
दिल्ली की फिजा में घुला है जहर धूल और धुएं से भरा शहर
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, देश की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण इतना ज्यादा हो गया है कि धुंध और धुएं से आने लगी खांसी, तेजी से बढ़ रही सांस की बीमारी।ऐसे में क्या करे जनता बेचारी!’ हमने कहा, ‘ऐसी हालात देखते हुए हमें गजल याद आ रही है- सीने में जलन आंख में तूफान सा क्यों है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है!’ दिल्ली की हवा में सांस लेना दिन भर में 20 सिगरेट पीने के समान फेफड़ों के लिए हानिकारक है।वायु प्रदूषण से छुटकारा दिलाने के लिए मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने सरकारी खजाने के करोड़ों रुपए खर्च कर हवाई जहाज से बादलों पर सिल्वर नाइट्रेट के कणों की बौछार कर क्लाउड सीड़गि करवाई लेकिन एक बूंद भी पानी नहीं बरसा।बारिश होती तो धूल का सफाया हो जाता।जिन्हें खांसी, ब्रांकाइटिस और अस्थमा है, उन्हें दिल्ली छोड़ देनी चाहिए.’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, आप कैसी बात कर रहे हैं? नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजादी की लड़ाई के समय नारा दिया था- ‘दिल्ली चलो’।आज तो गली का मामूली नेता भी दिल्ली जाना चाहता है।दिल्ली का नाम पहले इंद्रप्रस्थ था। वह पांडवों की राजधानी था।मुगलों ने भी इसे राजधानी बनाया।अंग्रेज शासक भी 1911 में कलकत्ता से अपनी राजधानी दिल्ली ले आए थे।दिल्ली दिलवालों की है।दिल्ली के लाल किले से सारे प्रधानमंत्री 15 अगस्त को प्यारे देशवासियों के नाम संदेश देते आए हैं।दूसरे शहरों की तुलना में दिल्ली में खाना काफी सस्ता है।आपको दिल्ली की पराठेवाली गली जाकर जायके का सफर शुरू करना चाहिए.’
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हमने कहा, ‘धुएं, धूल और जहरीली हवा से भरी दिल्ली की इतनी तारीफ मत कीजिए।वहां सांस लेना दूभर हो गया है।घने कोहरे की वजह से वहां विमान सेवा प्रभावित होती है।देखना, ठंड बढ़ने के बाद धुंध की वजह से कितनी फ्लाइट लेट या कैंसल होती हैं।इसलिए दिल्ली-एनसीआर से ज्यादा प्यार मत जताइए।वहां सिर्फ हवा ही नहीं, यमुना का जल भी रसायनयुक्त, फेनदार व प्रदूषित हो चुका है।दिल्ली के बीजेपी नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी की छठ पूजा के लिए एक घाट बनवाया जहां गंगा नदी का फिल्टर किया हुआ जल डलवाया लेकिन इतनी तैयारी के बाद भी प्रधानमंत्री वहां नहीं गए.’ हमने कहा, ‘छठ पूजा सौभाग्यवती महिलाएं अपने पति के साथ नदी तट पर जाकर करती हैं।वहां पीएम का क्या काम ! जहां तक मौसम की बात है अभी चुनाव के मौसम पर ध्यान दीजिए।रामायण काल में खर-दूषण नामक राक्षक थे जबकि इस समय प्रदूषण जानलेवा बनता जा रहा है।यमुना हो या गंगा, नदी सफाई के नाम पर करोड़ों का घोटाला किया जाता है।’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






