बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ (सोर्स: सोशल मीडिया)
Maharashtra Zilla Parishad Election Reservation Rotation Rule: महाराष्ट्र में आगामी जिला परिषद चुनावों को लेकर सीट आरक्षण रोटेशन के नये नियमों को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई जिस पर हुई लंबी बहस के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने जहां सुनवाई खत्म कर दी वहीं फैसला सुरक्षित कर लिया। याचिकाकर्ता की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता आरएल खापरे और अधिवक्ता महेश धात्रक ने चुनावों को लेकर चल रही प्रक्रिया को देखते हुए फैसला जल्द देने का अनुरोध भी कोर्ट से किया।
राज्य सरकार द्वारा हाल ही में पेश किए गए महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति (सीटों के आरक्षण का तरीका और रोटेशन) नियम 2025 के नियम 12 को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि ये नये नियम असंवैधानिक, मनमाने और अन्यायपूर्ण हैं क्योंकि ये पिछले आरक्षण रोटेशन को अधूरा छोड़ते हुए 2025 के चुनाव को ‘पहला चुनाव’ मान रहे हैं।
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की पैरवी कर रहे महाधिवक्ता बीरेन्द्र सराफ ने कहा कि कई ग्रामीण क्षेत्र वर्तमान में जिला परिषद और नगर परिषद में शामिल हो चुके हैं जिससे न केवल सीमांकन बदलने बल्कि मतदाताओं की संख्या बदलने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
मतदाता संख्या के अनुरूप ही आरक्षण तय किया जाएगा। अंतिम परिणाम में रोटेशन के अनुसार किसे लाभ होगा? यह फिलहाल कहा नहीं जा सकता है, जबकि याचिकाकर्ताओं ने इसका अंदाजा भर लगाया है। जिस समय कानून को लागू किया जा रहा था उसका अंतिम परिणाम क्या होगा? इसे देखकर नहीं किया गया बल्कि संविधान में प्रदत्त अधिकारों का उपयोग कर नये सिरे से राज्य सरकार ने यह प्रणाली लागू की है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह नया नियम पिछले रोटेशन को बाधित करने और बाधित करने के इरादे से पेश किया गया है जो 1996/2002 से जारी था और पूरा होने के कगार पर था। याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार का यह कदम संविधान के अनुच्छेद 243-K और 243-E13 तथा अनुच्छेद 243-D9 के प्रावधानों के सीधे विपरीत है।
अनुच्छेद 243-D के अनुसार आरक्षण रोटेशन के माध्यम से दिया जाना चाहिए, ताकि आरक्षित सीटों की सभी श्रेणियों को प्रतिनिधित्व मिल सके। नये नियम के लागू होने से अधूरे रोटेशन को छोड़ दिया जाएगा और 2025 के चुनाव को पहले चुनाव के रूप में मानकर आरक्षण प्रक्रिया को फिर से शुरू किया जाएगा।
विशेषत: 2 व्यक्तियों द्वारा याचिका दायर की गई है जिनमें से एक अनुसूचित जाति (SC) और दूसरा अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग से हैं। अनुसूचित जाति के याचिकाकर्ता काटोल तहसील के कचारी (सावंगा) गांव से हैं जो मेटपांजरा और नवनिर्मित रिधोरा के चुनाव क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
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याचिकाकर्ता का मानना है कि महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति (सीटों के आरक्षण का तरीका और रोटेशन) नियम 1996 के लागू होने के बाद से उनका वार्ड कभी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित नहीं हुआ।
अनुसूचित जनजाति का याचिकाकर्ता जिला परिषद के सोनेगांव (निपानी) चुनाव क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांव से हैं। याचिकाकर्ता का दावा है कि वर्ष 2002 से उनका वार्ड कभी भी अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित नहीं हुआ।
रोटेशन जारी रहने पर उनके वार्ड को 2025 में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किया जाता जिससे उन्हें अपने वर्ग का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिलता। इन नये नियमों में जानबूझकर नियम 12 शामिल किया गया है जो यह प्रावधान करता है कि इन नियमों के प्रारंभ होने के बाद होने वाले आम चुनाव को सीटों के रोटेशन के उद्देश्य से ‘पहला चुनाव’ माना जाएगा।