मीरा-भाईंदर मनपा (pic credit; social media)
Mira-Bhayander Municipal Elections: आगामी मीरा-भाईंदर मनपा चुनाव की दिशा अब स्पष्ट हो गई है। राज्य चुनाव आयोग ने अंतिम वार्ड संरचना योजना घोषित करते हुए स्पष्ट कर दिया कि इस वर्ष के चुनाव 2017 की वार्ड योजना के अनुसार ही होंगे। आयोग ने नागरिकों और राजनीतिक दलों द्वारा दर्ज की गई सभी 51 आपत्तियाँ खारिज कर दी हैं, जिससे अब सभी राजनीतिक पार्टियों और इच्छुक उम्मीदवारों की निगाहें आरक्षण लॉटरी पर टिकी हैं।
राज्य सरकार के निर्देशानुसार सभी महानगरपालिकाओं को नई वार्ड संरचना तैयार करने के आदेश दिए गए थे। मीरा-भाईंदर मनपा ने अगस्त के पहले सप्ताह में यह योजना तैयार कर राज्य सरकार को सौंपी थी, जिसे सितंबर में प्रकाशित किया गया। यह वार्ड संरचना 2011 की जनगणना पर आधारित है और इसे 2017 के चुनावों की तर्ज पर ही तैयार किया गया है।
आगामी चुनाव के लिए कुल 24 वार्ड होंगे। इनमें 23 वार्ड 4 सदस्यीय और 1 वार्ड 3 सदस्यीय रहेगा। कुल 95 सीटें बरकरार रहेंगी। नागरिकों ने सीमांकन बदलने और पार्षदों की संख्या बढ़ाने जैसी मांगों के साथ 51 आपत्तियाँ दर्ज की थीं। आयोग ने सभी आपत्तियों को खारिज कर पुरानी संरचना को मान्यता दी।
मीरा-भाईंदर कांग्रेस ने प्रकाशित वार्ड संरचना पर कई आपत्तियाँ दर्ज की थीं। उनकी मांग थी कि हाल के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मतदान आंकड़ों को ध्यान में रखकर वार्ड सीमाएँ तय की जाएँ। हालांकि आयोग ने इन आपत्तियों को दरकिनार कर दिया, जिससे अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस आगे क्या रुख अपनाती है।
अंतिम वार्ड संरचना जारी होने के बाद ध्यान अब आरक्षण लॉटरी पर केंद्रित है। संभावना है कि लॉटरी शीघ्र ही आयोजित की जाएगी। पिछले चुनावों की तरह, इस बार भी महिलाओं के लिए लगभग 50% सीटें आरक्षित होंगी, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए करीब 26 सीटें, अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए भी सीटें निश्चित होंगी।
राजनीतिक दलों ने अब उम्मीदवार चयन की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। भाजपा और शिवसेना (शिंदे गुट) अपने संगठनात्मक नेटवर्क पर भरोसा कर रही हैं, जबकि कांग्रेस और मनसे स्थानीय मुद्दों को लेकर मतदाताओं तक पहुंच बनाने में जुटी हैं। आरक्षण लॉटरी के बाद चुनावी तस्वीर और स्पष्ट हो जाएगी कि कौन-से वार्ड में समीकरण बदलेंगे।
मीरा-भाईंदर में मराठी मतदाता आधार पहले जितना प्रभावी नहीं रहा, जबकि राजस्थानी, गुजराती और उत्तर भारतीय समुदायों की संख्या और संगठित शक्ति में वृद्धि हुई है। इससे चुनावी रणनीति और गठबंधन पर भी असर पड़ सकता है।