शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद (pic credit; social media)
Maharashtra News: ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज इन दिनों मुंबई में अपने चातुर्मास्य व्रत महोत्सव के अवसर पर प्रवास कर रहे हैं। खास बात यह है कि उन्होंने महज डेढ़ महीने में मराठी भाषा सीख ली है और अब वे श्रद्धालुओं को मराठी में ही श्रीमद् भगवद्गीता के अध्यायों का अर्थ समझा रहे हैं।
पिछले तीन दिनों से स्वामीजी सुबह के सत्र में मराठी में उपदेश दे रहे हैं। शनिवार को जब उन्होंने अपने प्रवचन का पहला वाक्य मराठी में बोला, तो पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। श्रद्धालुओं का कहना है कि मराठी भाषा में गीता सुनना उनके लिए एक अद्वितीय और भावनात्मक अनुभव है।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मुंबई आगमन के समय ही कहा था कि वे यहां मराठी सीखना चाहेंगे। हिंदी-मराठी भाषा विवाद पर उन्होंने स्पष्ट कहा कि भाषा किसी पर थोपनी नहीं चाहिए, लेकिन स्थानीय भाषा का सम्मान हर किसी को करना चाहिए। इसी भावना से उन्होंने मराठी सीखने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने दो मराठी शिक्षकों की मदद ली और लगातार अभ्यास कर भाषा पर अच्छी पकड़ बना ली।
अपने प्रवचनों के दौरान स्वामीजी ने महाराष्ट्र की संत परंपरा और सामाजिक आंदोलन का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि संत नामदेव, ज्ञानेश्वर, तुकाराम, एकनाथ, स्वामी समर्थ जैसे महापुरुषों ने मराठी में अमूल्य साहित्य रचा है। वहीं, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, छत्रपति शिवाजी महाराज, संत गाडगे महाराज और बाबासाहेब अंबेडकर जैसे विभूतियों ने महाराष्ट्र के सामाजिक और ऐतिहासिक गौरव को नई ऊंचाई दी।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि महाराष्ट्र की शौर्य गाथा, संत साहित्य और धार्मिक ग्रंथों को गहराई से समझने के लिए मराठी सीखना आवश्यक है। यही कारण है कि उन्होंने इसे अपनी साधना का हिस्सा बनाया।
मुंबई में शंकराचार्य के मराठी प्रवचन से न केवल श्रद्धालु प्रेरित हो रहे हैं बल्कि यह हिंदुत्व और स्थानीय संस्कृति के संगम का अनोखा उदाहरण भी प्रस्तुत कर रहा है।