भारत की तिब्बत नीति (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: दलाई लामा का 90वां जन्मदिन मनाने के बाद लौटते हुए अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने दिल्ली में महत्वपूर्ण बातें कहीं। एक, अरुणाचल प्रदेश तिब्बत के साथ अपनी सीमा साझा करता है न कि चीन के साथ। दूसरा यह कि यारलुंग त्संगपो नदी पर चीन जो दुनिया का सबसे बड़ा बांध बना रहा है, वह टिक-टिक करता हुआ ‘वाटर बम’ है, जिससे पूरी सियांग पट्टी बर्बाद हो सकती है। खांडू के बयान से से कुछ अहम प्रश्नों का उठना स्वाभाविक है। जब भारत ने अटल बिहारी वाजपेयी की बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के दौरान 2003 में तिब्बत पर चीनी सम्प्रभुता को स्वीकार कर लिया था, तो अब खांडू यह क्यों कह रहे हैं कि अरुणाचल प्रदेश की सीमा चीन से नहीं तिब्बत से मिलती है? इसमें कोई दो राय नहीं है कि यारलुंग त्संगपो नदी पर विशाल चीनी बांध अरुणाचल प्रदेश के बड़े इलाके के लिए बहुत बड़ा खतरा है, तो सवाल यह है कि इसे बनने से रोकने या इसके खतरे से बचने के लिए दिल्ली क्या कर रही है?
अमेरिका भी नये दलाई लामा के चयन में दिलचस्पी लेने लगा है। अमेरिकी कांग्रेस ने हाल ही में एक द्विदलीय प्रस्ताव पारित किया है जो बीजिंग के किसी भी हस्तक्षेप को ठुकराते हुए इस बात की पुष्टि करता है कि केवल दलाई लामा को ही अपना उत्तराधिकारी चुनने का हक़ है। समय आने पर भारत व अमेरिका मिलकर दलाई लामा के चयन में सहयोग भी कर सकते हैं। इसका अर्थ है कि भू-राजनीतिक शतरंज के खेल के केंद्र में तिब्बत की वापसी हो गई है। खांडू के अनुसार, अगर आप भारत के नक्शे को गौर से देखेंगे तो भारत के किसी राज्य की सीमा भी सीधे चीन से नहीं मिलती है’।
अरुणाचल प्रदेश तीन अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से अपनी सीमा साझा करता है। भूटान के साथ लगभग 150 किमी, तिब्बत के साथ लगभग 1,200 किमी और पूरब तरफ म्यांमार के साथ लगभग 550 किमी। पेमा खांडू के मुताबिक ‘1950 में चीन ने तिब्बत पर ‘जबरन कब्जा’ किया। खांडू के बयान से यह स्पष्ट व उचित संदेश दुनिया को जाता है। कि भारत व चीन चूंकि कोई सीमा साझा करते ही नहीं इसलिए चीन ने तिब्बत पर जबरन कब्जा करके जबरदस्ती का सीमा विवाद खड़ा किया हुआ है।
खांडू ने चीन द्वारा यारलुंग त्संगपो नदी, जो अरुणाचल प्रदेश में आकर ब्रह्मपुत्र नदी बन जाती है, पर विशाल हाइड्रोइलेक्ट्रक बांध बनाने के सिलसिले में भी गंभीर चिंता व्यक्त की है। यह संसार की सबसे बड़ी नदियों में से एक है। प्रस्तावित बांध की अनुमानित लागत 137 बिलियन डॉलर है और इससे 60 गीगावाट्स बिजली का उत्पादन होगा। इसका अर्थ यह है कि थ्री गोर्जेस डैम (चीन की यांग्तजी नदी पर बना यह बांध 22,250 मेगावाट बिजली का उत्पादन करता है जोकि दुनिया में सबसे ज्यादा है) से भी ढाई गुना से अधिक बड़ा होगा। इस बांध का भारत पर बहुत गहरा असर पड़ेगा।
खांडू ने इस बांध को टिक टिक करता ‘वाटर बम’ कहते हुए इसे अरुणाचल व पास के उत्तरपूर्वी राज्यों के लिए ‘अस्तित्व’ का खतरा बताया है। उनके अनुसार, इस क्षेत्र पर जो चीनी ‘सैन्य खतरा मंडरा रहा है, उसके बाद ‘सबसे बड़ा मुद्दा’ यही बांध है। चूंकि बीजिंग ने किसी भी अंतर्राष्ट्रीय जल समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं, इसलिए उस पर ‘विश्वास नहीं किया जा सकता’। खांडू का कहना है, ‘किसी को नहीं मालूम चीन क्या कर बैठे।।। मान लीजिये कि बांध बन जाता है और वह अचानक पानी छोड़ देते हैं तो हमारी पूरी सियांग पट्टी नष्ट हो जायेगी।
चूंकि हम चीन को तर्कों से नहीं समझा सकते इसलिए बेहतर यही कि हम अपनी सुरक्षा की स्वयं व्यवस्था करें।’ चीन के साथ जल समझौता होना मुश्किल ही लगता । ऐसे में भारत यह कर सकता है कि पानी की मात्रा से आगे बढ़कर अपना वाटर एजेंडा तैयार करे और सीमा पर क्लाइमेट चेंज, आर्द्रभूमि व जैवविविधता की विस्तृत चिंताओं को सामने लेकर आये। इन पर दोनों भारत व चीन ने संबंधित कन्वेंशनों में हस्ताक्षर किये हुए हैं। ब्रह्मपुत्र के संदर्भ में भारत को अपनी नीतिगत पहल को बहुत ध्यानपूर्वक संतुलित रखना चाहिए।
लेख-विजय कपूर के द्वारा