नितिन गडकरी (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Nagpur News: यह भी हकीकत है कि यह ड्रीम प्रोजेक्ट केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का है। उनके प्रयासों से एक शानदार-आलीशान किराना बाजार बनाने का निर्णय हुआ। जमीन मिली। लोगों ने लगभग 70-80 करोड़ रुपये जमा किए और कार्य शुरू हुए। लेकिन अब आपसी विवाद सब पर भारी पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। किराना एसोसिएशन को 2020 में चिखली में लगभग 16 एकड़ जमीन मिली थी।
इसके बाद कई महत्वपूर्ण पड़ाव पार किए गए। नेताओं का प्रोजेक्ट होने के बाद भी आवश्यक मंजूरी लेने में 4 साल का वक्त लग गया। इस लेटलतीफी का परिणाम यह हुआ कि लागत में निरंतर वृद्धि होती चली गई। लागत में वृद्धि होने से मनमुटाव जैसी स्थिति उत्पन्न होने लगी और यह बढ़ती चली गई। मनमुटाव इतना बढ़ गया कि इस्तीफा और इलेक्शन तक बात पहुंच गई है। आपसी ‘भिड़त’ के बीच ‘चिखली किराना मार्केट’ पर संकट के बादल मंडराते हुए नजर आने लगे हैं।
चिखली का प्रस्तावित मार्केट की अनुमानित लागत लगभग 300 करोड़ रुपये आंकी गई थी। इतवारी में पुराने बाजार को शिफ्ट करने की संकल्पना से तैयार किया गया यह प्रोजेक्ट लोगों को काफी पसंद भी आया था। गडकरी ने खुद एक-एक स्टेप की जानकारी हासिल की थी और बाद में ‘ओके’ किया था। प्रोजेक्ट बेहतर होने के कारण ही लोगों ने भरोसा जताया। इस प्रोजेक्ट में 670 दुकानें बननी थीं जो एक झटके में सभी बुक हो गईं थीं। लोगों ने 13-13 लाख रुपये के हिसाब से राशि जमा भी करा दी थी। लगभग 70-75 करोड़ रुपये जमा हो गए थे। आपसी विश्वास के कारण ही यह संभव हो पाया था।
गडकरी के प्रयासों से ही दि इतवारी किराना मर्चेंट्स एसोसिएशन को 16 एकड़ की जमीन उपलब्ध कराई गई थी। इसके बाद डिजाइन बनने और अंतिम रूप देने में समय लगा। खुद गडकरी इस प्रोजेक्ट को लेकर काफी उत्सुक थे और एक-एक बारीक चीजों पर ध्यान दे रहे थे। नक्शा फाइनल हुआ और एनआईटी को सौंपा गया। इसके बाद से खेल शुरू हो गया।
एनआईटी ने पहले पर्यावरण, फायर और एयरपोर्ट क्लियरेंस लाने को कहा। इसमें समय निकलता गया। जब सब मंजूरी मिल गई तो एनआईटी ने नया अड़ंगा डाल दिया। कुल मिलाकर एनआईटी के विलंब के कारण प्रोजेक्ट पर ‘ग्रहण’ लगना शुरू हो गया और इसी से लागत बढ़ने लगी और समस्या भी उत्पन्न होने लगी।
सूत्रों ने बताया कि जब बुकिंग ली जा रही थी तब इसकी लागत 25-26 लाख रुपये बताई गई थी लेकिन जैसे-जैसे प्रोजेक्ट ‘लथड़’ रहा है वैसे-वैसे लागत भी बढ़ रही है। अब उसी दुकान की लागत 55 लाख के आसपास आंकी जा रही है। बढ़ती लागत देख भी कई लोगों के हौसले पस्त हो गए हैं
इस बीच जानकारों की मानें तो ‘शह और मात’ का खेल मार्केट में शुरू हो गया। यही कारण है कि अब चुनाव तक की नौबत आ गई है। प्रक्रियाएं शुरू भी हो गई हैं। 450 से अधिक सदस्य वोट करेंगे। अगर सहमति नहीं बनी तो 17 को चुनाव होना तय माना जा रहा है। 25 को एजीएम रखी गई है। मार्केट में जो चर्चाएं चल रही हैं उनसे यही आभास हो रहा है कि 2 खेमों के बीच चुनाव की नौबत आ सकती है।
मार्केट में यह भी चर्चा है कि वार्षिक आम बैठक में जो चखली बाजार समिति का गठन किया गया था उसके सदस्य इस्तीफा दे रहे हैं। इस पर कोई भी खुलकर नहीं बोल रहा है। समिति में लगभग 15 सदस्य हैं जिन पर निर्माण कार्य की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। सूत्रों का कहना है कि समिति का समन्वयक ही कुछ दिनों पूर्व इस्तीफा दे चुका है और अन्य सदस्य इस्तीफा देने को बेताब हैं। अगर ऐेसा होता है तो इसका सीधा-सीधा असर मार्केट के ‘भविष्य’ पर पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है।
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इस बीच, बाजार सूत्रों ने बताया कि कृषि उत्पन्न बाजार समिति (एपीएमसी) का चुनाव 3 वर्ष पूर्व काफी धूमधाम से हुआ था। कई पैनलों के बीच चुनाव लड़े गए थे। व्यापारिक प्रतिनिधि के रूप में प्रकाश वाधवानी ने चुनाव में जीत हासिल की थी। व्यापारियों की आवाज सभा में उठाकर समस्याओं का हल निकालने में अहम भूमिका निभाने की उम्मीद थी लेकिन एपीएमसी में ‘अलग’ ही राजनीति चलने लगी।
कार्यों को तरजीह न देते हुए अन्य कार्य होने लगे। बताया जाता है कि इससे वे निराश थे। अंत में इस्तीफा देना ही उचित समझा। इस बीच सभापति अहमद शेख से संपर्क किया गया, उनका कहना है कि अब तक उनके पास इस्तीफा नहीं पहुंचा है परंतु जानकारों का कहना है कि एपीएमसी कार्यालय में इस्तीफा पहुंच चुका है।