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नागपुर. प्रन्यास की ओर से सिविल इंजीनियर असिस्टेंट को लेकर 31 मार्च 2022 को वरीयता सूची घोषित की गई. जिसके अनुसार जूनियर इंजीनियर के पद पर पदोन्नति देने का अनुरोध करते हुए कुछ कर्मचारियों ने प्रन्यास को अनुरोध पत्र दिया था. किंतु अनुरोध पत्र ठुकराए जाने के कारण दिलीप केने और अन्य 5 कर्मचारियों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. याचिका पर लंबी सुनवाई के बाद न्यायाधीश अतुल चांदुरकर और न्यायाधीश उर्मिला जोशी ने प्रन्यास के फैसले को उचित करार देते हुए इसमें दखलअंदाजी से इनकार कर दिया. साथ ही याचिका निरस्त कर दी. सरकार की ओर से सहायक सरकारी वकील अधि. तजवर खान और प्रन्यास की ओर से अधि. गिरीश कुंटे ने पैरवी की.
कुछ याचिकाकर्ताओं ने राजस्थान यूनिवर्सिटी और कुछ याचिकाकर्ताओं ने कर्नाटका यूनिवर्सिटी द्वारा चलाए जाने वाले डिस्टेंसिंग एजुकेशन के माध्यम से डिग्री या डिप्लोमा प्राप्त किया था. 1 नवंबर 2021 को याचिकाकर्ताओं ने 10-20-30 वर्षों की सेवा पूरी होने का हवाला देकर 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार उच्च श्रेणी का लाभ देने का अनुरोध किया था. ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन के अनुसार मान्यता प्राप्त संस्थाओं से डिग्री या डिप्लोमा नहीं लिए जाने के कारण प्रन्यास ने उनका अनुरोध अस्वीकार कर दिया. याचिकाकर्ताओं का मानना था कि संबंधित दस्तावेजों पर संज्ञान लिए बिना ही प्रन्यास की ओर से आदेश जारी किए जाने पर आपत्ति जताई गई. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि प्रन्यास ने जो आधार लिया है, वह पूरी तरह से गलत है. 12 अप्रैल 2021 को नगर विकास विभाग ने एनआईटी सभापति को पत्र भेजा था. जिसमें नाशिक के इंजीनियरिंग स्टाफ कॉलेज से शिक्षा प्राप्त करनेवालों को वैध करार दिया गया.
याचिकाकर्ताओं की ओर से बताया गया कि 23 अगस्त 2011 को सरकार की ओर से अध्यादेश जारी किया गया. जिसमें डिस्टेंस एजुकेशन को वैध करार दिया गया. 14 अक्टूबर 2020 और 12 नवंबर 2020 के पत्राचार में भी इसका उल्लेख किया गया. इन पत्राचारों पर संज्ञान लिए बिना ही प्रन्यास ने निर्णय लिया है. प्रन्यास की ओर से पैरवी कर रहे अधि. गिरीश कुंटे ने कहा कि सुको की ओर से इसी तरह के एक मामले में 3 नवंबर 2017 को फैसला सुनाया गया है. जिसके आधार पर ही 27 दिसंबर 2021 को सरकार द्वारा भेजे गए पत्राचार के अनुसार निर्णय लिया गया जो पूरी तरह से वैध होने का दावा प्रन्यास की ओर से किया गया. सुनवाई के बाद अदालत ने स्पष्ट किया कि एआईसीटीई के 30 दिसंबर 2020 के अनुसार डिस्टेंस एजुकेशन को मान्यता नहीं है. अत: किसी भी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया.