गणेशोत्सव 2025 (pic credit; social media)
Maharashtra News: महाराष्ट्र सरकार ने इस वर्ष गणेशोत्सव को ‘राज्य उत्सव’ घोषित किया है। दस दिनों तक चलने वाला यह महापर्व 27 अगस्त से आरंभ होगा। हालांकि, बृहन्मुंबई सार्वजनिक गणेशोत्सव समन्वय समिति ने सरकार द्वारा घोषित 11 करोड़ रुपये के अनुदान को अपर्याप्त बताते हुए नाराजगी जताई है। समिति का कहना है कि यदि निर्णय लेने की प्रक्रिया में मंडलों को भी शामिल किया जाता, तो समाज के हित में और बेहतर कार्य किए जा सकते थे।
समिति के अध्यक्ष नरेश दहिवावकर ने कहा कि बड़े गणेश मंडलों का खर्च 50 लाख से लेकर एक करोड़ रुपये तक होता है। कई मंडल तो पुस्तकालय चलाने से लेकर शैक्षणिक व आर्थिक सहायता प्रदान करने तक का काम पूरे वर्ष करते हैं। ऐसे में सरकार का 11 करोड़ रुपये का आवंटन वास्तविक खर्च की तुलना में बहुत कम है। उन्होंने यह भी कहा कि 25 वर्ष से अधिक पुराने मंडलों को इस निर्णय में शामिल किया जाना चाहिए था, क्योंकि वे साल भर समाज के लिए कार्य करते हैं और संकट के समय हमेशा सहयोग देते हैं।
दहिवावकर ने बताया कि मंडलों का खर्च मुख्य रूप से विज्ञापनों और दान पर निर्भर करता है। मानसून में भक्तों की संख्या कम होने से आमदनी प्रभावित होती है। इसके बावजूद, सरकार को त्यौहारों के दौरान जीएसटी और अन्य करों से बड़ा राजस्व मिलता है। उन्होंने भजन मंडलों के लिए घोषित 25,000 रुपये प्रति मंडल की योजना पर भी सवाल उठाए और कहा कि सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया कि इन मंडलों का चयन किस आधार पर हुआ और क्या वे पंजीकृत भी हैं।
इस वर्ष अनंत चतुर्दशी शनिवार को पड़ रही है। समिति का कहना है कि विसर्जन जुलूस के दौरान यातायात अव्यवस्था हो सकती है क्योंकि अब तक सरकार ने सरकारी अवकाश घोषित नहीं किया है। ऐसे में निजी संस्थान व कार्यालय खुले रहेंगे और कर्मचारियों की आवाजाही से समस्या और बढ़ सकती है।
गणेशोत्सव सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। दहिवावकर ने बताया कि मंडप बनाने के लिए आवश्यक तिरपाल मुस्लिम समुदाय उपलब्ध कराता है, जिससे सामाजिक सौहार्द का सुंदर उदाहरण सामने आता है। वहीं, सरकार ने भी गणेशोत्सव की भव्यता बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे विशेष पोर्टल लॉन्च करना, राज्य स्तरीय स्पर्धाओं का विस्तार, पुरस्कार राशि में बढ़ोतरी, डाक टिकटों का प्रकाशन, प्रमुख स्थलों का सौंदर्यीकरण और रोशनी की व्यवस्था।
समिति का कहना है कि यदि सरकार निर्णय प्रक्रिया में मंडलों को भागीदार बनाती, तो उत्सव न सिर्फ धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी अधिक प्रभावी बन सकता था।