एंडर’ रिपोर्ट में आइए विश्लेषण करते हैं उन प्रमुख घटनाओं और आंकड़ों का, जिन्होंने इस साल मार्केट की दिशा तय की।
साल 2025 की शुरुआत भारतीय बाजारों के लिए उम्मीदों से भरी रही। बजट 2025 के बाद बाजार ने शानदार रिकवरी दिखाई। दिसंबर 2025 के अंत तक निफ्टी-50 (Nifty 50) ने करीब 26,050 के स्तर को छुआ, जबकि सेंसेक्स (Sensex) 85,000 के ऐतिहासिक आंकड़ों के पार बना रहा।
हालांकि, पिछले सालों (2023-24) की तुलना में यह साल ‘कूलिंग पीरियड’ के रूप में देखा गया। जहां 2024 में मिडकैप और स्मॉलकैप में अंधाधुंध तेजी थी, वहीं 2025 में निवेशकों ने सावधानी बरती और लार्ज-कैप शेयरों में स्थिरता खोजी। साल 2025 में सेक्टोरल इंडेक्स ने काफी उतार-चढ़ाव देखा, लेकिन कुछ सेक्टर्स ‘छुपे रुस्तम’ साबित हुए।
पीएसयू बैंक (PSU Banks): सरकारी बैंकों ने इस साल शानदार प्रदर्शन किया और लगभग 27.77% का सालाना रिटर्न देकर निवेशकों को खुश कर दिया। बेहतर एसेट क्वालिटी और क्रेडिट ग्रोथ इसके पीछे की मुख्य वजह रही।
मेटल और ऑटो (Metal & Auto): मेटल सेक्टर में 21% और ऑटो सेक्टर में करीब 21.12% की बढ़त देखी गई। बुनियादी ढांचे पर सरकार के खर्च और ग्रामीण मांग में सुधार ने इन्हें रफ्तार दी।
आईटी और बैंकिंग (IT & Banking): आईटी सेक्टर में ‘टाटा बनाम रिलायंस’ की जंग सुर्खियों में रही। TCS ने रिलायंस को पछाड़कर देश की सबसे वैल्यूएबल कंपनी का खिताब वापस पाया, हालांकि वैश्विक मांग में सुस्ती के कारण इस सेक्टर की ग्रोथ सीमित रही।
साल 2025 की एक बड़ी चुनौती विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) का भारतीय बाजार से पैसा निकालना रहा। सितंबर 2025 तक विदेशी निवेशकों ने लगभग ₹1.1 – ₹1.2 लाख करोड़ की निकासी की। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीतियों और डॉलर की मजबूती ने एफपीआई को उभरते बाजारों से दूर रखा। लेकिन, भारतीय शेयर बाजार की ‘ढाल’ बने घरेलू संस्थागत निवेशक (DIIs)। म्यूचुअल फंड और खुदरा निवेशकों के निरंतर एसआईपी (SIP) इनफ्लो ने विदेशी बिकवाली के दबाव को काफी हद तक संतुलित किया, जिससे बाजार में बड़ी गिरावट (Crash) नहीं आई।
शेयर बाजार के लिए रुपया इस साल सिरदर्द बना रहा। सितंबर 2025 में भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 88-89 रुपये के रिकॉर्ड निचले स्तर तक गिर गया। कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता और व्यापार घाटे ने रुपये पर दबाव डाला। हालांकि, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार $680 बिलियन के पार पहुंचना एक बड़ी राहत की खबर रही, जिसने गिरते रुपये को संभालने में मदद की।
1. मार्केट कैप की जंग: TCS ने मार्केट कैपिटलाइजेशन के मामले में रिलायंस इंडस्ट्रीज को पीछे छोड़ा।
2.बैंकिंग रेगुलेशन: आरबीआई ने नियमों की अनदेखी पर कोटक महिंद्रा बैंक जैसे दिग्गजों पर भारी जुर्माना लगाया।
3. आईपीओ मार्केट: 2025 में कई बड़े स्टार्टअप्स और इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों के आईपीओ ने बाजार में दस्तक दी, हालांकि ‘लॉक-इन’ पीरियड खत्म होने के बाद कुछ में भारी बिकवाली दिखी।
4. महंगाई दर: भारत की खुदरा महंगाई दर (CPI) कई महीनों तक 2% के आसपास रही, जिससे ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें बनी रहीं।
5. मिडकैप की कूलिंग: 2024 के मल्टीबैगर स्टॉक्स में 2025 में ‘प्रॉफिट बुकिंग’ और वैल्यूएशन में सुधार देखा गया।
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कुल मिलाकर, 2025 बाजार के लिए ‘परिपक्वता’ का साल रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि 2026 में बाजार और भी बेहतर प्रदर्शन कर सकता है, क्योंकि कॉर्पोरेट अर्निंग्स में सुधार और ब्याज दरों में कटौती की संभावना प्रबल है। निवेशकों के लिए सलाह है कि वे ‘बाय ऑन डिप’ (गिरावट पर खरीदारी) की रणनीति अपनाएं और लंबी अवधि के लिए क्वालिटी स्टॉक्स पर भरोसा रखें।






