प्रतिकात्मक तस्वीर (सौजन्य सोशल मीडिया)
सावन का महीना आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष होता है। सावन माह में आने वाले व्रत-त्योहार खास होते हैं, जिनमें से एक है ‘हरियाली तीज’। अखंड सौभाग्य का प्रतीक ‘हरियाली तीज’ का पावन व्रत इस साल 7 अगस्त को मनाया जाएगा। आपको बता दें कि हरियाली तीज का पावन पर्व विशेष तौर पर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।
हर साल विवाहित महिलाएं पति की सलामती और लंबी आयु के लिए ‘हरियाली तीज’ का व्रत करती है। इस त्योहार को मनाने का तरीका भी बहुत खास होता है। कुछ जगहों पर हरियाली तीज के दिन बेटी के मायके से सिंधारा आता है, जिसका विशेष महत्व होता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि सिंधारा भेजने के पीछे धार्मिक महत्व क्या है। आइए जानें इसके पीछे की वजह….
हरियाली तीज के मौके पर शादीशुदा बेटी के मायके से ‘सिंधारा’ आता है। यह बेहद ही पुरानी परंपरा है जिसे आज भी पूरे रीति-रिवाज के साथ मनाया जाता है। मायके से आने वाले सिंधारे में कपड़े, घेवर मिठाई, फल और बेटी के लिए सुहाग का सामान होता है। सिंधारे के फल व मिठाई शगुन के तौर पर पड़ोसियों व रिश्तेदारों के बांटे जाते हैं। यह सिंधारा बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसके जरिए मायके से बेटी को खुशहाल जीवन का आशीर्वाद भेजा जाता है।
परंपराओं के अनुसार, हरियाली तीज का पर्व बेटी के मायके में ही मनाया जाता है। इस दिन जब पिता या भाई बेटी के ससुराल सिंधारा लेकर जाते हैं, तो वापस आते समय बेटी को भी मायके लेकर आते हैं। मायके जाकर वह अपनी सहेलियों के साथ खूब मस्ती करती है। यह परंपरा आज भी कायम है। इसके पीछे एक बेहद रोचक कहानी भी छिपी हुई है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार हरियाली तीज के दिन राधा रानी अपने ससुराल से मायके यानि बरसाना आई थी। मायके आकर उन्होंने अपने सखियों के साथ झूला-झूलते हुए मस्ती और खूब हंसी-ठिठोली भी की। कहते हैं कि तभी से यह परंपरा है कि, हरियाली तीज के दिन बेटी ससुराल से मायके आती है। इसलिए यह त्योहार मायके में मनाया जाता है।
लेखिका- सीमा कुमारी