(सौजन्य एएनआई)
आने वाले 16 अगस्त को पारसी नववर्ष (Parsi New Year) है। हर साल की तरह इस साल भी पारसी समुदाय के लोग 16 अगस्त 2024 को नया वर्ष बड़े ही उत्साह एवं हर्षोल्लास के साथ मनाएंगे। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, विश्व भर में नए साल की शुरुआत 01 जनवरी से होती है और सनातन धर्म में चैत्र माह से नए साल की शुरुआत मानी जाती है। वहीं, पारसी कैलेंडर के अनुसार, नए साल की शुरुआत 16 अगस्त से होती है।
पारसी नव वर्ष को नवरोज उत्सव के नाम से भी जाना जाता है। पारसी कैलेंडर में सौर गणना की शुरुआत करने वाले महान फारसी राजा का नाम जमशेद था। ‘नवरोज’ एक फारसी शब्द है, जो ‘नव’ यानी नया और ‘रोज’ यानी दिन से मिलकर बना है। पारसी समुदाय के लोगों के लिए नवरोज का दिन बेहद ही खास होता है। इस दिन को वे बहुत उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं। इस दिन को ‘जमशेदी नवरोज’, ‘नवरोज’, ‘पतेती’ और ‘खोरदाद साल’ के नाम से भी जाना जाता है। आइए जान लेते हैं पारसी नव वर्ष नवरोज के इतिहास के बारे में…….
ऐसा माना जाता है कि ‘नवरोज’ का पर्व फारस के राजा जमशेद की याद में मनाया जाता है। इसी दिन, आज से करीब तीन हजार साल पहले राजा जमशेद ने पारसी कैलेंडर की स्थापना की थी। इस दिन पारसी लोग नए कपड़े पहनकर अपने उपासना स्थल फायर टेंपल जाते हैं और प्रार्थना के बाद एक दूसरे को नए साल की मुबारकबाद देते हैं। साथ ही इस दिन घर की साफ-सफाई कर घर के बाहर रंगोली बनाई जाती है और कई तरह के पकवान भी बनते हैं।
सातवीं शताब्दी में जब ईरान में धर्म परिवर्तन की मुहिम चली तो वहां के कई पारसियों ने अपना धर्म परिवर्तित कर लिया। लेकिन, कई पारसी, जिन्हें यह धर्म परिवर्तन करना मंजूर नहीं था, वे लोग ईरान को छोड़कर भारत आ गए और इसी धरती पर अपने संस्कारों को सहेज कर रखना शुरू कर दिया। भारत और पाकिस्तान में बसे पारसी समुदाय के लोग विश्व के दूसरे देशों में बसे हुए पारसियों से 200 दिनों के बाद अगस्त महीने में नया वर्ष मनाते हैं। भारत में ज्यादातर पारसी समुदाय के लोग गुजरात और महाराष्ट्र में बसे हुए है। इस वजह से यह पर्व यहां जोर- शोर से मनाया जाता है।
नववर्ष नवरोज पारसी समुदाय में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। पारसी धर्म में इसे ‘खौरदाद साल’ के नाम से भी जाना जाता है। पारसियों में एक साल 360 दिन का होता है और बाकी बचे 5 दिन गाथा के रूप में अपने पूर्वजों को याद करने के लिए रखे जाते हैं। साल के खत्म होने के ठीक 5 दिन पहले इसे मनाया जाता है।
पारसी समुदाय के लोग नवरोज के दिन परंपरा के अनुसार, जरथुस्त्र की तस्वीर, मोमबत्ती, कांच, सुगंधित अगरबत्ती, शक्कर, सिक्के जैसी पवित्र चीजें एक मेज पर रखते हैं। पारसी मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है। इस दिन पारसी समुदाय के लोग अपने परिवार के साथ प्रार्थना स्थलों पर जाते हैं और पुजारी को धन्यवाद देने वाली प्रार्थना विशेष रूप से करते हैं, जिसे ‘जश्न’ कहा जाता है। इस दिन लोग पवित्र अग्नि में चन्दन की लकड़ी भी समर्पित करते हैं और एक-दूसरे को नवरोज की शुभकामनाएं देते हैं।
लेखिका- सीमा कुमारी