
प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स: सोशल मीडिया )
नवभारत डिजिटल डेस्क: एलईओ पृथ्वी की सतह से तकरीबन 160 से 2,000 किमी की ऊंचाई तक का वह क्षेत्र है, जहां अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस और कई उपग्रह जैसे जीपीएस, संचार उपग्रह) परिक्रमा करते हैं, क्योंकि यहां कम ऊर्जा और कम सिग्नल देरी (लेटेंसी) के साथ संचार संभव है, जिससे इमेजिंग और ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी के लिए यह बहुत उपयोगी है।
ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 सबसे बड़ा कमर्शियल कम्युनिकेशंस सैटेलाइट है। इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह अंतरिक्ष-आधारित सेलुलर ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी सीधे स्टैंडर्ड मोबाइल स्मार्टफोनों को प्रदान करेगा। एलवीएम3-एम 6 मिशन की लिफ्ट-ऑफ श्रीहरिकोटा, आंध्रप्रदेश में सतीश धवन स्पेस सेंटर (एसडीएससी एसएचएआर) के दूसरे लांच पैड से हुई, जो अमेरिका स्थित एएसटी स्पेस मोबाइल के ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 सैटेलाइट को एलईओ में लेकर गया।
यह मिशन पूर्णतः कमर्शियल था। यह एलवीएम3-एम6 मिशन इसरो का लगातार नवां सफल लांच है। इसरो 45 वर्षों में 34 देशों के लिए 434 सैटेलाइट लांच कर चुका है। ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 सैटेलाइट से पहले वह चन्द्रयान-2, चन्द्रयान-3, वनवेब मिशंस, सीएमएस-3 आदि को लांच कर चुका है। ब्लूबर्ड ब्लॉक 2 सैटेलाइट को लांच करना आसान नहीं था।
इसमें जबरदस्त प्रयास और विभिन्न टीमों के बीच करीबी समन्वय की आवश्यकता थी। ऐसा इसरो के प्रमुख वी नारायणन का कहना है। उनके अनुसार यह अनेक कारणों से एकदम अलग उड़ान रही। ब्लूबर्ड को 520 किमी पर रखने का लक्ष्य था और उसे 518.9 किमी पर रखा गया, जोकि भारतीय राकेट का आज तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन है।
ध्यान रहे कि कक्षीय कट-ऑफ 15 किमी की होती है यानी लक्ष्य से 15 किमी के फासले पर भी सैटेलाइट रख दी जाये तो मिशन कामयाब मान लिया जाता है। यहां तो अंतर लक्ष्य से मात्र 2 किमी से भी कम का था, इसलिए इसे बहुत सफल मिशन कहा जा सकता है। नारायणन के मुताबिक, ‘लगातार 9 सफल एलवीएम लांच की वजह से गगनयान मिशन में हमारा विश्वास बहुत अधिक बढ़ गया है।
इसरो ने अपने बाहुबली यानी एलवीएम-एम6 राकेट से अमेरिका के कमर्शियल कम्युनिकेशन सैटेलाइट ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 को पृथ्वी की निचली कक्षा (लो अर्थ ऑर्बिट या एलईओ) में स्थापित कर दिया। भारत की धरती से लांच किया गया यह आज तक का सबसे भारी 6,100 किलो का उपग्रह है। यह एलवीएम-एम6 की लगातार 9वीं सफलता है। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत वैश्विक एलईओ कम्युनिकेशंस बाजार के कुलीन क्लब में एक गंभीर खिलाड़ी के रूप में शामिल हो गया है।
गगनयान मिशन के लिए एलवीएम राकेट में 9,500 किलो पेलोड ले जाने की क्षमता की जरूरत है। अब इसकी क्षमता 8,000 किलो की रेंज में पहुंच गई है। इसका अर्थ है कि यह धीरे धीरे आवश्यक भार क्षमता के निकट पहुंचता जा रहा है। तकनीकी अपग्रेड ने राकेट की क्षमता में इजाफा किया है।
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एलवीएम का प्रयोग करके इस एजेंसी को निरंतर सफलता हासिल हो रही है। यह सफल लांच उस समय आया है जब इसरो अगले कुछ माह के दौरान लांच की बढ़ती हुई पाइपलाइन की तरफ देख रहा है, जिनमें गगनयान की मानवरहित टेस्ट फ्लाइट्स और इलेक्ट्रक सैटेलाइट्स व क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन जैसे अति विकसित तकनीकी प्रदर्शन भी शामिल हैं।
चन्द्रयान 4, जोकि चांद की ओर चौथा मिशन होगा ओर जिसका उद्देश्य चांद के रॉक सैंपल लाना है, भी अच्छी प्रगति देख रहा है। भारत ने उच्चस्तरीय परिपक्वता के साथ अनेक बार महत्वपूर्ण स्पेस डॉकिंग प्रयोग किये हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि भारत इस मिशन के लांच लिए एकदम सही दिशा में है। तीसरे लक्ष्यों को हासिल करने के लिए लांच पैड के लिए प्रारम्भिक डिजाइन मुकम्मल हो गया है।
लेख- विजय कपूर के द्वारा






