पुणे महानगरपालिका (pic credit; social media)
Maharashtra News: आगामी पुणे महानगरपालिका चुनाव को देखते हुए घोषित प्रारूप प्रभाग रचना पर एक नज़र डालें तो साफ दिखता है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने रणनीतिक चालें चली हैं। इस नई रचना में भाजपा ने जहां अपने अनुकूल क्षेत्रों को जस का तस रखा है, वहीं विपक्षी दलों – कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (दोनों गुट), शिवसेना (दोनों गुट) और मनसे – की स्थिति को कमजोर करने का प्रयास हुआ है।
नियमों के अनुसार प्रभाग रचना करते समय प्राकृतिक सीमाओं का ध्यान रखा जाना चाहिए था, लेकिन कई प्रभागों में यह सिद्धांत नज़रअंदाज़ किया गया है। खासकर कसबा, कोथरूड, पर्वती, पुणे कैंटोन्मेंट और शिवाजीनगर जैसे भाजपा-प्रभावी क्षेत्रों में न्यूनतम फेरबदल किया गया है। शहर के मध्यवर्ती प्रभागों में कम जनसंख्या के बावजूद सीटों की संख्या जस की तस रखी गई है, जिससे भाजपा का वर्चस्व इस बार भी कायम रहने के संकेत मिल रहे हैं।
कांग्रेस: शहर अध्यक्ष अरविंद शिंदे के पारंपरिक वोटबैंक वाले क्षेत्र का कुछ हिस्सा तोड़कर येरवडा का जयजवान नगर जोड़ दिया गया है। इससे शिवसेना (ठाकरे गुट) के संजय भोसले के लिए भी अड़चनें बढ़ गई हैं।
मनसे: शहर अध्यक्ष साईनाथ बाबर के प्रभाग को विभाजित कर कोंढवा-कौसरबाग नाम से नया प्रभाग बनाया गया है। यहां राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजीत पवार गुट) की स्थिति भी पेचीदा हो गई है।
शिवसेना (शिंदे गुट): शहर प्रमुख नाना भानगिरे के प्रभाग में उंड्री का हिस्सा जोड़ा गया है, जिससे भाजपा का दबदबा बढ़ने की संभावना है।
इसे भी पढ़ें- ZP की पहल से खुश महिलाएं, अविवाहित और विधवा महिलाओं को मिलेगा सम्मान और समान अधिकार
राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरद गुट) शहर अध्यक्ष प्रशांत जगताप के प्रभाग में वानवडी का कुछ हिस्सा जोड़ा गया है, जो उनके लिए अनुकूल माना जा रहा है। वहीं उद्धव गुट के वसंत मोरे का प्रभाग पुनर्गठित कर सबसे बड़ा पाँच सदस्यीय प्रभाग बनाया गया है, जहाँ राष्ट्रवादी के कई पूर्व नगरसेवक चुनाव मैदान में उतरेंगे। इससे मोरे के सामने कड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है।
इसी तरह, अजीत पवार गुट के दत्तात्रय धनकवडे के प्रभाव वाले क्षेत्र को विभाजित कर दिया गया है। पिछले चुनाव में यहां भाजपा के गणेश बीडकर और उस समय के अपक्ष उम्मीदवार रहे रवींद्र धंगेकर के बीच दिलचस्प मुकाबला हुआ था। इस बार भी दोनों के आमने-सामने आने के संकेत हैं।
कुल मिलाकर, जहां भाजपा मजबूत थी, वहां न्यूनतम बदलाव कर अपनी स्थिति को सुरक्षित रखा गया है, जबकि विपक्षी दलों के लिए समीकरण और जटिल बना दिए गए हैं। यही कारण है कि इसे भाजपा का “एक तीर से दो निशाने वाला मास्टर स्ट्रोक” कहा जा रहा है।