
प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स: सोशल मीडिया AI )
Religious Training Program: नासिक आगामी सिंहस्थ कुंभमेले से पहले नासिक की पवित्र भूमि एक अभूतपूर्व सामाजिक और धार्मिक बदलाव की साक्षी बन रही है। सदियों से चली आ रही पारंपरिक पौरोहित्य पद्धति में अब ‘कौशल विकास’ का तड़का लग गया है।
जिला कौशल विकास विभाग द्वारा शुरू किए गए ‘कनिष्ठ सहायक पौरोहित्य’ पाठ्यक्रम ने नाशिक के धार्मिक गलियारों में एक नई बहस छेड़ दी है।
चौंकाने वाली बात यह है कि इस कोर्स के जरिए अब ब्राह्मणों के साथ-साथ बहुजन समाज के युवक भी मंत्रोच्चार और पूजा विधि की बारीकियां सीख रहे हैं, जिस पर पारंपरिक पुरोहित वर्ग ने कड़ा ऐतराज जताया है।
कुंभ मेले के दौरान नासिक और त्र्यंबकेश्वर में आस्था का सैलाब उमड़ता है। करोड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए पूजा-पाठ, संकल्प और संध्या जैसे अनुष्ठानों के लिए भारी संख्या में पुरोहितों की आवश्यकता होती है।
श्रद्धालुओं को पुरोहितों की कमी के कारण असुविधा न हो, इसके लिए कैबिनेट मंत्री मंगलप्रभात लोढा ने इस अभिनव कोर्स की परिकल्पना की थी। महाराष्ट्र राज्य कौशल विकास विभाग और रामटेक के प्रतिष्ठित कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय ने हाथ मिलाकर इस 21 दिवसीय ‘कैप्सूल कोर्स’ को तैयार किया है।
स्थानीय पुरोहितों और पंडा समाज का तर्क है कि पौरोहित्य केवल 21 दिनों में सीखने वाली ‘स्किल’ नहीं, बल्कि बरसों की तपस्या और शास्त्र अध्ययन का विषय है।
उनका मानना है कि इस तरह के सरकारी पाठ्यक्रमों से पारंपरिक मर्यादाएं प्रभावित हो सकती हैं। दूसरी ओर, विश्वविद्यालय के वेद विभाग प्रमुख डॉ.अमित भार्गव का रुख स्पष्ट है।
उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य किसी की परंपरा छीनना नहीं, बल्कि धर्म का प्रचार और वैज्ञानिक तरीके से पूजा-विधि सिखाना है। इसमें समाज के हर वर्ग के लिए दरवाजे खुले हैं, ताकि हर इच्छुक व्यक्ति शास्त्रशुद्ध विधि से जुड़ सके।
कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय ने हाथ मिलाकर इस 21 दिवसीय ‘कैप्सूल कोर्स’ को तैयार किया है।
इस प्रशिक्षण वर्ग की सबसे रोचक बात इसमे शामिल होने वाले प्रशिक्षार्थी है। 12 साल के किशोर से लेकर 45 साल के प्रौढ तक इसमे उत्साह दिखा रहे है।
प्रशिक्षण लेने वालों में वकील, आईटी प्रोफेशनल और उच्च शिक्षित युवा शामिल हैं, जो अपनी जड़ों से जुड़ना चाहते हैं। ‘ग्रहशांति’ जैसी जटिल विधियों को सरल पुस्तिकाओं और प्रायोगिक ट्रेनिग के जरिए सिखाया जा रहा है।
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यह कोर्स किसी डिग्री से कम नहीं है। इसमें आधुनिक शिक्षण पद्धतियों का उपयोग हो रहा है। केवल मंत्र रटना ही नहीं, बल्कि हवन कुंड का सटीक निर्माण, सामग्री का चुनाव और पूजा की ‘मांडणी’ कैसे की जाए, इसका बाकायदा अभ्यास कराया जा रहा है।
कोर्स के अंत में बाहरी परीक्षक आकर छात्रों का मूल्यांकन करते हैं। पास होने पर उन्हें सरकारी प्रमाणपत्र दिया जाता है, जिससे वै भविष्य में स्वतंत्र रूप से या किसी बड़े पंडित के सहायक के रूप में काम कर रोजगार पा सकेंगे।






