
गोंदिया जिले में मनरेगा बेअसर (सौजन्यः सोशल मीडिया)
MGNREGA Gondia: सरकार और प्रशासनिक तंत्र महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को लगभग भूल चुका है, जिसके तहत ग्रामीण बेरोजगारों और मजदूरों को 100 दिन का रोजगार देने की गारंटी दी गई थी। पिछले कुछ वर्षों से मजदूरों को न तो समय पर काम मिल रहा है और न ही मजदूरी का भुगतान हो पा रहा है। इसके चलते मजदूर आज भी रोजगार की तलाश में भटकने को मजबूर हैं।
महाराष्ट्र राज्य ने सबसे पहले वर्ष 1977 में रोजगार गारंटी योजना शुरू की थी। इस योजना के माध्यम से महाराष्ट्र को ऐसे राज्य के रूप में पहचान मिली थी, जो अकुशल श्रमिकों को काम देकर उन्हें भूख से बचाने के साथ कुछ आय का साधन उपलब्ध कराता था। बाद में वर्ष 2005–06 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम लागू किया गया।
इस कानून के तहत काम मांगने वाले मजदूरों को 15 दिनों के भीतर रोजगार उपलब्ध कराना और 100 दिन का काम देकर समय पर मजदूरी भुगतान करना अनिवार्य किया गया था। यह योजना शारीरिक श्रम पर निर्भर मजदूरों के लिए किसी वरदान से कम नहीं थी।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को अब सरकारी स्तर पर नजरअंदाज किया जा रहा है। इस योजना में सार्वजनिक कार्यों के साथ व्यक्तिगत लाभ की योजनाएं भी शामिल हैं, जिसमें अकुशल और कुशल कार्यों का अनुपात क्रमशः 60 प्रतिशत और 40 प्रतिशत निर्धारित है। हालांकि, ठेकेदार प्रणाली को बढ़ावा दिए जाने के बाद कुशल कार्यों का प्रतिशत बढ़ गया है, जो इस योजना की मूल भावना के विपरीत है। जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों ने इस गंभीर विषय पर आंखें मूंद ली हैं।
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पिछले कुछ वर्षों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के प्रावधानों की खुलेआम अनदेखी की जा रही है। अधिकांश स्थानों पर मजदूरों को न तो समय पर काम दिया जाता है और न ही मजदूरी का भुगतान किया जाता है।
योजना के क्रियान्वयन के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम रोजगार सहायकों की नियुक्ति की गई थी, जबकि कुछ कर्मचारियों की नियुक्ति पंचायत समिति स्तर पर संविदा और कमीशन के आधार पर की गई। ये कर्मचारी पिछले 18 से 20 वर्षों से बेहद कम मानधन पर काम कर रहे हैं। उनकी शिकायत है कि यह अल्प मानधन भी उन्हें समय पर नहीं मिल पा रहा है।






