
प्रेमानंद महाराज ने सुनाई कथा। (सौ. pinterest)
Premanand Maharaj Pravachan: आधुनिक जीवन में सबकुछ होते हुए भी मन का बेचैन रहना एक आम समस्या बन चुकी है। एकांतिक वार्तालाप के दौरान जब एक व्यक्ति ने यही सवाल संत प्रेमानंद महाराज से किया तो उनका जवाब सुनकर सब चकित रह गए।
उस व्यक्ति ने कहा कि उसने जीवन में लगभग हर सुख-सुविधा हासिल कर ली है, फिर भी उसका मन स्थिर नहीं रहता। इस पर प्रेमानंद महाराज ने स्पष्ट कहा, “सबकुछ होने पर भी तुम्हारे पास भगवान नहीं है। भगवान की शरणागति और आश्रय नहीं लिया। मन बिना भगवान के नहीं टिक सकता, क्योंकि मन भगवान का अंश है और भोगों में कभी तृप्त नहीं हो सकता।”
उन्होंने समझाया कि इंसान को लगता है कि यदि उसे कोई विशेष सुख मिल जाए तो वह तृप्त हो जाएगा। परंतु सच्चाई यह है कि एक सुख पाने के बाद मन दूसरा, फिर तीसरा सुख चाहता है। यही भटकन ही अशांति का कारण बनती है।
प्रेमानंद महाराज ने मन की प्रकृति समझाने के लिए एक प्रेरणादायक कथा सुनाई कथा के अनुसार, चक्रवर्ती सम्राट भर्तृहरि महाराज ने एक दिन विचार किया कि उनके मन की सच्ची इच्छा क्या है। उन्हें पता चला कि मन एक सुंदर स्त्री की चाह रखता है। उन्होंने आदेश दिया कि राज्य की सुंदरियां एकत्रित की जाएं, और उन्होंने पिंगला नाम की स्त्री को अपनी पत्नी के रूप में चुना।
इसके बाद भर्तृहरि महाराज जीवन का पूरा आनंद लेने लगे और राजकाज अपने छोटे भाई को सौंप दिया। लेकिन पिंगला अंदर से खुश नहीं थी। एक दिन उसका मन घोड़ों के रखवाले युवा अश्वपाल पर आ गया और दोनों के अनुचित संबंध बन गए।
उसी समय राज्य में एक ब्राह्मण तपस्या कर रहा था। उसे धन चाहिए था, लेकिन इंद्र ने उसे अमरता का फल देकर भेजा। ब्राह्मण वह फल धन के बदले देने के लिए राजा के पास पहुंचा। भर्तृहरि ने फल लेकर उसे पिंगला को दे दिया। लेकिन पिंगला ने वह फल अश्वपाल को दे दिया। अश्वपाल ने वह फल अपनी प्रेमिका नर्तकी को दे दिया। और नर्तकी ने वही फल वापस महाराज को भेंट कर दिया।
फल अपने पास लौटता देख भर्तृहरि स्तब्ध रह गए। जांच कर उन्होंने पूरी सच्चाई जान ली। अगले दिन दरबार में जब अश्वपाल को बुलाया गया, तो उसने बता दिया कि यह फल रानी पिंगला ने दिया था।
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विश्वासघात का सच जानकर भर्तृहरि समझ गए कि न तो राज-पाट, न धन-दौलत और न ही भोग-विलास मन को स्थिर कर सकते हैं। उन्होंने उसी क्षण सन्यास लेने का निर्णय किया। कथा सुनाते हुए प्रेमानंद महाराज ने कहा, “मन सांसारिक वस्तुओं से नहीं तृप्त होता। जब तक भगवान नहीं मिलेंगे, तब तक शांति नहीं मिलेगी।”






