मेडिकल में अव्यवस्था (सौजन्य-नवभारत)
Nagpur Medical College: गर्भावस्था वैसे भी महिलाओं के लिए तकलीफदेह होती है। प्रसूति के दौरान स्वस्थ माहौल बेहद जरूरी होता है। इसका असर संपूर्ण प्रक्रिया पर होता है लेकिन शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय व अस्पताल में भर्ती गर्भवती महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मेडिकल में अडेंटेंड तो नियुक्त किए गए हैं लेकिन वे नजर नहीं आते।
दूसरी मंजिल पर भर्ती महिलाओं को ट्राइसिकल पर खींचते हुए परिजनों को ग्राउंड फ्लोर पर विविध जांच के लिए लाना पड़ता है। महिला के साथ एकमात्र परिजन को वार्ड में रहने दिया जाता है। उनके साथ आने वाले पुरुष परिजनों को बाहर बरामदे में बैठकर इंतजार करना पड़ता है।
चौबीस घंटे में कभी भी इमरजेंसी हो सकती है, इस हालत में महिला सहित परिजनों की रात की नींद भी खराब होती है। शौचालयों में बदबू और टूटे हुए दरवाजे हैं। रात के वक्त मच्छरों का हमला हलाकान कर देता है। यानी गर्भवती महिलाओं के लिए ‘वेदना’ की कोई गिनती ही नहीं रह जाती। साथ ही परिजनों की भी ‘परीक्षा’ हो जाती है।
वार्ड में भर्ती महिलाओं को ब्लड टेस्ट, सोनोग्राफी सहित विविध तरह के टेस्ट समय समय पर बताये जाते हैं। गर्भवती महिलाओं को ट्राइसिकल पर लेकर आना पड़ता है। नियमानुसार यह जिम्मेदारी वार्डों में नियुक्त अडेंटेंड की होती हैं लेकिन वे बहुत कम ‘नजर’ आते हैं। इस हालत में परिजनों को ट्राइसिकल खींचना पड़ता है। दूसरी मंजिल से ग्राउंड फ्लोर तक लेकर आना और जाना किसी चुनौती से कम नहीं होता क्योंकि ट्राइसिकल को चलाने की अपनी तकनीक होती है। ऊपर ले जाते वक्त सामने को दोनों पहियों को उठाया जाता है।
मंगलवार की शाम 4 बजे के दौरान एक गर्भवती महिला को दूसरी मंजिल पर लेकर जाने के लिए 2 परिजन साथ थे लेकिन ट्राइसिकल टस से मस नहीं हो रही थी। बाद में और 2 अन्य लोगों ने मदद की। इस बीच गर्भवती महिला को परेशानी भी हुई। उसे गिरने का भी डर लग रहा था। यह नजारा मेडिकल में आम है लेकिन प्रशासन हमेशा कर्मचारियों के कमी भी लाचारी का बहाना बनाकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाता है। यदि ट्राइसिकल खींचते वक्त कोई दुर्घटना हो जाये तो आखिर जिम्मेदार कौन होगा? यह सवाल परिजन उठा रहे हैं।
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मंगलवार की दोपहर जोरदार बारिश के बाद मेडिकल परिसर में कई जगह पानी जमा हो गया है। पेइंग वार्ड के पास खुले बरामदे में भी पानी जमा हो गया। इससे परिजनों के साथ ही डॉक्टरों, नर्सों को भी परेशानी हुई। वार्ड के सामने बैठने वाले परिजनों के लिए जगह नहीं बची। वहीं विविध सामग्री वार्डों में पहुंचाने वाले कर्मचारियों को भी दिक्कतें आईं। कुछ परिजन तो गिरते हुए भी नजर आए। दरअसल बारिश होने पर बरामदों में अक्सर पानी जमा हो जाता है लेकिन वर्षों से इस समस्या का समाधान नहीं निकाला जा रहा है।