भारत के नए अंतरिक्ष युग की शुरुआत (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: 25 जून 2025 ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के लिए सबसे बड़ा दिन था।लखनऊ के सीएमएस ऑडिटोरियम में उनके पिता शंभू दयाल व माता आशा शुक्ला पहली पंक्ति में अपनी नजरें स्क्रीन पर गड़ाए बैठे थे।जैसे ही भारतीय समय के अनुसार दोपहर के 12.01 बजे पर फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से फाल्कन 9 राकेट लिफ्ट-ऑफ हुआ, तो ऑडिटोरियम उल्लास के शोर से गूंज उठा।भारतीय स्पेस इतिहास में एक नई सुबह का सूरज निकल आया था।
ऑडिटोरियम में ‘हिप हिप हुर्रे’ के नारे लगाते हुए दर्शक भांगड़ा करने लगे।शंभू दयाल ने एक पल में गर्व।खुशी व आंसुओं का अनुभव किया और बोले शुभांशु हमेशा से फोकस्ड, अनुशासित व देशभक्त रहा।शुभांशु के कंधे पर तिरंगा भी बता रहा था कि वह अपनी यात्रा में अकेले नहीं थे, बल्कि हम सभी को साथ लेकर चल रहे थे।शुभांशु ‘ड्रैगन’ एक्सिओम-4 स्पेस कैप्सूल की पायलट सीट में थे।जो उन सहित चार सदस्यों की कू को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) लेकर पहुंचा, स्पेस में प्रवेश करने के कुछ मिनट बाद ही शुभांशु ने पृथ्वी को रेडियो संदेश भेजा, ‘नमस्कार मेरे प्यारे देशवासियों।क्या राइड है।
हम पृथ्वी की कक्ष में 7.5 किमी प्रति सेकंड के वेग (27,000 किमी प्रति घंटा) से चल रहे हैं.’ 39-वर्षीय शुभांशु के साथ मिशन विशेषज्ञ हंगरी के 33 वर्षीय टिबोर कापू, अमेरिका की 65-वर्षीय कमांडर पेगी विटसन और पोलैंड के मिशन विशेषज्ञ 41-वर्षीय स्लावोस्ज उज्नांसकी हैं।इस 14 दिनों के मिशन में शुभांशु, विटसन के बाद सेकंड-इन-कमांड हैं।उनकी जिम्मेदारी निगरानी की है और अगर ऑटोमेशन फेल होता है, तो वह हस्तक्षेप करेंगे।लांच, डॉकिंग, पुनःप्रवेश व लैंडिंग के दौरान वह स्पेसक्राफ्ट ऑपरेशन, नेविगेशन व नियंत्रण में मदद करेंगे।आईएसएस में डॉकिंग के बाद वह प्रयोगों, टेक डेमो आदि में हिस्सा लेंगे.
3 अप्रैल 1984 को विंग कमांडर राकेश शर्मा सोवियत सोयूज टी-11 पर स्पेस में गए थे और वहां से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इस सवाल पर कि स्पेस से भारत कैसा दिखाई देता है, उन्होंने जवाब दिया था, ‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा.’ अब लगभग 41 वर्ष बाद एक दूसरे भारतीय शुभांशु ने कार्मन रेखा पार की है।शर्मा की स्पेस उड़ान से मानवों का स्पेस में जाने का कार्यक्रम आरंभ नहीं हुआ था, लेकिन इस बार गगनयान का काम चालू है और इसमें शुभांशु का अनुभव काम आएगा।शुभांशु ने स्पेस से संदेश दिया, ‘यह आईएसएस को मेरी यात्रा का आरंभ नहीं है, बल्कि भारत के मानव स्पेस उड़ान कार्यक्रम की शुरुआत है.’ भारत 2035 तक अपना स्पेस स्टेशन स्थापित करना चाहता है और चांद व उससे आगे तक क्रू मिशन ले जाना चाहता है।
पिछले चार दशक के दौरान दुनिया बदल गई है और भारत की स्पेस महत्वाकांक्षा भी।हालांकि शुभांशु प्राइवेट अमेरिकन स्पेसक्राफ्ट पर गए हैं, लेकिन इससे भारत का मानव स्पेसफ्लाइट युग आरंभ होगा।शुभांशु के स्पेस में जाने के प्रतीकों को अनदेखा नहीं किया जा सकता।वह भारतीय वायु सेना के अधिकारी हैं और अब ऑर्बिट में अपने ग्लोबल समकालीनों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए हैं।यह सही है कि गगनयान- इसरो का मानव स्पेसफ्लाइट प्रोजेक्ट, को अभी अपना पहला क्रू मिशन लांच करना शेष है, लेकिन शुभांशु की उड़ान प्रक्रिया टेस्ट करने, स्पेस के अनुकूलन होने, माइक्रोग्रेविटी को समझने के लिए और वह भी भारत के झंडे तले उड़ान भरते हुए एक तरह का पूर्व परीक्षण है।राकेश शर्मा जब 1984 में स्पेस में गए थे, तब भारत के पास मानव स्पेस कार्यक्रम के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव था।आज गगनयान अगले कुछ वर्षों में क्रू लांच की तैयारी कर रहा है।
भारत के पास अब ठोस स्पेस नीति है।शुभांशु का मिशन भूमिका है- भारतीयों की स्पेस में निरंतर मौजूदगी की।शुभांशु की उड़ान इसरो के लिए डाटा एकत्र करने का अवसर है।भारत को क्रू ट्रेनिंग प्रोटोकॉल्स, कक्षा में मेडिकल निगरानी और बंद स्थितियों के तहत व्यवहार विज्ञान के सिलसिले में महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी।
लेख- शाहिद ए चौधरी के द्वारा