हर्षवर्धन सपकाल-विकास ठाकरे-सुनील केदार (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Nagpur Politics: विधानसभा चुनाव में करारी हार के सदमे से निकलने में कांग्रेस को काफी समय लग गया। प्रदेशाध्यक्ष नाना पटोले ने अपने पद से इस्तीफा तक दे दिया। उसके बाद नवनियुक्त हर्षवर्धन सपकाल को राज्य के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। अब उनके नेतृत्व में स्थानीय निकाय के चुनाव होंगे जिसके लिए संगठन का पोस्टमार्टम करने के पूर्व उन्होंने राज्यभर के सभी जिलों का दौरा किया।
नेताओं, पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं का मन टटोला। अब भाजपा की ओर डायवर्ट हुए ओबीसी समाज को अपने पाले में लाने के लिए उन्होंने दांव खेलना शुरू कर दिया है। 2 दिन पूर्व जारी जम्बो कार्यकारिणी में उन्होंने 44 फीसदी नेतृत्व ओबीसी को दिया है।
कांग्रेस ने यह रणनीति पहले ही तय कर रखी थी जिसे मूर्तरूप देकर ओबीसी को भरोसा दिया गया है कि निकाय चुनावों में भी समाज को 40 फीसदी या उससे अधिक की उम्मीदवारी दी जाएगी। कांग्रेस के इस दांव से भाजपा महकमे में हलचल मची हुई है। भीतरखाने की मानें तो कांग्रेस के ओबीसी दांव की काट के लिए वह भी नये सिरे से चिंतन-मंथन में जुट गई है।
कई गुटों में बटी कांग्रेस को एकजुट करने के लिए सपकाल ने नये-पुराने सभी को साधने का कार्य अपनी कार्यकारिणी में किया है। विदर्भ ने हमेशा संकट के समय कांग्रेस को तारने का कार्य किया है, यह इतिहास रहा है। निकाय चुनावों में विदर्भ में अधिक से अधिक निकायों पर कब्जा जमाने की रणनीति पर उसने कार्य करना शुरू कर दिया है। पार्टी के ज्येष्ठ नेताओं के साथ आज के युवा चेहरों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपकर पार्टी में उत्साह का संचार करने का प्रयास किया गया है।
लगभग पार्टी से किनारा कर चुके वरिष्ठों को फिर से जोड़ा गया है। शहरी व ग्रामीण भागों के लिए समान नीति रखी गई है। विस चुनाव में पार्टी के साथ बगावत कर चुके नेताओं तक को वापस जोड़ा गया है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर भेदभाव का आरोप लगाने वाले कार्यकर्ताओं को भी ‘पद’ की जिम्मेदारी देकर नाराजी कम करने का प्रयास किया गया है। इसके पीछे पार्टी की आउट-गोइंग पर नियंत्रण की मंशा बताई जा रही है।
नागपुर शहर की बात करें तो शहर अध्यक्ष विकास ठाकरे के नेतृत्व में मनपा चुनाव लड़ा जाने वाला है। वहीं जिले में कद्दावर नेता पूर्व मंत्री सुनील केदार जिला परिषद, नगर परिषद, पंचायत समितियों के चुनाव में फिर अपनी वजनदारी दिखाते नजर आएंगे। केदार ने पार्टी को जिला परिषद, शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र, स्नातक निर्वाचन क्षेत्र चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दिलाई थी। विस चुनाव में वे कानूनी अड़चनों के चलते चुनाव नहीं लड़ पाए थे।
भाजपा ने उनकी सीट से वर्चस्व खत्म करने के लिए पूरा दम लगाया और केदार की पत्नी चुनाव हार गईं। उसके बाद से केदार समर्थकों में निराशा फैल गई थी लेकिन हार के बावजूद वे पूरे जिले में पार्टी-संगठन के लिए उतने ही जोश से कार्य करते रहे। अब केदार पर जिला परिषद व अन्य निकायों में कांग्रेस की दोबारा वापसी का जिम्मा सौंपा गया है।
भाजपा ने दूसरी पार्टियों को कमजोर करने के लिए सभी के लिए अपने द्वार खोल रखे हैं। सत्ताधारी पार्टी होने के चलते उसमें इनकमिंग भारी पैमाने पर हुई है। अधिकतर कांग्रेस के ही पदाधिकारी, नेता, कार्यकर्ताओं ने बीजेपी का कमल थामा है। जिले में भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ताओं में इसे लेकर भारी असंतोष फूटने लगा है। बाहर से आने वालों को बीजेपी संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन करती जा रही है। अनुशासन के नाम पर नाराज कार्यकर्ता खुले तौर पर कुछ नहीं कह पा रहे हैं लेकिन अब आवाजें बाहर आने लगी हैं।
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उमरेड से 2 बार विधायक रहे सुधीर पारवे ने तो पत्र के माध्यम से यह नाराजी जताई है। वहीं एक पदाधिकारी का वीडियो भी वायरल हो रहा है जिसमें वे आयातित लोगों को महत्व दिए जाने पर नाराजी जता रहे हैं। उनका कहना है कि 20-25 वर्षों से जिले में पार्टी व संगठन की ताकत बढ़ाने में अपना तन-मन-धन लगाने वालों के साथ अन्याय किया जा रहा है। पार्टी के आला नेता इस भीतरी असंतोष को कैसे मैनेज करते हैं यह देखने वाली बात होगी।