
Premanand ji Maharaj की कथा। (सौ. AI)
Premanand ji Maharaj Story Telling: आध्यात्मिक शिक्षाएं हमें बार-बार यह बोध कराती हैं कि यह ब्रह्मांड कारण और परिणाम के अटल नियम पर चलता है। यहां किया गया कोई भी कर्म दर्ज होने से नहीं बचता और उसके फल से कोई भी जीव बच नहीं सकता। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है “आवश्यकता में भोक्तव्य”, यानी जो किया है, उसका भोग अनिवार्य है। हर कर्म एक ऐसा जाल रचता है, जिससे मुक्ति तभी संभव है जब उसे चेतन रूप से समाप्त किया जाए। इस कथा के माध्यम से प्रेमानंद जी महाराज ने जीवन का सत्य बताया है।
किसी भी जीव को दी गई पीड़ा अत्यंत सावधानी का विषय है। आध्यात्मिक चेतावनी बताती है कि यदि किसी को इतना दुख पहुंचाया जाए कि उसके हृदय से करुण आह या शाप निकले, तो वह कर्म “अकातिया” हो जाता है अटल। इसे “बाजर की लेख” की तरह बताया गया है, जिसे भोगे बिना मिटाया नहीं जा सकता। यदि पीड़ित यह कह दे “You are powerful, but we can do nothing,” तो सांसारिक सामर्थ्य अंततः धूल में मिल जाता है।
मान्यता है कि मनुष्य जन्म कर्म-ऋण चुकाने के लिए मिलता है। परिवार और रिश्ते यूं ही नहीं मिलते; हर संबंध एक ऋण (ऋणानुबंध) है। जीवन से विदा होने से पहले या तो देना पड़ता है या लेना।
कर्म की अनिवार्यता एक महात्मा की कथा में उजागर होती है। उन्होंने प्रयागराज कुंभ में विशाल भंडारे के लिए स्वर्ण मुद्राएं एक अलंकृत डंडे में रखीं। एक गांव में मेजबान ने लोभवश सोते समय डंडा खोलकर सोना निकाल लिया और कंकड़ भर दिए। प्रयाग पहुंचकर जब डंडा खोला गया, तो महंत ने धोखे का आरोप लगाया। अपमान से आहत महात्मा ने भीतर ही कहा “तुम भोगोगे” और संगम में प्राण त्याग दिए।
कथित लाभ कुछ समय बाद विपत्ति में बदला। पुत्र बीमारी के बहाने धन नष्ट कराता गया और अंततः भंडारा कराकर संगम पर अपना रहस्य बताया वह वही महात्मा था, जिसने ऋण चुकाने को पुनर्जन्म लिया। सब कुछ छिन गया; कर्म पूरा हुआ।






