राज ठाकरे-देवेंद्र फडणवीस-उद्धव ठाकरे (सौजन्य-सोशल मीडिया)
मुंबई: यूबीटी ने महाराष्ट्र के प्राथमिक स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाए जाने के मनसे के विरोध को अपना समर्थन दे दिया है। उल्लेखनीय यह है कि इस बार खुद पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे तथा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे ने एक साथ विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की घोषणा यूबीटी सांसद संजय राउत तथा मुंबई मनसे के अध्यक्ष संदीप देशपांडे ने की है।
इस पर बीजेपी के नेता भले ही ऊपरी तौर पर कह रहे हैं कि हमें कोई डर नहीं है लेकिन अंदरखाने में कहा जा रहा है कि मुंबई मनपा के निकट भविष्य में होनेवाले चुनाव की पृष्ठभूमि में दोनों भाइयों के साथ आने बीजेपी सहित पूरी महायुति में खलबली मच गई है। उद्धव तथा राज के फिर से साथ आने की अटकलें अब सत्य साबित होने वाली हैं।
मुद्दों के आधार पर दोनों भाई और उनकी पार्टी के लोग करीब आने लगे हैं। डोंबिवली के पलावा पुल के सुस्त निर्माण कार्य के विरोध में मनसे और उद्धव की पार्टी शिवसेना यूबीटी ने एक साथ आंदोलन किया था। अब स्कूलों में कक्षा एक से चौथी तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाए जाने के विरोध में मनसे और यूबीटी ने 5 जुलाई को ‘मराठी के लिए एक साथ आएं’ ऐसा आव्हान करते हुए गिरगांव चौपाटी से आजाद मैदान तक मोर्चा निकालने की घोषणा की है। इस मोर्चे में यूबीटी और मनसे के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ बड़ी संख्या में मराठी भाषी लोगों शामिल होने की उम्मीद जताई जा रही है।
स्कूलों में पहली कक्षा से तीसरी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाए जाने को गलत मानने वाले मराठी भाषी लोग बीजेपी एवं महायुति के दूसरे घटक दलों में भी शामिल हैं। इनमें से बड़ी संख्या में लोग बिदक सकते हैं। बीजेपी नवी मुंबई शहर अध्यक्ष गजानन काले ने सरकार के निर्णय का विरोध करते हुए शुक्रवार को अपने पद से इस्तीफा देकर इसकी शुरुआत कर दी है।
महायुति सरकार में शामिल उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना को इसका सर्वाधिक लाभ मिल सकता है। दूसरी तरफ इस निर्णय का ठीकरा यूबीटी और विपक्षी गठबंधन मविआ पर फोड़कर बीजेपी आक्रोश को कम करने का प्रयास कर रही है।
मंत्री एवं बीजेपी मुंबई आशीष शेलार ने कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत जो त्रिभाषा सूत्र लागू हुआ, उसकी प्रक्रिया उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री रहते ही शुरू हुई थी। हिंदी भाषा से संबंधित आयोग की विशेषज्ञों की रिपोर्ट भी उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान ही आई थी। हमारा स्पष्ट मत राज ठाकरे की पार्टी के लिए भी है। कांग्रेस ने ही इस त्रिभाषा सूत्र पर निर्णय लिया था और उस समय शरद पवार ने इस निर्णय का समर्थन किया था। आज जो दल इसका विरोध कर रहे हैं, उन्हीं के कार्यकाल में यह नीति लागू की गई थी।”
बीजेपी विधायक अमित साटम ने कहा, “सरकार बार-बार स्पष्टीकरण दे रही है कि भी हिंदी में कोई अनिवार्यता नहीं है। फिर भी जो लोग मराठी के नाम पर राजनीति कर रहे हैं। इसे माध्यम से विलुप्त हो चुके लोग अपने राजनीतिक अस्तित्व को एक बार फिर से पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। राज्य के आम मराठी लोग विरोध करनेवालों से पूछ रहा हूं कि आपके बच्चे किस माध्यम की स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं? स्कूल और कॉलेज में मराठी के अलावा उन्होंने कौन सी विदेशी भाषाएं चुनी हैं?”
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बीजेपी विधायक प्रसाद लाड ने कहा, “मराठी भाषा को हम हाथ भी नहीं लगाने देंगे। यह हमारी महायुति सरकार का वचन है। लेकिन ठाकरे बंधु झूठ बोलकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। ऐन चुनाव के मौके मराठी लोगों को भ्रमित करके वे उन्हें धोखा दे रहे हैं। देवेंद्र फडणवीस की सरकार मराठी लोगों के साथ मजबूती से खड़ी है।”