
प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स: सोशल मीडिया )
Lok Sabha Debate Rural Employment News: केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में पेश किए गए ‘विकसित भारत-रोजगार गारंटी और आजीविका मिशन (ग्रामीण) बिल, 2025’ को लेकर संसद में जोरदार बहस छिड़ गई है।
नासिक के सांसद राजाभाऊ वाजे ने इस बिल पर कड़ा ऐतराज जताते हुए इसे ग्रामीण मजदूरों के अधिकारों पर सीधा हमला करार दिया। उन्होंने कहा कि विकसित भारत का सपना कमजोरों के हक छीनकर पूरा नहीं किया जा सकता।
लोकसभा में बहस के दौरान वाजे ने आरोप लगाया कि हालांकि सरकार 125 दिन के रोजगार का दावा कर रही है, लेकिन असल में यह विल महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के ‘अधिकार-आधारित’ स्वरूप को खत्म कर उसे केवल बजट की सीमाओं में बांधने की कोशिश है।
उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, रोजगार गारंटी एक कानूनी अधिकार है, इसे सरकार के आर्थिक हिसाब-किताब के दायरे में नहीं बांधा जा सकता। सांसद वाजे ने बिल में मौजूद ‘नॉर्मेटिव एलोकेशन’ (मानक आवंटन) प्रावधान पर कड़ी नाराजगी जताई। इस नियम के तहत केंद्र सरकार हर राज्य के लिए खर्च की एक सीमा तय करेगी।
यदि सूखा, भारी बारिश या मंदी के कारण काम की मांग बढ़ती है और खर्च सीमा से अधिक होता है, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी। वाजे ने चेतावनी दी कि इससे राज्यों के पास काम कम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा, जिससे मजदूरों का भारी नुकसान होगा।
बिल के एक और विवादित प्रावधान, जिसमे खेती के मौसम में 60 दिन काम बंद रखने की बात कही गई है, पर वाजे ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि रोजगार गारंटी का उद्देश्य लोगों को रोजी-रोटी देना है, न कि उन्हें खेती के लिए सस्ते मजदूर बनने पर मजबूर करना, खेती में काम न होने या मजदूरी कम होने पर भी रोजगार गारंटी रोकना मजदूरों को उनके कानूनी अधिकार से वंचित करना है।
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वाजे ने आरोप लगाया कि बेरोजगारी भत्ता और मजदूरी में देरी के मुआवजे की पूरी जिम्मेदारी राज्यों पर डालकर केंद्र अपना पल्ला झाड़ रहा है। उन्होंने बताया कि अक्सर मजदूरी में देरी केंद्र के डिजिटल सिस्टम की गलतियों से होती है, जिसका खामियाजा अब राज्य और मजदूर भुगतेंगे।






