झोपड़ी से सम्मान तक का सफर (सौजन्यः सोशल मीडिया)
नागपुर: कभी जहां सिर्फ टीन की छतें और मिट्टी की दीवारें थीं, वहां अब सपनों के पक्के घर खड़े हैं। नागपुर शहर की 426 झुग्गी बस्तियों में रहने वाले हजारों परिवारों को आखिरकार उनका सपना और अधिकार दोनों मिल गए हैं। कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त अपना खुद का घर, इस परिवर्तन के सूत्रधार हैं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, जिनकी अथक पहल, जनसंपर्क और संकल्प ने बस्तियों को बस्तियां नहीं, घरों में बदल दिया।
426 बस्तियों में से एक लक्ष्मीनगर की बस्ती, जो कभी तंग गलियों, अस्थायी झोपड़ियों और अभावों से जूझती थी, अब “श्रमिक नगर” के नाम से जानी जा रही है जहां लोगों ने न केवल घर पाया, बल्कि सम्मान, स्थिरता और भविष्य की आशा भी पाई। जब सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि हर वर्ग के गरीब को उसके अनुकूल योजना के माध्यम से घर मिले।
अनुसूचित जाति और नवबौद्ध समाज को रमाई आवास योजना, आदिवासी समुदाय को शबरी आवास योजना, सामान्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को प्रधानमंत्री आवास योजना है। सरकार का स्पष्ट संदेश है “कोई भी नागरिक घर के अधिकार से वंचित नहीं रहेगा।”
लक्ष्मीनगर में रहने वाले रामदास ऊईके बताते हैं कि “1989 में मैं केवल दस रुपये रोज़ कमाता था। पैसों को जोड़कर 150 रुपये में एक झोपड़ी खरीदी, लेकिन कानूनी हक नहीं था। तब से हम लड़ते रहे पेट के लिए भी और ज़मीन के हक के लिए भी। उस वक़्त पार्षद थे देवेंद्र फडणवीस, जिन्होंने हमें सिर्फ सुना नहीं, हमारे साथ खड़े भी रहे। आज मेरा बेटा पढ़ा-लिखा है और नौकरी करता है। वो वक्त और ये वक्त… बहुत फर्क है।”
90 के दशक में जहां अपराध और असुरक्षा ने बस्ती को बदनाम किया था, अब वहीं जगह शिक्षा, विकास और आत्मनिर्भरता का उदाहरण बन गई है।
यहां रहने वाले पुरुष अब कारीगर, श्रमिक, ठेकेदार हैं। महिलाएं घरों में काम करके परिवार चला रही हैं और दूसरी पीढ़ी अब शिक्षित, सशक्त और आत्मनिर्भर है।
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सामाजिक कार्यकर्ताअनिल वासनिक ने कहा कि यह कोई अचानक हुआ चमत्कार नहीं था। देवेंद्र फडणवीस, जब पार्षद थे, तब उन्होंने बस्तियों की सुविधाओं और ज़मीन के आरक्षण को लेकर लगातार प्रशासन से पत्राचार किया। समय पर काम नहीं हुआ तो उन्होंने एनआईटी कार्यालय के खिलाफ मोर्चा तक निकाला। “बिना दबाव के सत्ता जवाब नहीं देती ये उन्होंने हमें सिखाया।”
मुख्यमंत्री बनने के बाद फडणवीस ने बस्तियों पर लगे जमीन के आरक्षण हटवाए, पट्टे बांटे, आवास योजनाओं को गति दी और सबसे अहम गरीबों की जिंदगी को बदल दिया। यह न सिर्फ प्रशासनिक सफलता थी, बल्कि एक मानवीय संवेदना का उदाहरण था।
बस्ती के लोगों ने लोकवर्गणी से डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा बनवाई। छोटी छत्री के साथ तैयार हुई यह प्रतिमा अब उस संघर्ष की याद दिलाती है, जिसमें लोगों ने मिल-जुलकर अपना भविष्य संवारा। लोकार्पण के लिए फडणवीस को आमंत्रित किया गया और उन्होंने न केवल प्रतिमा का अनावरण किया, बल्कि बस्ती की समस्याएं दूर करवाकर श्रद्धांजलि को सार्थक भी किया।
426 बस्तियों में जो बदलाव आया है, वह सिर्फ दीवारों और छतों का नहीं, यह आत्मसम्मान, स्थिरता और नई पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य की कहानी है। फडणवीस की यह पहल अब महाराष्ट्र के अन्य शहरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी है।