शालार्थ आईडी घोटाला। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
नागपुर: नागपुर में बहुचर्चित शालार्थ आईडी घोटाला मामले में आज एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुआ। नागपुर सत्र न्यायालय ने मामले के मुख्य आरोपी शिक्षा उपसंचालक उल्हास नारद, नीलेश मेश्राम, सूरज नाइक, राजू मेश्राम और संजय बोधदकर को जमानत दे दी है। इस घोटाले ने पूरे राज्य के शिक्षा विभाग को हिलाकर रख दिया है और इसे शिक्षा क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा घोटाला माना जा रहा है। इस मामले में खुलासा हुआ था कि 580 फर्जी शालार्थ आईडी बनाकर फर्जी शिक्षकों को सरकारी वेतन दिया गया था।
नागपुर संभाग के विभिन्न स्कूलों में फर्जी शालार्थ आईडी बनाकर शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति करने का यह घोटाला अप्रैल 2025 में सामने आया था। इस मामले की जांच के दौरान पता चला कि 2019 से करीब 580 प्राथमिक शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को फर्जी शालार्थ आईडी के आधार पर भुगतान किया गया था। बिना किसी सत्यापन के फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्तियां की गईं।
खास तौर पर कुछ लोगों को शिक्षक के तौर पर बिना किसी अनुभव के सीधे प्रिंसिपल के तौर पर नियुक्त किया गया। इस मामले में शिक्षा उपसंचालक ने कहा कि इस घोटाले के दायरे को देखते हुए शिक्षा विभाग ने तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी। इसके लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाने का फैसला किया गया। इस दल में पुलिस और शिक्षा विभाग के अधिकारी शामिल हैं। नागपुर संभाग के कई स्कूलों में फर्जी नियुक्तियों की जांच चल रही है और इसमें कुछ और वरिष्ठ अधिकारियों के शामिल होने की आशंका है।
इस मामले में सबसे गंभीर आरोप शिक्षा उपसंचालक उल्हास नारद पर है। उन पर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर प्रिंसिपल पद पर नियुक्तियों को मंजूरी देने का आरोप है। नारद को 12 अप्रैल 2025 को गढ़चिरौली से गिरफ्तार किया गया था। उनके साथ ही अधीक्षक नीलेश वाघमारे, नीलेश मेश्राम, सूरज नाइक, राजू मेश्राम और संजय बोधदकर भी इस घोटाले में शामिल थे। इन सभी ने मिलकर फर्जी शालार्थ आईडी बनाकर सरकारी खजाने को करोड़ों रुपए का चूना लगाया।
नागपुर सेशन कोर्ट में आज हुई सुनवाई में मुख्य आरोपियों को जमानत दे दी गई। संजय बोधदकर की ओर से अधिवक्ता अनमोल गोस्वामी, कमल सत्तुजा और कैलाश जोदनी पेश हुए। उन्होंने दलील दी कि आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है और उन्हें मामले में गलत तरीके से फंसाया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि जांच पूरी हो चुकी है, इसलिए आरोपियों को हिरासत में रखने की कोई जरूरत नहीं है। इस दलील के बाद कोर्ट ने सभी आरोपियों को जमानत दे दी। हालांकि, जमानत की शर्तें अभी स्पष्ट नहीं हैं।
इस घोटाले के सामने आने के बाद शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा उजागर हुई है। इस मामले में शिक्षा विभाग ने कई अधिकारियों को निलंबित कर दिया है। इनमें उल्हास नारद, नीलेश वाघमारे, नीलेश मेश्राम और संजय बोधदकर शामिल हैं। साथ ही उपसंचालक कार्यालय में दीपेंद्र लोखंडे को नारद का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। इस घोटाले ने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया है। उन्होंने इस मामले की जांच के लिए एसआईटी के गठन को मंजूरी दे दी है।
इस घोटाले से सरकारी खजाने को करोड़ों रुपए का चूना लगा है। फर्जी शालार्थ आईडी के जरिए फर्जी शिक्षकों को अवैध तरीके से वेतन दिया गया। इससे शिक्षा विभाग की साख पर भी असर पड़ा है। इस मामले में साइबर पुलिस ने जांच शुरू कर दी है कि कंप्यूटर पर फर्जी शालार्थ आईडी कैसे बनाई गई। साथ ही यह भी पता लगाया जा रहा है कि इसमें कौन-कौन अधिकारी और कर्मचारी शामिल थे।
इस घोटाले ने नागपुर समेत पूरे महाराष्ट्र में हड़कंप मचा दिया है। सामाजिक स्तर पर शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ गुस्सा जाहिर किया जा रहा है। कई सामाजिक संगठनों ने इस मामले की गहन जांच की मांग की है। राजनीतिक स्तर पर भी इस मामले को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। विधायक संदीप जोशी ने इस घोटाले की एसआईटी जांच की मांग की थी, जिसे बाद में स्वीकार कर लिया गया। विपक्षी दलों ने भी सरकार की आलोचना की है और उस पर शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में विफल रहने का आरोप लगाया है।
इस मामले में जमानत दिए जाने से जांच प्रक्रिया पर कुछ हद तक असर पड़ने की संभावना है। हालांकि, पुलिस और एसआईटी ने संकेत दिए हैं कि वे जांच तेज करेंगे। इसमें कुछ और वरिष्ठ अधिकारियों के शामिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। शिक्षा विभाग ने भविष्य में इस तरह के घोटाले रोकने के लिए सख्त कदम उठाने का भी वादा किया है। इसमें शालार्थ आईडी सिस्टम में सुधार, पारदर्शिता और सख्त जांच शामिल है।
नागपुर शालार्थ आईडी घोटाला सिर्फ वित्तीय भ्रष्टाचार का मामला नहीं है, बल्कि शिक्षा क्षेत्र में साख का सवाल भी है। इस मामले ने शिक्षा व्यवस्था की खामियों और भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को उजागर किया है। हालाँकि मुख्य आरोपियों को जमानत मिल गई है, लेकिन इस मामले की जांच और कार्रवाई ने पूरे राज्य का ध्यान अपनी ओर खींचा है। सरकार और प्रशासन को शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।