हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
Nagpur News: बलात्कार की पीड़िता एक 18 वर्षीय युवती ने इस घटना के कारण उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए 31 सप्ताह के अवांछित गर्भ को समाप्त करने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने पीड़िता को गर्भ समाप्त करने की अनुमति प्रदान की। न्यायाधीश अनिल पानसरे और न्यायाधीश सिद्धेश्वर ठोंबरे ने पीड़िता की शारीरिक और मानसिक पीड़ा को समझते हुए और उसके निर्णय से सहमति जताते हुए यह आदेश पारित किया।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि एक महिला का अपने शरीर पर एकमात्र अधिकार है और वह गर्भपात कराने का अंतिम निर्णय लेने वाली है। कोर्ट ने अकोला के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के डीन को एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया था। इस बोर्ड को पीड़िता की शारीरिक और मानसिक स्थिति, भ्रूण की स्थिति, और गर्भपात से जुड़े जोखिमों की जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के भी आदेश दिए थे।
कोर्ट में प्रस्तुत रिपोर्ट में बताया गया कि 31 सप्ताह की गर्भावस्था में गर्भपात करना उच्च जोखिम भरा हो सकता है। प्रक्रिया के दौरान और बाद में मां और भ्रूण दोनों के लिए गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं और जानलेवा स्थितियों की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि यदि पीड़िता और उसके रिश्तेदार सहमति देते हैं तो यह प्रक्रिया की जा सकती है।
पीड़िता के वकील ने अदालत को बताया कि पीड़िता और उसके माता-पिता को सभी जोखिमों के बारे में बता दिया गया है लेकिन वे फिर भी गर्भावस्था को समाप्त करने का निर्णय ले चुके हैं। दोनों पक्षों की दलीलों के बाद कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व निर्णय का उल्लेख किया जिसमें कहा गया था कि विवाह के बाहर, विशेष रूप से यौन उत्पीड़न के बाद हुई गर्भावस्था महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए तनाव और आघात का कारण बनती है।
अदालत ने यह भी माना कि अवांछित गर्भावस्था का बोझ महिला पर पड़ता है और संविधान का अनुच्छेद 21 एक महिला को अपने मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य के दांव पर होने पर गर्भपात कराने का अधिकार देता है। हालांकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के तहत बलात्कार पीड़ितों के लिए गर्भपात की ऊपरी सीमा 24 सप्ताह है, अदालत ने इस मामले की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग किया।
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अदालत ने अकोला के सरकारी अस्पताल के डीन को पीड़िता और उसके माता-पिता की लिखित सहमति लेकर सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करते हुए जल्द से जल्द गर्भपात की प्रक्रिया को अंजाम देने का निर्देश दिया। अदालत ने भ्रूण का डीएनए संरक्षित रखने और बुलढाना जिले के तामगांव पुलिस स्टेशन के जांच अधिकारी को सौंपने के आदेश भी दिए।