प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स: AI)
Maharashtra College Vaculty Crisis News: महाराष्ट्र सरकार ने उच्च शिक्षा में भले ही नई शिक्षा नीति लागू कर दी है लेकिन अनुदानित महाविद्यालयों में प्राध्यापकों के पद भर्ती को लेकर गंभीरता नहीं बरती जा रही है। स्थिति यह है कि वर्तमान में राज्य में केवल 35 फीसदी ही पद भरे गये हैं। 65 फीसदी पद खाली हैं। इस हालत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को स्तरीय बनाना मुश्किल हो गया है। पद भर्ती पर लगाई गई पाबंदी को हटाने की दिशा में भी कोई प्रयास नहीं हो रहे हैं। अधिकांश अनुदानित महाविद्यालय ठेकेदारी और क्लॉक ऑवर बेसिक (सीएचबी) प्राध्यापकों के भरोसे ही चल रहे हैं।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अनुसार किसी भी महाविद्यालय में ठेकेदारी पद्धति और सीएचबी पद से भर्ती केवल 10 फीसदी होना चाहिए। इसके लिए भी आयोग ने शर्ते निर्धारित की हैं लेकिन वर्तमान में स्थिति विपरीत बनी हुई है। राज्य भर के शासकीय अनुदानित महाविद्यालयों में केवल 35 फीसदी ही पद भरे हैं। इसके बाद भी सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति लागू कर काम का बोझ बढ़ाया गया है।
आरटीआई एक्टिविस्ट अभय कोलारकर द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में यह तथ्य उजागर हुआ। हालांकि उच्च शिक्षा विभाग ने समूची जानकारी देने में भी आनाकानी की है। मंजूर पद, भर्ती क्यों नहीं, कितने वर्षों से पद खाली, ठेकेदारी पद्धति पर नियुक्ति के बारे में जानकारी नहीं दी गई। एक तरह से यह आरटीआई एक्ट का उल्लंघन है।
महाराष्ट्र में शासकीय अनुदानित महाविद्यालयों में अधिव्याख्याता के कुल 31185 मंजूर पदों में से 11198 पद, प्राचार्य के 1166 पदों में से 437 पद, ग्रंथपाल के मंजूर 1154 पदों में से 341 पद तथा शारीरिक शिक्षण संचालकों के 961 पदों में से 294 पद खाली हैं। कुल मंजूर 34466 पदों में से 21576 यानी 65 फीसदी पद खाली होने की जानकरी उच्च शिक्षा विभाग ने दी।
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इतनी बड़ी संख्या में पद खाली होने के बाद भी भर्ती को लेकर सरकार गंभीर नहीं है। इन खाली पदों में से सर्वाधिक 2167 पद पुणे विभाग में हैं। इसके बाद नागपुर विभाग में 1,543 कोल्हापुर में 1583 अमरावती में 1428 मुंबई में 1293 जलगांव में 1243 छत्रपति संभाजीनगर में 1147 और नांदेड में 962 पद हैं।
सरकार ने वर्ष 2017 से नए पदों की भर्ती को प्रतिबंधित कर रखा है। स्वीकृत पदों में से केवल 80 प्रतिशत पद ही भरे गए हैं और 20 प्रतिशत पदों को सरकार ने फ्रीज कर दिया है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में प्रति घंटा के आधार पर (सीएचबी) शिक्षकों की संख्या की जानकारी ही उपलब्ध नहीं है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने 2019 में ही सीएचबी शिक्षकों के लिए प्रति घंटे 1500 रुपये की दर तय की थी लेकिन राज्य सरकार इन शिक्षकों को केवल 1,000 रुपये का भुगतान कर रही है।